Rajat Sharma

महाकाल लोक: मोदी कैसे कर रहे हैं सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का संचार

akbप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन में भगवान महाकालेश्वर के मंदिर परिसर में 900 मीटर लंबे ‘श्री महाकाल लोक’ गलियारे के प्रथम चरण का लोकार्पण किया। कुल 856 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना के पहले चरण में ‘महाकाल लोक’ को 351 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है। मंदिर में आए श्रद्धालु इसके स्वरूप में आए अद्वितीय और अद्भुत परिवर्तन को देखकर हैरान रह गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में विशेष पूजा-अर्चना के बाद वहां आए श्रद्धालुओं को संबोधित भी किया।

मोदी ने ई-कार्ट में बैठकर पूरे महाकाल कॉरिडोर को देखा। उन्होंने उन 108 अलंकृत स्तंभों पर ‘आनंद तांडव स्वरूप’ (भगवान शिव के अलौकिक नृत्य का एक रूप) और लगभग 200 नक्काशीदार मूर्तियों और भित्ति चित्रों में भगवान शिव और देवी शक्ति की आकृतियों को देखा। मुख्य द्वार से लेकर मंदिर तक शिव की 93 मूर्तियां हैं, और हर मूर्ति का अपना QR कोड है ताकि कोई भी श्रद्धालु कोड को स्कैन कर सके और उमा ऐप (Uma App) पर जाकर इन मूर्तियों के बारे में जानकारी हासिल कर सके।

महाकाल कॉरिडोर में सबसे ज्यादा चर्चा सप्तऋषि मंडल की है। यहां शिवजी के शिष्य कहे जाने वाले सप्त ऋषियों – कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज की प्रतिमाएं ध्यान की मुद्रा में लगाई गई हैं। इन्हीं सप्तऋषियों के नाम पर हिंदू धर्म में गोत्र की उत्पत्ति हुई। सप्तऋषि मंडल के बीच में शिव स्तंभ बना है, लगता है मानो ये सप्तऋषि अपने गुरु से शिक्षा ले रहे हों । यहां समुद्र मंथन से जुड़ी प्रतिमा भी है जहां भगवान शिव को विष पीते दिखाया गया है। ‘महाकाल पथ’ पर रक्षा धागे से बना एक विशाल शिवलिंग बना है। मोदी द्वारा इस शिवलिंग को देखे जाने के बाद इसे वहां से हटा दिया गया।

सुप्रसिद्ध रुद्रसागर, जिसका वर्णन ’स्कंद पुराण’ में भी है, पहले बदबू और कचरे से भरा तालाब हुआ करता था, लेकिन अब यह क्षिप्रा नदी से लाए गए पवित्र जल से भरी हुई है। झील में पानी का स्तर सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर सफाई की गई। कॉरिडोर बनाने के लिए क्षिप्रा नदी से महाकालेश्वर मंदिर तक के रास्ते पर लगभग 152 इमारतों का अधिग्रहण किया गया। बड़ी संख्या में उज्जैन आने वाले पर्यटकों की सुविधा और मध्य प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए दुकानों, विश्राम गृहों, इमर्जेंसी मेडिकल फैसिलिटी, ई-वीकल्स और सोलर-बेस्ड पार्किंग की व्यवस्था की गई है।

दूसरे चरण में महाराजवाड़ा, महाकाल गेट, रुद्रसागर, हरि फाटक ब्रिज, रामघाट के आगे का हिस्सा, रुद्रसागर में म्यूजिकल फाउंटेन, बेगम बाग रोड जैसे इलाकों को संवारा जाएगा और कुंभ संग्रहालय की स्थापना की जाएगी। महाकालेश्वर मंदिर से रामघाट तक पुराने पैदल मार्ग के पास एक बागीचा भी लगाया जाएगा। क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित रामघाट पर ‘लाइट एंड साउंड शो’ होंगे।

अपने ओजस्वी भाषण में मोदी ने कहा, ‘महाकाल लोक की ये भव्यता भी समय की सीमाओं से परे आने वाली कई-कई पीढ़ियों को अलौकिक दिव्यता के दर्शन कराएगी, भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को ऊर्जा देगी। विशेष रूप से, मैं शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार, उनका मैं हृदय से अभिनंदन करता हूँ, जो लगातार इतने समर्पण से इस सेवायज्ञ में लगे हुये हैं। साथ ही, मैं मंदिर ट्रस्ट से जुड़े सभी लोगों का, संतों और विद्वानों का भी आदरपूवर्क धन्यवाद करता हूँ जिनके सहयोग ने इस प्रयास को सफल किया है।’

उज्जैन, जिसे प्राचीन काल में अवंतिका कहा जाता था, की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए मोदी ने कहा, ‘हजारों वर्ष पूर्व जब भारत का भौगोलिक स्वरूप आज से अलग रहा होगा, तब से ये माना जाता रहा है कि उज्जैन भारत के केंद्र में है। एक तरह से, ज्योतिषीय गणनाओं में उज्जैन न केवल भारत का केंद्र रहा है, बल्कि ये भारत की आत्मा का भी केंद्र रहा है। ये वो नगर है, जो हमारी पवित्र सात पुरियों में से एक गिना जाता है। ये वो नगर है, जहां स्वयं भगवान कृष्ण ने भी आकर शिक्षा ग्रहण की थी। उज्जैन ने महाराजा विक्रमादित्य का वो प्रताप देखा है, जिसने भारत के नए स्वर्णकाल की शुरुआत की थी।’

मोदी ने कहा, ‘महाकाल की इसी धरती से विक्रम संवत के रूप में भारतीय कालगणना का एक नया अध्याय शुरू हुआ था। उज्जैन के क्षण-क्षण में,पल-पल में इतिहास सिमटा हुआ है, कण-कण में आध्यात्म समाया हुआ है, और कोने-कोने में ईश्वरीय ऊर्जा संचारित हो रही है। यहां काल चक्र का, 84 कल्पों का प्रतिनिधित्व करते 84 शिवलिंग हैं। यहां 4 महावीर हैं, 6 विनायक हैं, 8 भैरव हैं, अष्टमातृकाएं हैं, 9 नवग्रह हैं, 10 विष्णु हैं, 11 रुद्र हैं, 12 आदित्य हैं, 24 देवियां हैं, और 88 तीर्थ हैं। और इन सबके केंद्र में राजाधिराज कालाधिराज महाकाल विराजमान हैं।’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘यानी, एक तरह से हमारे पूरे ब्रह्मांड की ऊर्जा को हमारे ऋषियों ने प्रतीक स्वरूप में उज्जैन में स्थापित किया हुआ है। इसीलिए, उज्जैन ने हजारों वर्षों तक भारत की संपन्नता और समृद्धि का, ज्ञान और गरिमा का, सभ्यता और साहित्य का नेतृत्व किया है। इस नगरी का वास्तु कैसा था, वैभव कैसा था, शिल्प कैसा था, सौन्दर्य कैसा था, इसके दर्शन हमें महाकवि कालिदास के मेघदूतम् में होते हैं। बाणभट्ट जैसे कवियों के काव्य में यहां की संस्कृति और परम्पराओं का चित्रण हमें आज भी मिलता है। यही नहीं, मध्यकाल के लेखकों ने भी यहां के स्थापत्य और वास्तुकला का गुणगान किया है।’

मोदी ने बताया कि कैसे उनकी सरकार भारत में प्रमुख मंदिरों का जीर्णोद्धार कर रही है। उन्होंने कहा, ‘आज अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण पूरी गति से हो रहा है। काशी में विश्वनाथ धाम, भारत की सांस्कृतिक राजधानी का गौरव बढ़ा रहा है। सोमनाथ में विकास के कार्य नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। उत्तराखंड में बाबा केदार के आशीर्वाद से केदारनाथ-बद्रीनाथ तीर्थ क्षेत्र में विकास के नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। आजादी के बाद पहली बार चारधाम प्रोजेक्ट के जरिए हमारे चारों धाम ऑल वेदर रोड्स से जुड़ने जा रहे हैं। इतना ही नहीं, आजादी के बाद पहली बार करतारपुर साहिब कॉरिडॉर खुला है, हेमकुंड साहिब रोपवे से जुड़ने जा रहा है। इसी तरह, स्वदेश दर्शन और प्रासाद योजना से देशभर में हमारी आध्यात्मिक चेतना के ऐसे कितने ही केन्द्रों का गौरव पुनर्स्थापित हो रहा है। और अब इसी कड़ी में, ये भव्य, अतिभव्य ‘महाकाल लोक’ भी अतीत के गौरव के साथ भविष्य के स्वागत के लिए तैयार हो चुका है।’

मोदी ने कहा, ‘आजादी के इस अमृतकाल में अमर अवंतिका भारत के सांस्कृतिक अमरत्व की घोषणा कर रही है। उज्जैन जो हजारों वर्षों से भारतीय कालगणना का केंद्र बिन्दु रहा है, वो आज एक बार फिर भारत की भव्यता के एक नए कालखंड का उद्घोष कर रहा है।’ प्रधानमंत्री ने आगे कहा, ‘अतीत में हमने देखा है, प्रयास हुये, परिस्थितियाँ बदलीं, सत्ताएं बदलीं, भारत का शोषण भी हुआ, आज़ादी भी गई। इल्तुतमिश जैसे आक्रमणकारियों ने उज्जैन की ऊर्जा को भी नष्ट करने के प्रयास किए। भारत अपनी आस्था के इन प्रामाणिक केन्द्रों की ऊर्जा से फिर पुनर्जीवित हो उठा, फिर उठ खड़ा हुआ। हमने फिर अपने अमरत्व की वैसी ही विश्वव्यापी घोषणा कर दी।’

महाकाल के परिसर के भव्य स्वरूप को देखकर किसी भी हिंदू को गर्व होगा। महाकालेश्वर में नरेंद्र मोदी को माथे पर त्रिपुंड लगाए भगवान शिव की आराधना करते देखकर हिंदू जनमानस उत्साहित है। उन्हें शिव की महिमा देखकर अपनी विरासत पर अभिमान होगा।

जिस तरह से महाकालेश्वर मंदिर का विकास किया गया, उसकी सुंदरता, उसकी छटा और उसका विकास देखकर साफ हो जाता है कि यह एक बड़ी सोच का परिचायक है। यह विडंबना है कि आजादी के 75 साल हो गए, लेकिन जिन मंदिरों के प्रति करोड़ों लोगों की आस्था है, पहले किसी ने उनके रखरखाव और वहां आने वाले लोगों की सुविधाओं पर ध्यान तक नहीं दिया। नरेंद्र मोदी ने उन करोड़ों लोगों के बारे में सोचा जो इन मंदिरों में श्रद्धा के साथ भगवान का आशीर्वाद लेने जाते हैं।

अब चाहे उज्जैन में महाकालेश्वर हो, काशी विश्वनाथ हो, केदारनाथ हो, गुजरात में सोमनाथ हो, देवघर में वैद्यनाथ हो, अयोध्या में रामजन्म भूमि हो, हर जगह मंदिरों को भव्य स्वरूप दिया जा रहा है। भक्तों की सहूलियत का ध्यान रखा गया है। यह अपने आप में एक बड़ा काम है और इसका पूरा क्रेडिट नरेंद्र मोदी को जाना चाहिए।

यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ये मंदिर सिर्फ श्रद्धा के केंद्र नहीं हैं, इनके विकास से इनके आसपास के इलाके पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित होंगे जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा। भक्ति और विकास का ये अनूठा संगम सिर्फ एक बहुमुखी प्रयास है। मुझे विश्वास है कि मंदिरों का ये पुनरुत्थान आने वाले हजारों साल तक जनमानस में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना का संचार करेगा।

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