Rajat Sharma

गर्मियों में पानी की कमी से बचने के लिए कैसे करें जल संरक्षण

rajat-sirअप्रैल के पहले हफ्ते में ही उत्तरी, पश्चिमी, पूर्वी और मध्य भारत के अधिकांश हिस्से भीषण गर्मी से तप रहे हैं। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड जैसे कई राज्यों के गांवों में सूखे जैसे हालात दिखने लगे हैं। विदर्भ इलाके में भी हालात परेशान करने वाले हैं। महिलाओं को पानी लेने के लिए काफी दूर तक चलना पड़ रहा है क्योंकि ज्यादातर कुएं सूख चुके हैं और पानी का स्तर नीचे चला गया है।

बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने महाराष्ट्र में नासिक जिले में पड़ने वाले त्रयंबकेश्वर के पास मेटघर गांव की हालत दिखाई, जहां पानी का एकमात्र स्रोत एक कुआं है, और महिलाएं हर रोज पानी लेने के लिए उस कुएं में 50 फीट की गहराई तक उतरती हैं। चूंकि कुएं में इतना पानी नहीं है कि रस्सी से बाल्टी डालकर पानी खींचा जा सके, इसलिए रोजाना गांव की कोई एक महिला इसी तरह कुएं में उतरती है ताकि वह दूसरे लोगों की बाल्टी भी भर सके। 35 फीट गहरे इस कुएं में उतरना इनकी मजबूरी है और यह कुआं भी गांव से 2 किलोमीटर दूर है।

वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि महिलाएं पानी इकट्ठा करने के लिए कुएं की छोटी-छोटी सीढ़ियों से उतरते हुए अपनी जान जोखिम में डाल रही हैं। जब इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने स्थानीय अधिकारियों से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि मेटघर गांव में और उसके आसपास 3 कुएं हैं, लेकिन गांव के लोग सिर्फ एक ही कुएं से पानी ले रहे हैं और बाकी के 2 कुओं पर नहीं जा रहे हैं। नासिक जिला परिषद की मुख्य कार्यकारी अधिकारी लीना बन्सोड ने कहा कि जल संकट का समाधान जल्द कर लिया जाएगा।

नासिक कोई कम बारिश वाला इलाका नहीं है। शहर के पास बहने वाली गोदावरी नदी में पिछले 10 सालों में कम से कम 4-5 बार बाढ़ आ चुकी है और पिछले साल इस इलाके में 476 मिलीमीटर बारिश हुई थी। महाराष्ट्र के जल आपूर्ति मंत्री संजय बन्सोड ने इंडिया टीवी को बताया कि कुएं में उतरकर पानी भरती महिलाओं की तस्वीरें उन्होंने भी देखी हैं। उन्होंने कहा कि गांव में पानी के टैंकर भेजे जाएंगे और वादा किया कि समस्या का स्थायी समाधान किया जाएगा।

जल आपूर्ति मंत्री ने दावा किया कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 55 लीटर पानी उपलब्ध कराने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश कर रही है। कड़वी जमीनी हकीकत यह है कि लोगों को रोजाना 2 लीटर पीने का साफ पानी भी मुश्किल से मिल पाता है।

विदर्भ में भी हालात काफी खराब हैं। नागपुर के पास रहने वाले ग्रामीणों ने पानी की भारी किल्लत की शिकायत की है। इंडिया टीवी की रिपोर्टर ने नागपुर से 15 किलोमीटर दूर गोधनी गांव का दौरा किया। इस गांव की आबादी करीब 17,000 है। रिपोर्टर से मिले अधिकांश ग्रामीणों ने पानी की कमी की शिकायत की। हालत यह है कि गांव वालों ने एक कुएं में 50 से 60 पाइप डालकर खुद ही घर तक पानी सप्लाई का इंतजाम किया है।

स्थानीय अधिकारियों ने 4-5 ‘Water ATMs’ लगाए हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर ने लगभग 10 महीने तक पानी दिया और इसके बाद काम करना बंद कर दिया। ये ‘वॉटर एटीएम’ अब महज शोपीस बनकर रह गए हैं। गांव वालों का कहना है कि जब सरकार को इनकी देखभाल नहीं करनी थी तो फिर ‘Water ATMs’ पर करोड़ों रुपये खर्च करने की क्या जरूरत थी।

दिक्कत की बात यह है कि जब भी गंभीर जल संकट होता है, तो स्थानीय नौकरशाह एक ही समाधान बताते हैं और वह है जल संरक्षण। नागपुर जिला परिषद के एग्जेक्यूटिव इंजीनियर ने कहा कि जल स्तर को ऊपर बनाए रखने के लिए वॉटर कंजर्वेशन शाफ्ट डाले जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब तक राज्य सरकार और स्थानीय ग्रामीण जल संरक्षण के लिए साथ नहीं आएंगे, तब तक कोई ठोस नतीजा नहीं मिल सकता।

महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा बीते कई दशकों से पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। इन इलाकों में बारिश कम होती है जिससे अधिकांश क्षेत्रों में जल स्तर नीचे चला गया है। कई छोटे बांध बनाए गए हैं लेकिन पानी की कमी के कारण वे भी सूख गए हैं। ज्यादातर पानी का इस्तेमाल खेतों की सिंचाई के लिए होता है जिससे घरेलू इस्तेमाल के लिए कम पानी बचता है।

झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी ऐसे ही हालात हैं। झारखंड की राजधानी रांची के पास स्थि एक गांव चिरुडीह ऊपरटोला के लोग तो पहाड़ी नाले का पानी को पीने को मजबूर हैं। जल संकट इतना गहरा है कि हथेलियों या फिर थाली और कटोरी की मदद से पानी को बाल्टी में भरा जा रहा है। कहने को तो सरकार की तरफ से यहां हैंडपंप और जल मीनार भी लगाए गए हैं, लेकिन वे किसी काम के नहीं हैं। गांव के मुखिया ने पानी की समस्या के लिए गांव वालों को दोषी ठहराते हुए कहा कि वे जल मीनार के रखरखाव के लिए पैसा नहीं देते, जिससे वह खराब पड़ा है।

पानी की कमी से जूझ रहे लोगों को मध्य प्रदेश के देवास से सीख लेनी चाहिए, जहां कुछ साल पहले पानी का स्तर 800 फीट से भी नीचे चला गया था, लेकिन अब 50 फीट पर आ गया है। कई साल पहले भारत की पहली ‘वॉटर ट्रेन’ लातूर (महाराष्ट्र) से देवास (मध्य प्रदेश) तक चलाई गई थी, जो उस समय जल संकट का सामना कर रहा था। लेकिन अब हालात पहले से बेहतर हो गए हैं।

यह करिश्मा एक आईएएस अफसर उमाकांत उमराव के कारण हो पाया जिन्होने जल संरक्षण के लिए अथक प्रयास किये। उमाकांत उमराव को ‘वाटर क्रूसेडर'(जल योद्धा) के रूप में जाना जाता है। वे 2006 से 2007 तक देवास मे जिला कलेक्टर थे। उसी समय उन्होंने ‘जल अर्थशास्त्र’ नामक एक आंदोलन शुरू किया और ग्रामीणों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित किया।

‘रेवा सागर भगीरथ कृषक अभियान’ के तहत किसानों ने अपने खेतों में छोटे छोटे तालाब बनवाए और उनका नाम ‘रेवा सागर’ रखा। रेवा नर्मदा नदी का स्थानीय नाम है। भगीरथ का पुराणों में ज़िक्र है जो वह गंगा को धरती पर लाए थे। पहले साल के दौरान अकेले देवास जिले में सैकड़ों ‘रेवा सागर’ बनाए गए और जल्द ही यह अभियान मध्य प्रदेश के सीहोर, शाजापुर, उज्जैन, हरदा, खंडवा, रायसेन, धार, विदिशा, भोपाल और होशंगाबाद में फैल गया।

उमाकांत उमराव ने बैंकों को किसानों को तालाब बनाने के लिए कर्ज देने के लिए राजी किया और बाद में किसानों ने ये कर्ज चुका भी दिए । तालाबों में इकट्ठा किए गए बारिश के पानी में भूजल की तुलना में कहीं ज्यादा घुलनशील नाइट्रोजन था। यह पानी रबी की फसल उगाने के लिए अच्छा था और पैदावार बढ़ने की वजह से स्थानीय किसान समृद्ध हुए।

जब ये तालाब गर्मियों में सूख जाते थे तो उपजाऊ मिट्टी को इकट्ठा किया जाता था और उसे खेतों में डाल कर फसल उगाई जाती थी। फसल की कटाई के बाद मिट्टी को फिर से तालाबों में इस्तेमाल किया जाता था। इससे जमीन की पैदावार बढ़ी और मिट्टी का कटाव कम हुआ। संक्षेप में कहें तो रेवा सागर योजना मूल रूप से सतही जल भंडारण पर आधारित थी और इससे गर्मियों में किसानों की काफी मदद हुई।

उमाकांत उमराव अब मध्य प्रदेश सरकार के पंचायत और ग्रामीण विकास सचिव हैं। अन्य राज्यों को भी इस प्रयोग से सीखना चाहिए और जल संरक्षण की दिशा में काम करना चाहिए ताकि लोगों को जल संकट का सामना न करना पड़े।

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Comments are closed.