Rajat Sharma

मोदी ने यूं लिखी गुजरात में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत की पटकथा

AKBगुजरात की जनता ने गुरुवार को विधानसभा चुनाव में बीजेपी को रिकॉर्ड तोड़ जीत दिलाकर इतिहास रच दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने इन चुनावों में विपक्ष का लगभग पूरी तरह से सफाया कर दिया, और इसी के साथ मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल का सोमवार (12 दिसंबर) को शपथ लेने का रास्ता भी साफ हो गया।

बीजेपी पिछले 27 साल से गुजरात में शासन कर रही है और 2027 तक वह सूबे में अपने शासन के लगातार 32 साल साल पूरा कर लेगी। शाम को दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय के बाहर एक विजय रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि गुजरात के लोगों ने राज्य की स्थापना के बाद से अब तक पहली बार सीट शेयर और वोट शेयर दोनों में पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं।

बीजेपी ने कुल 182 में से 156 सीटों पर जीत हासिल करके 1985 में कांग्रेस द्वारा बनाए गए 149 सीटों के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया। बीजेपी का वोट शेयर इस बार 5 साल पहले के 49.1 फीसदी से बढ़कर इस बार 52.5 फीसदी हो गया। आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल, जो दावा कर रहे थे कि IB की एक कथित रिपोर्ट के मुताबिक उनकी पार्टी को बहुमत मिल रहा है, को भी करारी हार का सामना करना पड़ा। AAP ने केवल 5 सीटें जीतीं, जबकि 5 साल पहले 77 सीटें जीतने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस बार सिर्फ 17 सीटें ही जीत सकी।

गुरुवार की शाम बीजेपी मुख्यालय के बाहर मनाये गये जश्न के माहौल में गजब का आत्मविश्वास देखने को मिला। प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अधिकांश कैबिनेट मंत्री मुख्यालय पहुंचे, जबकि हजारों कार्यकर्ता वहां पहले से जमा थे।

मोदी ने कहा, ‘जीत जितनी बड़ी है, जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी है। अब जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना है। अब और ज्यादा मेहनत करनी है। इस बार अपने चुनाव अभियान के दौरान मैंने कहा था कि भूपेंद्र को नरेंद्र का रिकॉर्ड तोड़ना चाहिए, और उन्होंने ऐसा कर भी दिया। 2002 के बाद से ही मेरे हर कदम को स्क्रूटिनाइज किया जाता है, बहुत कड़ी आलोचना की जाती है, लेकिन मैंने कभी इसका बुरा नहीं माना। मैंने इस बात की कोशिश की कि मुझसे कोई गलती न हो। मेरी सरकार भारत को विकास के रास्ते पर ले गई और हमारा लक्ष्य 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना है।’

नतीजों से खुश बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने गुजरात के लगभग सभी शहरों में जमकर जश्न मनाया। बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने ढोल-नगाड़े भी बजाए, पटाखे भी फोड़े और एक दूसरे पर गुलाल भी उड़ाया।

बीजेपी के 52.5 फीसदी वोटिंग प्रतिशत ने सारी कहानी कह दी। इसका मतलब यह है कि अगर सारे विरोधी मिलकर भी बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ते तो भी उसी की जीत होती। इससे पहले गुजरात में माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में 1985 में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 149 सीटें मिलीं थी। यह अब तक सबसे ज्यादा सीटों का रिकॉर्ड था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उस वक्त कांग्रेस के लिए सहानुभूति थी। दूसरा उस वक्त कांग्रेस ने जातिगत समीकरण बनाया था, जिसे ‘खाम’ कहा जाता है। KHAM का मतलब था, क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान।

इस बार मोदी के नेतृत्व में 156 सीटों के साथ हुई भारी जीत ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। इस बार बीजेपी की जीत में कोई भी जातिगत समीकरण काम नहीं आया। गुजरात में बीजेपी की यह लगातार सातवीं जीत थी। यह चुनाव सिर्फ नरेंद्र मोदी के प्रति लोगों के विश्वास और उनके विकास के कामों के भरोसे लड़ा गया। भूपेंद्र पटेल 150 से ज्यादा विधायकों के समर्थन से विधानसभा में बैठने वाले गुजरात के पहले मुख्यमंत्री होंगे। उन्हें 15 महीने पहले ही पिछले साल सितंबर में मुख्यमंत्री बनाया गया था। उस वक्त उनके पास सिर्फ 99 विधायकों का समर्थन था।

गुरुवार को चुनाव नतीजे आने के बाद भूपेंद्र पटेल सबसे पहले गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष सी. आर. पाटिल से मिले और उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने गुजरात के लोगों को शुक्रिया कहा और फिर साफ कहा कि बीजेपी की जीत नरेंद्र मोदी के प्रति गुजरात की जनता के प्यार और भरोसे का नतीजा है।

बीजेपी ने यह कमाल कैसे किया, ये समझना हो तो अहमदाबाद और सूरत के चुनाव नतीजे समझने होंगे। अहमदाबाद में विधानसभा की 21 जबकि सूरत में 16 सीटें हैं। अहमदाबाद की 21 में से 19 सीटों पर 90 फीसदी के स्ट्राइक रेट से बीजेपी जीती है, जबकि सूरत की तो सभी 16 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई यानी कि वहां 100 फीसदी का स्ट्राइक रेट रहा। अहमदाबाद की मुस्लिम बहुल सीटों पर भी BJP को अच्छा समर्थन मिला। सूरत में इस बार केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को बहुत उम्मीद थी, लेकिन वहां उनकी पार्टी का खाता भी नहीं खुला। कांग्रेस भी सूरत में शून्य पर रह गई।

सूरत की मजूरा सीट से जीत हासिल करने के बाद गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने कहा कि जनता ने उन सभी सियासी दलों को जवाब दे दिया है जो गुजरात को तोड़ने की साजिश कर रहे थे। हर्ष सांघवी नई पीढ़ी के नौजवान नेता हैं, शुरू से बीजेपी के साथ हैं। अल्पेश ठाकोर कांग्रेस से बीजेपी में आए और गांधीनगर दक्षिण सीट से जीते। कुछ महीने पहले बीजेपी में शामिल हुए पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने भी विरमगाम सीट से जीत दर्ज की।

जीत के बाद हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर ने कहा कि कांग्रेस गुजरात के लोगों की जनभावनाओं का ख्याल नहीं रखती। उन्होंने कहा कि देश और धर्म से जुड़े मुद्दों पर कांग्रेस की राय, गुजरात की जनता के रुख से अलग होती है। दोनों ने कहा कि यही वजह है कि इस बार कांग्रेस को इतनी शर्मनाक हार झेलनी पड़ी। हार्दिक पटेल ने तो यहां तक कह दिया कि अब अगले 25 साल तक गुजरात में BJP के अलावा किसी के लिए कोई जगह नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस नहीं सुधरी, तो गुजरात में खत्म हो जाएगी।

मोरबी की सीट पर बीजेपी की जीत ने सभी को चौंका दिया। चुनाव की तारीखों के ऐलान ने कुछ दिन पहले मोरबी में पुल हादसा हुआ था, जिसमें करीब 130 लोगों की मौत हो गई थी। विरोधियों को लगा था कि कम से कम इस सीट पर तो बीजेपी हारेगी लेकिन बीजेपी ने सही रणनीति बनाई। पार्टी ने मोरबी के मौजूदा विधायक और भूपेंद्र पटेल सरकार के मंत्री ब्रजेश मेरजा का टिकट काटकर कांतिलाल अमृतिया को उम्मीदवार बनाया। कांतिलाल अमृतिया ने मोरबी हादसे के बाद खुद नदी में कूदकर कई लोगों की जान बचाई थी। कांतिलाल अमृतिया ने कांग्रेस के उम्मीदवार को 61,580 वोटों से हराया।

गुजरात में बीजेपी जीतेगी यह तो सबको पहले से पता था, लेकिन कांग्रेस की इतनी बुरी हार होगी, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। जो आम आदमी पार्टी सरकार बनाने का दावा कर रही थी, वह 5 सीटों पर अटक जाएगी, ऐसा उन्होंने भी सोचा नहीं होगा। गुजरात की जनता ने उन लोगों को जवाब दे दिया जो कहते थे कि मोदी को 50 किलोमीटर का रोड शो इसलिए करना पड़ा क्योंकि बीजेपी चुनाव हार रही है।

लेकिन गुजरात में BJP की बंपर जीत सिर्फ मोदी के 5 दिन के कैंपेन और 4 घंटे की रोड शो से नहीं हुई। मोदी ने इस चुनाव को ऐतिहासिक तौर पर जीतने की तैयारी 5 साल पहले ही शुरू कर दी थी, जब 2017 के चुनाव में पार्टी को सिर्फ 99 सीटें मिली थीं। मोदी को गुजरात में इतनी कम सीटें आना बर्दाश्त नहीं हुआ, और उन्होंने उसी वक्त तय कर लिया था कि 2022 के चुनाव में इतनी सीटें जीतेंगे कि एक इतिहास बन जाए। 2017 के चुनाव के बाद एक-एक करके कांग्रेस के कई विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए। मोदी की नजर क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों पर भी थी। उनकी नजर खासतौर से उन नेताओं पर थी जिनका असर आदिवासी क्षेत्रों में है।

मोदी ने सौराष्ट्र का ध्यान रखते हुए वहां के 3 सांसदों को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया और फिर सत्ता विरोधी लहर की हवा निकालने का प्लान बनाया। उन्होंने एक झटके में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी समेत गुजरात की पूरी सरकार बदल दी। इसके बाद पाटीदार भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया और थोड़े ही दिन बाद पाटीदारों में प्रभावशाली हार्दिक पटेल और OBC नेता अल्पेश ठाकोर को बीजेपी में शामिल कर लिया। धीरे-धीरे मोदी ने गुजरात में क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों की ऐसी बिसात बिछाई कि कांग्रेस पूरी तरह चकरा गई।

अपनी चुनावी सभाओं में नरेंद्र मोदी ने गुजराती अस्मिता की बात की, और इसके साथ-साथ इतनी सारी योजनाएं, इतने सारे प्रोजेक्ट शुरू किए कि लोग अभिभूत हो गए। उदाहरण के तौर पर सेमीकंडक्टर बनाने का 20 अरब रुपये का प्रोजेक्ट और एयरफोर्स के ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भारत में बनाने का प्रोजेक्ट उन्होंने गुजरात में लगवाया। जब जमीन तैयार हो गई तो मोदी ने जबरदस्त कैंपेन किया, और गुजरात के एक-एक इलाके को कवर किया। अपने चुनाव अभियान में उन्होंने गुजरात की जनता से भावनात्मक अपील की, और कांग्रेस का पुराना रिकॉर्ड याद दिलाया। इन सारी बातों का नतीजा यह हुआ कि गुजरात में सीटों और वोटों के रिकॉर्ड टूट गए।

कांग्रेस की ऐतिहासिक हार की वजह भी बीजेपी की जीत के मंत्र में छुपी है। कांग्रेस को इस बार गुजरात में इतनी सीटें भी नहीं मिली कि वह नेता विपक्ष के पद पर दावेदारी कर सके। नेता विपक्ष के लिए कम से कम 10 फीसदी सीटें होनी चाहिए। 182 सदस्यों वाली गुजरात विधानसभा में नेता विपक्ष पद की दावेदारी के लिए कम से कम 18 सीटें होनी चाहिए थीं, लेकिन कांग्रेस सिर्फ 17 सीटें जीत सकी। गुजरात चुनाव के नतीजों पर गुरुवार को कांग्रेस का कोई नेता नहीं बोला। जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से पार्टी के खराब प्रदर्शन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘हार गए तो क्या बात करनी। अब बैंठेंगे, सोचेंगे। पता लगाएंगे कि क्यों हारे।’ खरगे ने जो कहा, वही देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की बुरी हालत की वजह है।

कांग्रेस के नेताओं को भले ही इतने बुरे प्रदर्शन के पीछे की वजह मालूम न हो, लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को जरूर पता है कि पार्टी की यह हालत क्यों हुई, और इसके लिए कौन जिम्मेदार है। गुजरात कांग्रेस में चुनाव के प्रभारी रघु शर्मा ने एक महीने पहले कांग्रेस दफ्तर के बाहर एक काउंटडाउन क्लॉक लगवाई थी, और ऊपर लिखा था कि ‘गुजरात में परिवर्तन का काउंटडाउन शुरू हो गया है। 8 दिसंबर को परिवर्तन होगा।’ गुरुवार को जब नतीजे आए तो कांग्रेस के मायूस कार्यकर्ताओं ने पार्टी के दफ्तर में लगी ‘काउंटडाउन क्लॉक’ को तोड़कर फेंक दिया।

कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं ने सड़क पर चिल्ला-चिल्ला कर कहा कि ‘पार्टी को बीजेपी ने नहीं, गुजरात कांग्रेस के नेताओं ने हराया है।’ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो कांग्रेस के जख्मों पर नमक छिड़क दिया। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस तो चुनाव से पहले ही मैदान से बाहर हो गई थी। गुजरात में चुनाव हो रहा था, और कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के इर्द-गिर्द घूम रहा था। अगर यही हाल रहा तो राहुल गांधी को कांग्रेस खोजो यात्रा निकालनी पड़ेगी।

यह बात सही है कि कांग्रेस ने गुजरात में गंभीरता से चुनाव लड़ा ही नहीं। राहुल गांधी गुजरात में एक बार मुंह दिखाने के लिए गए और सिर्फ 2 रैलियों को संबोधित किया। प्रियंका गांधी तो चुनाव प्रचार के लिए गुजरात गईं ही नहीं। कांग्रेस सिर्फ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके विश्वासपात्र रघु शर्मा के भरोसे चुनाव लड़ रही थी। कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनाव के आखिरी दौर में जरूर कुछ रैलियां कीं।

मल्लिकार्जुन खरगे भले ही पुराने और अनुभवी नेता हैं, लेकिन मेरा मानना है कि अगर किसी को लगता है कि उनके नाम पर, उनके चेहरे पर गुजरात में वोट मिलेगा तो ये नासमझी है। कांग्रेस ने ये नासमझी की। अब कांग्रेस हार के लिए तमाम तरह के तर्क देगी। वह कहेगी कि राहुल गांधी हार के लिए जिम्मेदार नहीं है क्योंकि उन्होंने गुजरात में चुनाव प्रचार नहीं किया। कुछ नेता यह कहने भी लगे हैं कि गुजरात में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने हरवा दिया, क्योंकि दोनों ने कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा दी।

मुझे लगता है कि इस तरह के तर्क बेमानी हैं। मैंने गुजरात के नतीजे देखे हैं, उनको स्टडी किया है। केजरीवाल की पार्टी के सिर्फ 5 उम्मीदवार जीते हैं। कुल 36 सीटें ऐसी हैं जिनपर अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के वोट को मिला दिया जाए तो वे बीजेपी के जीते हुए उम्मीदवारों से ज्यादा होते हैं। इनमें से खंभालिया, जमजोधपुर, धर्मपुर, लिंबड़ी, लिंबखेड़ा, ब्यारा जैसी 13 सीटें ऐसी हैं जिनमें आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले हैं। यानी कि इन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार की वजह से आम आदमी पार्टी के कैंडिडेट्स को हार का सामना करना पड़ा। 23 सीटें ऐसी हैं जिन पर कांग्रेस का उम्मीदवार, आम आदमी पार्टी की वजह से हारा। इसलिए, अगर इसको आधार बनाया गया तो AAP भी कह सकती है कि उसे कांग्रेस के कारण बड़ा नुकसान हुआ। मुझे लगता है कि यह तर्क ठीक नहीं हैं।

केजरीवाल ने दावा किया था कि IB की एक रिपोर्ट में गुजरात में AAP की जीत की बात कही गई है। उनके इस दावे पर अब बीजेपी प्रमुख जे. पी. नड्डा और गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष सी. आर. पाटिल सहित BJP के तमाम नेता जमकर व्यंग्य कर रहे हैं। नड्डा की बात सही है। केजरीवाल ने लिखकर दावा किया था कि बीजेपी गुजरात से जाने वाली है क्योंकि वहां बदलाव की आंधी चल रही है। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि गुजरात AAP के चीफ गोपाल इटालिया, CM उम्मीदवार ईशुदान गढ़वी और अल्पेश कथिरिया बड़े अंतर से चुनाव जीतेंगे। इन तीनों को हार का सामना करना पड़ा। गढ़वी खंबालिया से, इटालिया कतारगाम से और कथिरिया वराछा रोड से हार गए।

केजरीवाल के लिए राहत की सिर्फ इतनी सी है कि उन्होंने गुजरात चुनावों में 12.9 फीसदी वोट हासिल किए। ईशुदान गढ़वी ने दावा किया कि AAP ने इस बार भले ही सिर्फ 5 सीटें जीती हों, लेकिन 2027 के चुनावों में वह BJP की तरह प्रचंड जीत हासिल करेगी।

केजरीवाल की यह बात सही है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन दावों से कम लेकिन उम्मीद से बेहतर रहा है। केजरीवाल अपनी पार्टी को 10 साल में ही चुनाव आयोग से राष्ट्रीय दल का दर्जा दिलवाने में कामयाब रहे।

असल में केजरीवाल को सफलता वहां मिलती है जहां कांग्रेस कमजोर होती है। ऐसा भी कह सकते हैं कि कांग्रेस जब मजबूती के साथ चुनाव नहीं लड़ती तो आम आदमी पार्टी मौके का पूरा फायदा उठाती है। जब उत्तराखंड में कांग्रेस ने मजबूती से चुनाव लड़ा, बीजेपी को टक्कर दी, तो वहां केजरीवाल के ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। पंजाब में कांग्रेस आपस में लड़ी, वहां केजरीवाल को बंपर जीत मिल गई। सबसे ताजा उदाहरण हिमाचल प्रदेश का है, जहां कांग्रेस ने इस बार पूरा जोर लगाया तो उसे बहुमत मिल गया लेकिन केजरीवाल की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और सिर्फ 1.10 फीसदी वोट मिले।

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