Rajat Sharma

लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में बगावत

akb राजनीति की दुनिया में जिन नेताओं ने नरेन्द्र मोदी को हराने के लिए मोर्चा बनाया था, उन्हें मंगलवार को एक के बाद एक कई झटके लगे. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में बगावत हो गई. सपा के सात विधायकों ने क्रास वोटिंग करके बीजेपी के उम्मीदवार को जिता दिया. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के 6 विधायकों ने खुलकर क्रास वोटिंग की , बीजेपी के उम्मीदवार हर्ष महाजन चुनाव जीत गए, अब सुखविन्दर सिंह सुक्खू की सरकार पर खतरा है. बिहार में कांग्रेस और RJD के तीन विधायकों ने पार्टी छोड़ दी, बीजेपी के साथ चले गए. महाराष्ट्र में एक कांग्रेस नेता ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का साथ पकड़ लिया. गुजरात में भी कांग्रेस के एक नेता ने पाला बदल लिया. एक के बाद एक विपक्ष को कई झटके लगे. झटके भी ऐसे कि अब जवाब देते नहीं बन रहा है.

हिमाचल प्रदेश

सबसे तगड़ा हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खु को लगा. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, 68 में से चालीस विधायक कांग्रेस के हैं, बीजेपी के पास सिर्फ 25 विधायक हैं. इसके बाद भी बीजेपी राज्यसभा के चुनाव में अपने उम्मीदावर हर्ष महाजन को जिताने में कामयाब रही. कांग्रेस के 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की. कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी और बीजेपी के हर्ष महाजन, दोनों को 34-34 वोट मिले हैं, मैच टाई हुआ, उसके बाद ड्रा के जरिए हर्ष महाजन को विजयी घोषित कर दिया गया और अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी हार स्वीकार कर ली. ये कांग्रेस की बड़ी हार है क्योंकि 68 सीटों वाली विधानसभा में 40 विधायक कांग्रेस के हैं. तीन निर्दलीयों का समर्थन कांग्रेस को था. इसके बाद भी सिंघवी को सिर्फ 34 वोट मिले जबकि महाजन को 9 वोट ज्यादा मिले क्योंकि कांग्रेस के छह विधायकों ने क्रास वोट किया और तीन निर्दलीयों ने भी महाजन के पक्ष में वोट दिया. हिमाचल में कांग्रेस के साथ खेल होने वाला है, इसका अंदाजा उसी दिन लग गया था जब हर्ष महाजन दो हफ्ते पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए और बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया. काँग्रेस सिंघवी का जीतना पक्का मान कर आराम से बैठी रही. बीजेपी ने जब राज्यसभा में हर्ष महाजन को उतारा तो भी पार्टी के नेता सतर्क नहीं हुए. इस बात की खबरें आ रही थीं कि हर्ष महाजन को कांग्रेस तोड़ने के लिए लाया गया है लेकिन तो भी काँग्रेस के नेता निश्चिंत रहे. हालत ये हो गई कि जो विधायक अभिषेक मनु सिंघवी के नामांकन में प्रस्तावक थे, उन्होंने भी सिंघवी को वोट नहीं दिया, क्रॉस वोटिंग की. हर्ष महाजन कांग्रेस के पूर्व सीएम स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के करीबी रहे हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह मुख्यमंत्री पद की दावेदार थीं. उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह सुक्खू सरकार में मंत्री हैं. माना जा रहा है कि ये दोनों अंदर ही अंदर हर्ष महाजन का समर्थन कर रहे हैं. इसीलिए राज्यसभा चुनाव में हर्ष महाजन की जीत हिमाचल की सरकार के लिए खतरा है. अगर ये हुआ तो कांग्रेस के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब होगा.

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के राज्यसभा चुनाव में बीजेपी अपने सभी आठ उम्मीदवारों को जिताने में कामयाब रही. समाजवादी पार्टी के दो उम्मीदवार जीते. सपा के तीसरे उम्मीदवार आलोक रंजन बीजेपी के संजय सेठ से दस वोट से हार गए. सपा को तीसरा उम्मीदवार जिताने के लिए सिर्फ तीन वोट चाहिए थे, दूसरी तरफ बीजेपी को आठवें उम्मीदवार संजय सेठ को जिताने के लिए नौ वोटों की जरूरत थी. इसके बाद बीजेपी ने दस वोट के अंतर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को हराया. ये अखिलेश यादव के लिए बहुत बड़ी परेशानी हैं. मंगलवार को समाजवादी पार्टी के छह बागी विधायक उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के साथ विधानसभा में वोट डालने पहुंचे. सबको समझ में आ गया था कि क्या होने जा रहा है. सपा के सात विधायक सोमवार की रात को अखिलेश यादव की डिनर मीटिंग में नहीं पहुंचे थे और उन्हीं विधायकों ने मंगलवार को खेल कर दिया. सबसे बड़ा उलटफेर किया समाजवादी पार्टी के चीफ व्हिप मनोज पांडेय ने. मनोज पांडेय रायबरेली जिले की ऊंचाहार सीट से विधायक हैं. उन्होंने सबसे पहले चीफ व्हिप के पद से इस्तीफा दिया, इसके बाद सपा के तीन विधायक राकेश पांडेय, अभय सिंह और राकेश प्रताप सिंह एक साथ विधानसभा पहुंचे और सपा कार्यालय जाने की बजाए सीधे मंत्रियों से मिले. इनके अलावा मनोज पांडेय, पूजा पाल, आशुतोष मौर्य और विनोद चतुर्वेदी भी वोट डालने के लिए बीजेपी नेताओं के साथ लाइन में लगे दिखाई दिए. इसके बाद समाजवादी पार्टी की रही-सही उम्मीदें टूट गईं. दोपहर तक अखिलेश यादव भी समझ गए थे कि उनकी पार्टी में विद्रोह जैसी स्थिति है. अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा, “ हमारी राज्यसभा की तीसरी सीट दरअसल सच्चे साथियों की पहचान करने की परीक्षा थी और ये जानने की कि कौन-कौन दिल से PDA के साथ और कौन अंतरात्मा से पिछड़े, दलित और असल्पसंख्यकों के खिलाफ है. अब सब कुछ साफ है. यही तीसरी सीट की जीत है.” बीजेपी खेमे में सपा के तीसरे उम्मीदवार को हराने के लिए फूलप्रूफ प्लानिंग की गई थी. और योगी आदित्यनाथ के चक्रव्यूह में अखिलेश यादव की साइकिल बुरी तरह फंस गई. योगी सरकार में मंत्री सुरेश खन्ना सपा विधायकों के साथ लगातार संपर्क में रहे लेकिन अखिलेश यादव को कानों कानों खबर नहीं लगी. वोटिंग के बाद सुरेश खन्ना ने कहा कि हारने वाले तो आरोप लगाते हैं इसका बुरा क्या मानना लेकिन विधायकों ने अंतरात्मा की आवाज़ पर वोट डाला है, इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. समाजवादी पार्टी में किसी नेता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि मनोज पांडेय, जो पार्टी के मुख्य सचेतक हैं, वो पाला बदल लेंगे. मनोज पांडेय रायबरेली ज़िले की ऊंचाहार सीट से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. 2012 में ऊंचाहार विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी. मनोज पांडेय तब से लगातर चुनाव जीत रहे हैं, अखिलेश सरकार में मंत्री रहे, इसलिए मनोज पांडे ने जब अपना इस्तीफा भेजा तो ये अखिलेश के लिए बड़ा झटका था. राज्यसभा चुनाव में जो हुआ उसका असर लोकसभा चुनाव तक दिखेगा. लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश और राहुल गांधी के लिए ये बड़ा झटका है. योगी की रणनीति की ये बड़ी जीत है. बगावत समाजवादी पार्टी में हुई है, लेकिन लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान समाजवादी पार्टी के साथ साथ कांग्रेस को हो सकता है. मनोज पांडेय रायबरेली के बड़े नेता हैं. 2017 में रायबरेली लोकसभा सीट के अंदर आने वाली सात में छह सीटें समाजवादी पार्टी ने जीती थीं लेकिन 2022 के चुनाव में बीजेपी ने पूरी ताकत लगाई. लेकिन इसके बाद भी मनोज पांडे को नहीं हरा पाई. एक सीट को छोड़कर बाकी पांच सीटें समाजवादी पार्टी से छीन लीं. अब मनोज पांडे भी बीजेपी के साथ होंगे. चर्चा ये है कि इस बार राहुल गांधी अमेठी की बजाए रायबरेली से चुनाव लड़ सकते हैं और बीजेपी राहुल के मुकाबले में मनोज पांडेय को उतार सकती है. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस के हाथ से रायबरेली सीट भी निकल सकती है. वैसे ये भविष्य की बात है.

कर्नाटक

क्रॉस वोटिंग तो कर्नाटक में भी हुई लेकिन इससे चुनाव के नतीजों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा. कर्नाटक में राज्यसभा की चार सीटों के लिए मतदान हुआ, कांग्रेस के तीन और बीजेपी को एक सीट पर जीत मिली. जनता दल-एस का उम्मीदवार चुनाव हार गया. विधानसभा में कुल 224 सीटें हैं, हर उम्मीदवार को जीत के लिए 46 वोट चाहिए थे. कांग्रेस ने अजय माकन, नासिर हुसैन और जीसी चंद्रशेखर को मैदान में उतारा था, वहीं बीजेपी ने नारायण बंदागे को अपना उम्मीदवार बनाया था. ये चारों चुनाव जीत गए. अपने उम्मीदवार को जिताने के बाद, बीजेपी के पास 20 विधायकों के वोट सरप्लस थे. जेडीएस और बीजेपी के मिलाकर 39 विधायक होते हैं. अगर सात वोट और मिल जाते, तो जेडीएस उम्मीदवार कुपेंद्र रेड्डी भी जीत जाते लेकिन कांग्रेस के किसी भी विधायक ने क्रॉस वोटिंग नहीं की. उल्टे बीजेपी के एसटी सोमशेखर ने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया. वहीं एक और विधायक शिवराम हेब्बार वोट डालने ही नहीं आए. यूपी और हिमाचल में तो विपक्ष के नेता बीजेपी पर विधायकों को खरीदने का इल्जाम लगा रहे हैं लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है. बीजेपी के दो विधायकों ने गड़बड़ी की. तो क्या ये माना जाए कि कर्नाटक में कांग्रेस ने विधायकों को खरीदा, दबाव डाला? राज्यसभा के चुनाव में पार्टी के चुनाव निशान की बजाए उम्मीदवारों के नाम पर वोट डाले जाते हैं. इसलिए कैंडीडेट सिलैक्शन और मैनेजमेंट का बड़ा रोल होता है. यूपी में अखिलेश यादव और हिमाचल में सुखविन्दर सिंहे सुक्खू ने बेहतर मेंजनमेंट नहीं किया, वहां पार्टी टूट गई. कर्नाटक में डी के शिवकुमार का मैनेजमेंट बीजेपी पर भारी पड़ा और कांग्रेस ने तीनों उम्मीदवार जिता लिए लेकिन हार-जीत से सबक सीखने की बजाय, आत्ममंथन करने की बजाय कांग्रेस के नेता बीजेपी पर आरोप लगा रहे हैं. इससे तो हालात नहीं सुधरेंगे.

बिहार

बिहार में RJD विधायक संगीता कुमारी और कांग्रेस के 2 विधायक मुरारी प्रसाद गौतम और सिद्धार्थ सौरव बीजेपी खेमे में शामिल हो गए. ये तीनों उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के साथ विधानसभा में पहुंचे. तीनों विधायक विपक्ष में बैठने की बजाय सत्ता पक्ष की सीट पर जाकर बैठे. महागठबंधन के लिए ये दूसरा झटका है. 12 फरवरी को नीतीश सरकार के विश्वास प्रस्ताव के दौरान भी आरजेडी के तीन विधायक सत्ता पक्ष की तरफ जाकर बैठे थे और आज तीन विधायक और टूट गए. संगीता देवी मोहनिया से आरजेडी की दलित विधायक हैं. उन्होंने कहा कि आरजेडी में दलितों का सम्मान नहीं हो रहा था. चर्चा तो ये है कि अगले कुछ दिनों में कांग्रेस और आरजेडी के कुछ और विधायक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. बिहार में कांग्रेस के कुल 19 विधायक हैं और दावा ये किया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले 19 में से 12 विधायक कांग्रेस छोड़ सकते हैं. कुछ विधायक बजट सत्र में और कुछ उसके बाद बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. चर्चा ये है कि बीजेपी कांग्रेस छोड़ कर आये विधायक मुरारी गौतम को सासाराम से लोकसभा चुनाव लड़वा सकती है. मुरारी गौतम अभी रोहतास जिले की चेनारी से विधायक हैं. वो महागठबंधन सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.

महाराष्ट्र
बिहार के अलावा महाराष्ट्र में प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बसवराज पाटिल ने भी पार्टी छोड़ दी और वह उपमुख्यमंत्री देवेंद्र उडनवीस की मोजूदगी में बीजेपी में शामिल हो गए. पाटिल मंत्री रह चुके हैं और वह मराठवाड़ा में एक प्रमुख लिंगायत नेता हैं. इससे पहले पूर्व सीएम अशोक चह्वाण कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए और मिलिंद देवड़ा कांग्रेस छोड़ कर सीएम एकनाथ शइंदे की शिव सेना में शामिल हो गए. दोनों राज्य सभा के लिए निर्वार्चित भी हो गए. बाबा सिद्दिकी कांग्रेस से इस्तीफा देकर अजित पवार की एनसीपी में शामिल हो गए.

गुजरात

गुजरात कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री नारणभाई राठवा भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. नारणभाई राठवा गुजरात के छोटा उदेपुर के एक प्रमुख नेता हैं. इस समय बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात में सीट शेयरिंग पर पेंच फंसा हुआ है. दिल्ली में तो अरविन्द केजरीवाल ने अपनी तरफ से दिल्ली और हरियाणा में पार्टी के उम्मीदवारों के नामों का एलान भी कर दिया .लेकिन कांग्रेस के नेता सिर्फ खामोशी से तमाशा देख रहे हैं क्योंकि कोई फैसला राहुल गांधी की अनुमति के बगैर हो नहीं सकता. राहुल गांधी इंग्लैड में हैं.कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दो लेक्चर देने के बाद भारत लौटेंगे और उसके बाद भारत जोडो न्याय यात्रा पर निकल जाएंगे. अब कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि वो करें तो क्या करें? कहें तो किससे कहें? इसलिए जिनकी मजबूरी है, कोई विकल्प नहीं है, वो चुपचाप वक्त का इंतजार कर रहे हैं. और जिनको मौका मिल रहा है, वो अपना रास्ता अलग कर रहे हैं. कांग्रेस के सामने मुश्किल ये है कि राहुल हालात की गंभीरता को समझ नहीं रहे और मुकाबला नरेन्द्र मोदी से है. कांग्रेस अभी तक सीट शेयरिंग पर बात फाइनल नहीं कर पाई है और उधर नरेन्द्र मोदी ने केरल, तमिलनाडु, गुजरात, उत्तर प्रदेश में कैंपेन शुरू कर दिया है.

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