Rajat Sharma

लखीमपुर हिंसा: सभी पक्ष शांति बनाए रखें

लखीमपुर खीरी में जिस तरह से लोगों की हत्या की गई उससे पूरे देश में गम और गुस्सा है। यहां जिस तरह से लाशों पर सियासत हो रही है, उसका दुख भी कम नहीं है। सियासी फायदे के लिए राजनेता अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं। लखमीपुरी खीरी में रविवार को आठ लोगों की मौत हुई। मौत शब्द शायद ठीक नहीं है। जिन आठ लोगों की जान गई उनमें चार सिख किसान हैं, तीन बीजेपी के कार्यकर्ता हैं और एक लोकल जर्नलिस्ट है।

AKB उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में रविवार को सिख किसानों और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद जबरदस्त टेंशन है। यूपी, हरियाणा और पंजाब में किसान संगठनों के साथ समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और अकाली कार्यकर्ताओं ने राज्यव्यापी विरोध-प्रदर्शन किया। मेरठ में विरोध प्रदर्शन के दौरान समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एसएसपी और अन्य पुलिस कर्मियों पर पेट्रोल फेंका जिससे वे झुलस गए। कांग्रेस नेता प्रियंका वाड्रा को सीतापुर में हिरासत में रखा गया है। लखीमपुर जा रहे किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी को हिरासत में लेने के बाद रिहा कर दिया गया है। सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को लखीमपुर खीरी जाने से रोक दिया गया है।

लखीमपुर खीरी में जिस तरह से लोगों की हत्या की गई उससे पूरे देश में गम और गुस्सा है। यहां जिस तरह से लाशों पर सियासत हो रही है, उसका दुख भी कम नहीं है। सियासी फायदे के लिए राजनेता अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं। लखमीपुरी खीरी में रविवार को आठ लोगों की मौत हुई। मौत शब्द शायद ठीक नहीं है। जिन आठ लोगों की जान गई उनमें चार सिख किसान हैं, तीन बीजेपी के कार्यकर्ता हैं और एक लोकल जर्नलिस्ट है।

पुलिस ने लखीमपुर खीरी से बीजेपी सांसद और गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 14 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इन लोगों पर हत्या, दंगा फैलाना और आपराधिक साजिश के आरोप लगाए हैं। हिंसा में आशीष मिश्रा के ड्राइवर समेत तीन लोगों की प्रदर्शनकारियों ने हत्या कर दी। देश की जनता ने वह वीडियो भी देखा जिसमें कुछ प्रदर्शनकारी घायल ड्राइवर को लाठियों से पीट-पीटकर मार रहे थे।

हिंसा दोनों तरफ से हुई, लाशें दोनों तरफ की गिरीं लेकिन इस सवाल का जवाब पाने में वक्त लगेगा कि इस हिंसा के लिए जिम्मेदार कौन है। यूपी सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से पूरे मामले की जांच कराने का भरोसा दिया है लेकिन विपक्ष ये मांग कर रहा है कि जांच सिटिंग जज से कराई जाए। यह आरोप लगाया जा रहा है कि प्रदर्शनकारी किसान हिंसा की तैयारी करके आए थे। मंत्री के काफिले का विरोध कर रहे इन किसानों के बीच कुछ शरारती और राष्ट्र विरोधी लोग घुसे थे जो मंत्री के काफिले को रोकने की कोशिश कर रहे थे। वहीं दूसरे पक्ष की ओर से यह आरोप लगाया जा रहा है कि मंत्री के समर्थकों ने किसानों को सबक सिखाने की नीयत से पूरी तैयारी के साथ प्रदर्शनकारियों पर हमला किया।

सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने वीडियो दिखाया कि कैसे यह झड़प हुई। हमने वह वीडियो भी दिखाया कि कैसे एक जलती हुई गाड़ी के पास एक शव पड़ा हुआ था और कुछ प्रदर्शनकारी एक घायल शख्स को पीट-पीटकर मार रहे थे। जिस शख्स पर लाठियां बरसाई जा रही थीं वह उस गाड़ी का ड्राइवर हरिओम मिश्रा था, जिसने विरोध कर रहे किसानों को कुचल दिया था। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि मंत्री का बेटा भी गाड़ी में था और जब ड्राइवर का संतुलन बिगड़ा और गाड़ी पलट गई तो वह भाग गया। किसानों का आरोप है कि आशीष मिश्रा के आदेश पर ही ड्राइवर ने गाड़ी से किसानों की भीड़ को कुचल दिया।

हमने एक और वीडियो दिखाया जिसमें साफ तौर पर नजर आ रहा है कि कुछ प्रदर्शनकारी श्याम सुंदर मंडल नाम के एक स्थानीय ग्रामीण की पिटाई कर रहे हैं। मरने से पहले हमलावरों ने जबरन उससे यह कबूल करवाने की कोशिश की कि आशीष मिश्रा के आदेश पर ही गाड़ी से भीड़ में शामिल लोगों को कुचला गया। मंडल के परिवार के लोगों का कहना है कि उसका हिंसा से किसी तरह का कोई लेना-देना नहीं था। वह तो गृह राज्यमंत्री द्वारा आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता देखने गया था लेकिन इस झड़प में फंस गया। यह वीडियो वाकई बहुत भयानक और दुखद है।

इस वीडियो में मंडल यह कहते हुए सुना जा रहा है कि उसे आशीष मिश्रा ने यह देखने के लिए भेजा था कि वहां कितनी भीड़ जमा है। हमलावरों ने मंडल को बार-बार ये कबूल करने के लिए कहा कि उसे आशीष मिश्रा ने भीड़ पर गाड़ी चढ़ाने के लिए भेजा था। लेकिन मंडल ने यह कहने से इनकार कर दिया। इसके बाद लाठियों से पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी गई।

किसान नेताओं का कहना है कि प्रदर्शनकारी तभी हिंसक हुए जब भीड़ को गाड़ी से कुचला गया। हिंसा भड़काने का उनका कोई इरादा नहीं था। लेकिन मेरे पास जो वीडियो है वो इस बात का समर्थन नहीं करता । इस वीडियो में ये दिख रहा है कि लाठी-डंडे और तलवारों से लैसे सैकड़ों लोग गाड़ियों के काफिले को घेर रहे थे। इस वीडियो में लोग गालियां दे रहे हैं। गाड़ी से लोगों को खींचकर पीट रहे हैं। उनपर डंडे बरसा रहे हैं और पीछे से कुछ लोग ये कहते हुए भी सुनाई दे रहे हैं कि ‘गाड़ी पलटाओ.. गाड़ी को तोड़ दो..भागने मत दो…मारो…मार डालो…मत छोड़ो’।

किसान नेताओं का कहना है कि वे मंत्री को काले झंडे दिखाना चाहते थे लेकिन मंत्री का बेटा हर हाल में रास्ते से भीड़ को हटाना चाहता था और भीड़ को कुचलता हुआ वह तिकोनिया गांव तक चला गया। कुछ किसानों ने आरोप लगाया कि आशीष मिश्रा ने अपनी पिस्टल से गोलियां चलाई जिससे प्रदर्शनकारी और भड़क गए। हमारी रिपोर्टर रुचि कुमार ने वहां गांववालों से बात की। ग्रामीणों ने कहा-आशीष मिश्रा गाड़ी के अंदर मौजूद थे और उन्हीं की गाड़ी से किसानों को कुचला गया।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना पर तेजी से एक्शन लिया और उत्तर प्रदेश के तमाम आला अधिकारियों को लखीमपुर खीरी भेजा। किसान संगठनों के नेताओं और पीड़ित परिवारों के साथ इन अधिकारियों ने बात की और किसान नेताओं की मांग के मुताबिक सुलह का फॉर्मूला निकाला। राज्य सरकार ने मृतकों के परिवारों को 45 लाख रुपये का मुआवजा और प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है। लेकिन इन सारे प्रयासों के जरिए शांति बहाल करने की कोशिश को राजनेताओं ने सियासी फायदे के चक्कर में बेकार कर दिया।

कांग्रेस लीडर प्रियंका गांधी सबसे पहले लखीमपुर खीरी के लिए निकलीं लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। उन्हें सीतापुर के पीएसी गेस्ट हाउस में हिरासत में रखा गया है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी लखीमपुर जाने के लिए निकले लेकिन उन्हें भी लखनऊ में ही प्रशासन ने रोक दिया। अन्य दलों के नेताओं को भी लखीमपुर खीरी जाने से रोक दिया गया। कांग्रेस ने अपने दो मुख्यमंत्रियों, पंजाब के चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को लखीमपुर खीरी पहुंचने के लिए कहा लेकिन इन दोनों को भी रोक दिया गया। इससे जाहिर है कि कांग्रेस पार्टी इस घटना को कितनी अहमियत दे रही है क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं।

लखीमपुर खीरी केस में इतने सारे बयान, वीडियोज और इतने दावे हैं कि ये कहना बड़ा मुश्किल है कि कौन सा वीडियो पहले आया और कौन सा बाद में आया। ज्यादातर वीडियो हालांकि लोकल लोगों ने बनाए हैं इसीलिए ये कहना भी मुश्किल है कि भड़काने का काम किसने पहले किया, किसने रिएक्ट किया। गलती दोनों तरफ से हुई है। लेकिन यूपी और पंजाब के सभी अहम सियासी दल इस मैदान में कूद पड़े क्योंकि इन राज्यों में जल्द ही चुनाव होने हैं।

विपक्ष के नेताओं को लगा कि इस मुद्दे पर योगी आदित्यनाथ को घेरा जा सकता है। वो आश्वस्त थे कि किसानों की मौत इतना संवेदनशील मामला है कि इसे आसानी से नहीं सुलझाया जा सकेगा इसलिए सबने लखीमपुर खीरी जाने की कोशिश की। एक से एक बढ़कर मांग की। राजनीतिक लाभ लेने की होड़ शुरू हो गई। सरकार ने 45 लाख रुपए की मदद की राशि का ऐलान किया तो विपक्षी दलों में से किसी ने दो करोड़ देने की मांग की तो किसी ने 5 करोड़ की। जब राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से जांच कराने की मांग की तो विपक्षी दलों में से किसी ने हाईकोर्ट के सिटिंग जज से जांच कराने की मांग की तो किसी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हो।

लेकिन मैं कहूंगा कि योगी आदित्यनाथ ने सूझ-बूझ से काम लिया और इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं बनाया। उन्होंने तुरंत जांच का आदेश दिया, मुआवजे का ऐलान किया। उन्होंने तुरंत पुलिस के आला अधिकारियों को मौके पर भेजा। इन अधिकारियों ने इस मामले की गंभीरता को समझा और लोगों को समझा-बुझा कर इसे शांत किया। कम से कम इतना हुआ कि ये मामला और आगे नहीं बढ़ा। वरना, ऐसे मामलों में राजनैतिक बयानबाजी एक चिंगारी का काम करती हैं और आग कभी भी भड़क सकती है। शांति ही एकमात्र समाधान है और यही समय की मांग है।

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