Rajat Sharma

राज्यसभा: यह तय करें कि भविष्य में फिर ऐसा तमाशा न हो

AKB30 पूरे देश ने गुरुवार को राज्यसभा में हुए हंगामे की उस तस्वीर को देखा जो बेहद शर्मनाक है। सदन के अंदर सांसद पुरुष और महिला मार्शलों के साथ धक्का-मुक्की और हाथापाई करते नजर आए। सदन के अंदर हुई धक्का-मुक्की और हाथापाई के लिए सरकार और विपक्ष दोनों ने एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया।

विपक्षी सांसदों के साथ संसद भवन से विजय चौक तक मार्च करने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे और शिवसेना नेता संजय राउत ने आरोप लगाया कि राज्यसभा में विरोधी दलों के सांसदों को पिटवाने के लिए बाहर से गुंडे बुलाए गए थे और उन्हें मार्शल की ड्रेस पहनाकर संसद में तैनात किया गया था। पीयूष गोयल, अनुराग ठाकुर और प्रह्लाद जोशी सहित सरकार के आठ मंत्रियों ने इसे सरासर झूठ बताते हुए खारिज कर दिया। इन लोगों ने आरोप लगाया कि कुछ सांसदों ने हाथापाई के दौरान एक महिला मार्शल को घायल कर दिया था।

पीयूष गोयल ने इल्जाम लगाया कि कुछ सांसदों ने एक महिला मार्शल के साथ हाथापाई की और उसे खींचकर गिरा दिया। फिर राज्यसभा का वो वीडियो भी सामने आया जिसमें साफ दिख रहा है कि महिला मार्शल के साथ धक्कामुक्की हो रही है। इस पर विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने सेलेक्टिव वीडियो जारी किया है। संजय राउत ने यहां तक कह दिया कि उन्हें ऐसा लगा कि वह हिंदुस्तान-पाकिस्तान की बॉर्डर पर हैं।

गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने हंगामे के समय सभी वीडियो क्लिप और सदन के अंदर मौजूद सभी सुरक्षा अधिकारियों (मार्शल) की लिस्ट दिखाई। मैंने विपक्ष के इस आरोप को जांचने के लिए 42 मार्शलों में से हर एक की पहचान की कि बाहरी लोगों को मार्शल की वर्दी में लाया गया था या नहीं। मैंने मार्शलों की मेडिकल रिपोर्ट भी दिखाई, जिन्हें चोटें आई हैं।

राहुल गांधी ने यह आरोप लगाते हुए कि बाहर से मार्शल की वर्दी पहनकर आए आरएसएस के लोगों ने सांसदों को पीटा, राज्यसभा के चेयरमैन की गरिमा और निष्पक्षता पर सवाल उठाए। ये बहुत गंभीर बात है। पूर्व में विपक्ष प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों के खिलाफ आरोप लगाता था लेकिन आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि चेयरमैन की निष्पक्षता पर सवाल उठाया गया हो। ये पहली बार हुआ है। विपक्ष ने राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडू पर संदेह की उंगली उठाकर उनके आंसुओं का मजाक उड़ाया है।

राहुल गांधी पिछले 17 साल से संसद के सदस्य हैं और देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके द्वारा लगाए गए इस तरह के गंभीर आरोप की विस्तार से जांच की जरूरत है।

अपने शो में मैंने आपको वह फुटेज दिखाया जो कैमरे में रिकॉर्ड तो हुए लेकिन प्रसारण के सख्त नियमों के कारण टीवी पर टेलीकास्ट नहीं हुए। शाम 6 बजकर 2 मिनट पर बीमा संशोधन विधेयक सदन के अंदर पेश किया जा रहा था उसी समय तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने अपनी पार्टी की सहयोगी डोला सेन की ओर इशारा किया। डोला सेन अपनी पार्टी की सांसद शांता छेत्री के गले में एक रस्सी जैसे कपड़े को बांधकर वेल में पहुंच गईं और नारे लगाने लगीं। इस दौरान विरोधी दलों के दूसरे सांसद अपनी सीटों पर खड़े होकर नारेबाजी कर रहे थे।

जैसे ही डोला सेन और शांता छेत्री चेयर की ओर बढ़ीं, मार्शल आगे बढ़े और चेयरमैन के आसन को घेर लिया। ऐसा लगा कि वो पूरे एरिया को चारों तरफ से सुरक्षित करना चाहते हैं। उस समय बीजू जनता दल के सस्मित पात्रा चेयर पर बतौर पीठासीन अधिकारी मौजूद थे।

शाम करीब छह बजकर पांच मिनट पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना के सांसद वेल में पहुंच गए और नारेबाजी करने लगे। उन्होंने रिपोर्टर्स की मेज के चारों ओर एक घेरा बना लिया। 6 बजकर 22 मिनट पर डोला सेन ने पहले लीडर ऑफ द हाउस पीयूष गोयल को धक्का दिया और फिर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी का रास्ता रोकने की कोशिश की। शाम 6 बजकर 26 मिनट पर कांग्रेस के व्हिप लीडर नासिर हुसैन, शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी और तृणमूल कांग्रेस की अर्पिता घोष ने चेयर की तरफ पेपर फाड़कर फेंके।

जब मैंने दूसरे कैमरों के फुटेज देखे तो ये देखकर हैरान रह गया कि तृणमूल कांग्रेस के सांसद जब वेल में हंगामा कर रहे थे उस वक्त तृणमूल कांग्रेस के एमपी सुखेन्दु शेखर रॉय इंश्योरेंस बिल पर भाषण दे रहे थे। इसके बाद बिल पर BJD और AIADMK के नेता भी बोले। ऐसा लगा कि सदन में कार्यवाही चलने लगी है। कुछ ही देर में जब विरोधी दलों के कुछ नेताओं को लगा कि सदन चलने लगा तो फिर वे एकदम एग्रेसिव हो गए, नारेबाजी करने लगे, धक्कामुक्की शुरू हुई, पेपर फाड़कर चेयर की तरफ फेंके गए और करीब 24 सांसद वेल में दाखिल हो गए।

इसके बाद वहां मार्शल ने रिपोर्टर्स की टेबल को घेर लिया था। महिला मार्शल को देखकर विरोधी दलों के नेताओं ने अपनी महिला सांसदों को आगे किया। छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की सांसद फुलो देवी नेताम और छाया वर्मा रिपोर्टर्स की टेबल के सामने खड़ी लेडी मार्शल को हटाने की कोशिश करने लगीं। जिससे पुरूष सासदों के चेयर और रिपोर्टर्स की टेबल तक पहुंचने का रास्ता क्लीयर किया जा सके। इसके बाद फुलो देवी नेताम और छाया वर्मा ने पहले लेडी मार्शल से हाथापाई और फिर धक्कामुक्की की।

वीडियो फुटेज में इस बात के सबूत हैं कि फुलो देवी नेताम ने महिला मार्शल की गर्दन पकड़ रखी थी और अपने सिर से उसके चेहरे पर हमला करने की कोशिश भी की। जिस महिला के साथ ये बदसलूकी हुई उसका नाम अक्षिता भट्ट है। वह राज्यसभा में सुरक्षा सहायक हैं। उसकी गर्दन पर चोट के निशान थे और शरीर के कुछ हिस्सों में सूजन थी। मेरे पास सबूत के तौर पर उसकी मेडिकल रिपोर्ट है जो पार्लियामेंट हाउस के CGHS के सीएमओ की साइन की हुई है। अक्षिता के कंधे और छाती की एक्स-रे रिपोर्ट में गंभीर चोटें आई हैं।

अक्षिता भट्ट ने अपनी शिकायत में कांग्रेस के 2 सांसद फूलो देवी नेताम और छाया वर्मा पर मारपीट करने का आरोप लगाया है। उसने अपनी शिकायत में कहा, ‘मैंने संयम बनाए रखा और और पीछे नहीं हटी। इस वजह से मुझे कई जगह चोटें आई हैं।’ अक्षिता की बाईं कलाई और बाएं कंधे पर सूजन आ गई है।

सदन की कार्यवाही छह बजकर दस मिनट पर स्थगित की गई लेकिन फिर 15 मिनट के बाद राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई। कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा चेयर की तरफ चढ़ने की कोशिश करते दिखाई दिए। इसके बाद रिपुन बोरा रिपोर्टर्स की टेबल पर चढ़कर चेयर की तरफ जाना चाह रहे थे। करीब 7 से 8 मिनट बाद वहां तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन आए। उनके हाथ में मोबाइल था और वे सारा हंगामा रिकॉर्ड कर रहे थे। टीएमसी की अर्पिता घोष, मौसम नूर और डोला सेन सदन की पहली कतार में बेंच पर खड़ी थीं। हैरानी की बात ये है कि एक तरफ विरोधी दलों के सांसद हंगामा कर रहे थे तो दूसरी तरफ इसी हंगामे के बीच आरजेडी के मनोज झा और आम आदमी पार्टी के सासंद सुशील कुमार गुप्ता चर्चा में हिस्सा ले रहे थे।

राज्यसभा में क्या हुआ, कैसे हुआ, किसने क्या किया, ये बताने की जरूरत नहीं है। बुधवार की शाम को सदन के अंदर जो हुआ उसकी 20 से अधिक तस्वीरें मेरे पास हैं।

कैमरे की फुटेज में कौन किसको मारा, यह बताने की जरूरत नहीं है। बुधवार की शाम को सदन के अंदर जो हुआ उसकी 20 से अधिक तस्वीरें मेरे पास हैं। बुधवार शाम जिस वक्त डोला सेन और शांता छेत्री ने कपड़े का फंदा बनाकर वेल में नारे लगाए, उसके कुछ देर बाद कांग्रेस सांसद फुलो देवी नेताम ने पेपर फाड़कर चेयर की तरफ फेंका, ये सारी तस्वीरें हैं। जिस वक्त लीडर ऑफ हाउस पीयूष गोयल और संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी चेयरमैन के चेंबर से सदन में दाखिल हो रहे थे तब डोला सेन ने दोनों का रास्ता रोका। इसके बाद कांग्रेस सांसद नासिर हुसैन ने शिवसेना के एमपी संजय राउत को सिक्योरिटी ऑफिशियल्स के आगे कर दिया जिससे टेबल ऑफ द हाउस को घेरा जा सके और फिर उन्हें वापस अपनी तरफ खींचा। उसी वक्त कुछ और सांसद ई करीम, रिपुन बोरा, बिनोय बिस्वम और अखिलेश प्रसाद सिंह वेल में आ गए। CPM के राज्यसभा सांसद ई. करीम ने एक मार्शल से धक्कामुक्की की और मार्शल का गला दबाया। इन्ही तस्वीरों में एक लेडी मार्शल को खींचने और घसीटने की भी तस्वीर है। वेल के अंदर उनके साथ मारपीट की गई। पूरी घटना कैमरे में रिकॉर्ड है।

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि आरएसएस के बाहरी लोगों को बड़ी संख्या में मार्शल के रूप में विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए तैनात किया गया था। पीयूष गोयल राज्यसभा में नेता सदन हैं और उन्होंने बताया कि कल सदन में सिर्फ 30 मार्शल थे। उनमें 12 महिला मार्शल और 18 पुरुष मार्शल थे। गोयल ने कहा कि ये सदन में रिपोर्टर टेबल और चेयर की सुरक्षा के लिए जरूरी था।

राहुल गांधी ने जो आरोप लगाया वह बेहद गंभीर है। संसद के अंदर मार्शल की वर्दी में बाहरी लोगों को कैसे लाया जा सकता है? वह खुद राज्यसभा के सभापति से सवाल कर रहे हैं।

हमें पता होना चाहिए कि मार्शल सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया जाता है। मार्शल की नियुक्ति सदन के अध्यक्ष द्वारा की जाती है। जिस वक्त पिछड़े वर्ग से संबंधित बिल पर चर्चा हो रही थी उस वक्त हाउस में 14 मार्शल ही थे जिनमें दो लेडी मार्शल थी। जैसे ही विरोधी दलों के सासंदों ने नारेबाजी शुरू और हंगामे की आशंका बढ़ी तो एहतिहात के तौर पर कुल 42 मार्शल को तैनात किया गया। ज्यादातर मार्शल्स को रिपोर्टर्स टेबल के चारों तरफ खड़ा किया गया ताकि वो एक दीवार बना लें जिससे 10 अगस्त जैसी हरकत दोबारा न हो सके। कोई MP रिपोर्टर्स टेबल पर चढ़कर हंगामा न कर सके।

अपने शो में मैंने उन सभी 42 मार्शलों का नाम लिया जिन्हें उनके पदनाम के साथ सदन में तैनात किया गया था। उनका नेतृत्व राजीव शर्मा, विशेष निदेशक (सुरक्षा) कर रहे थे, जिसमें चार अतिरिक्त निदेशक, एक संयुक्त निदेशक, चार उपनिदेशक, आठ सहायक सुरक्षा अधिकारी और छह सुरक्षा सहायक शामिल थे। ये 24 मार्शल राज्यसभा सुरक्षा से हैं। बाकी लॉबी में तैनात सुरक्षा अधिकारी थे और उन्हें सपोर्ट के लिए बुलाया गया था। 42 मार्शलों में 31 पुरुष और 11 महिलाएं थीं। राज्यसभा में एक और सुरक्षा सहायक राकेश नेगी ने भी मारपीट की शिकायत दर्ज कराई है। राकेश नेगी राज्यसभा में सिक्योरिटी असिस्टेंट हैं । उन्होंने आरोप लगाया कि माकपा सांसद ई. करीम और शिवसेना सांसद अनिल देसाई ने उन पर हमला किया। करीम ने उनकी गर्दन पकड़ ली और घसीटने लगे जिसकी वजह से उनका दम घुटने लगा।

कई अनुभवी विपक्षी नेताओं ने इस धक्कामुक्की और हाथापाई की घटना को अपनी आंखों से देखा फिर भी वे सच्चाई को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। भले ही उन्हें सभी मार्शलों के नाम और सभी कैमरा फुटेज क्यों न दिखाए जाएं। उनकी अपनी मजबूरियां हो सकती हैं। लेकिन मामले की वजह क्या थी? आखिर क्या था विवाद?

असल में विरोधी दलों ने मॉनसून सेशन की शुरुआत से ही ये तय कर रखा था कि सदन की कार्यवाही किसी कीमत पर नहीं चलने देनी है। चूंकि बुधवार सुबह सरकार के साथ विरोधी दलों की ये सहमति बन गई थी कि पिछडे़ वर्ग से जुड़े संविधान संसोधन बिल पर चर्चा होगी और विरोधी दल भी उसमें हिस्सा लेंगे। यहां तक तो ठीक था। लेकिन सरकार चाहती थी कि जो दो बिल और बचे हैं उन्हें भी पास कराने में विपक्ष सहयोग करे। विरोधी दलों के नेताओं ने कहा कि बाकी बिलों पर चर्चा तब होगी जब सरकार उनके मुद्दों पर चर्चा कराए। इस पर सरकार की तरफ से कहा गया कि अगर जरूरत पड़ी तो सरकार सोमवार तक सदन की कार्यवाही बढ़ा सकती है लेकिन विरोधी दल फिर भी तैयार नहीं हुए। बस यहीं से टकराव की शुरूआत हुई।

जिन मार्शल्स को तैनात किया गया था वे सब पार्लियामेंट के कर्मचारी थे। कोई बाहरी नहीं था। ये सारी बातें रिकॉर्ड पर हैं। वे राज्यसभा के कर्मचारी हैं। इन लोगों को माननीय सदस्य जानते हैं, रोज इनसे मिलते हैं। ये सही है कि ज्यादा संख्या में मार्शल्स की तैनाती थी। किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए बुधवार शाम को 42 मार्शल तैनात किए गए थे। यहां तक कि लोकसभा के सुरक्षा कर्मचारियों की भी मांग की गई थी। फिर भी, विपक्षी नेता यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उन्होंने हाथापाई की और मार्शलों को धक्का दिया। जब वीडियो फुटेज दिखा दिया तो ये कहने लगे कि वीडियो के साथ छेड़छाड़ हो सकती है। वे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी ही पार्टी के सहयोगियों ने वेल के अंदर धक्कामुक्की और हाथापाई की।

राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू का एक लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है। उन्होंने हमेशा पद की गरिमा का ख्याल रखा है। उन्होंने विरोधी दलों के सम्मान की चिंता की है और सबको बोलने का मौका दिया है। उन्होंने किसी की आवाज दबाने की कोशिश नहीं की। लेकिन अगर कोई टेबल पर चढ़ जाए, रूल बुक फाड़ कर चेयर की ओर फेंके तो वह इसे नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं। और सबसे बड़ी दुख की बात है कि आज देश संकट में है। लॉकडाउन की वजह से लोगों को रोजगार खोना पड़ रहा है। जब पूरा देश कोरोना जैसी महामारी से लड़ रहा है, पार्लियामेंट में सांसद बहस करने की बजाए हंगामा कर रहे हैं, सदन की कार्यवाही को बाधित कर रहे हैं और मार्शल से धक्कामुक्की कर रहे हैं।

इससे भी ज्यादा दुख की बात ये है कि इस पूरे घटनाक्रम को सियासी रंग देने की कोशिश की गई। विरोधी दलों के नेता बार-बार ये कहते रहे कि उन्हें बोलने नहीं दिया गया। वीडियो दिखाते हैं कि आरक्षण के बिल पर विपक्षी दलों के नेता बोले भी और उन्होंने सुना भी। ये कहना भी सरासर गलत है कि पहली बार मार्शल बुलाए गए, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।

मुझे याद है मणिराम बागड़ी और राजनारायण जैसे वरिष्ठ सांसदों को इंदिरा गांधी के शासन के दौरान कई बार मार्शलों ने हाउस से घसीटते हुए बाहर निकाला था। विपक्षी दलों का ये कहना था कि मार्शल्स ने उनके साथ हाथापाई की। महिला सांसदों की पिटाई की। वीडियो सामने आया तो कहा कि सरकार ने सेलेक्टेड वीडियो रिलीज किए हैं। वीडियो फुटेज से इससे साबित होता है कि विरोधी दलों के नेताओं ने हंगामा किया, मार्शल के साथ हाथापाई और मारपीट की।

विपक्ष का यह आरोप कि मार्शल की वर्दी में बाहरी लोगों को सदन के अंदर लाया गया, ये बिल्कुल झूठ और बेबुनियाद बात है। ये मार्शल राज्यसभा की सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा हैं, जो सालों से काम कर रहे हैं। इन लोगों को बाहर से आए गुंडे और आरएसएस का एजेंट करार देना, इन सिक्योरिटी अफसरों के साथ अन्याय है। सरकार और विरोधी दलों के टकराव में जिस तरह विरोधी दलों के नेताओं ने सुरक्षा कर्मचारियों को मोहरा बनाने की कोशिश की, उसे मैं ठीक नहीं मानता। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि ये वही सुरक्षा कर्मचारी हैं जिन्होंने 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हुए आतंकवादी हमले के वक्त अपने सीने पर गोलियां खाई थी। अपनी जान पर खेलकर संसद को बचाया था।

सवाल संसद की गरिमा और लोकतंत्र की प्रतिष्ठा का है। मुझे लगता है कि राज्यसभा के चेयरमैन को इस मामले में सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। जो भी दोषी हो सजा देनी चाहिए। मैं एक और बात कहना चाहता हूं कि अब तक जितनी बातें सामने आई हैं उससे साफ है कि विरोधी दल पहले ही तय कर चुके थे कि वे संसद में हंगामा करेंगे। किसी भी कीमत पर संसद की कार्रवाई चलने नहीं देंगे। विपक्ष ने वही किया जो वो पहले से तय कर चुके थे लेकिन उन्होंने इसका सारा इल्जाम उल्टा सरकार पर डाल दिया। इसे किसी भी कीमत पर जायज नहीं ठहराया जा सकता। मैं तो यही उम्मीद करूंगा कि जो हंगामा इस सेशन में हुआ और जैसी तस्वीरें इस बार देखने को मिलीं, वे आगे देखने को न मिलें। इसके लिए जरुरी है कि सभी दलों के सांसद आपस में बैठें, चेयरमैन की सलाह लें और आपस में तय करें कि आगे से ऐसी घटना न हो ताकि संसद सुचारू रूप से चले।

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