Rajat Sharma

मोदी पर भरोसा करें, उन्होंने स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू किया है

मुझे याद है जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब कृषि विशेषज्ञों का एक ग्रुप बनाया गया था, जिसने 2001 में अपनी रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में खेती पर लगी तमाम कानूनी बंदिशों को हटाने की सिफारिशें की गई थी। 2002 में कई मंत्रालयों का एक टास्क फोर्स बना था और 2003 में कृषि सुधार कानून का ड्राफ्ट भी राज्य सरकारों को भेज दिया गया था। उसमें भी मोटे तौर पर कृषि क्षेत्र को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने की बात कही गई थी।

akb2711 भारत के किसानों के नाम अपने सीधे संबोधन में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ‘सिर झुकाकर और हाथ जोड़कर’ उनसे नए कृषि कानूनों पर केंद्र के साथ फिर से बातचीत शुरू करने की अपील की। मोदी ने कहा, किस तरह पिछले 20 साल से इन कानूनों पर काम हो रहा था और ये कानून ‘भारतीय हरित क्रांति के जनक’ डॉक्टर एम. एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग के सुझावों पर आधारित हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ये तीनों नए कानून रातोंरात नहीं बने, बल्कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने इन कानूनों के मसौदे पर चर्चा के बाद इन्हें मंजूरी दी। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ‘स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को 8 साल तक दबाकर बैठी रही।’ मोदी ने कहा, ‘अब अचानक भ्रम और झूठ का जाल बिछाकर, अपनी राजनीतिक जमीन जोतने के खेल खेले जा रहे हैं। किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर वार किए जा रहे हैं।’

मोदी ने किसानों को विस्तार से समझाया कि क्यों उनकी सरकार MSP को खत्म नहीं करेगी और मंडियों (APMC) को बंद नहीं करेगी। किसान नेताओं द्वारा MSP, APMC, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और कॉर्पोरेट्स द्वारा किसानों की जमीन की मिल्कियत पर कब्जा करने को लेकर जो शंकाएं पैदा की जा रही है , उन सबका मोदी ने जवाब दिया। मोदी ने किसानों के सामने अपनी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड रखा और कहा कि कैसे उनकी सरकार ने अब तक की सबसे ज्यादा MSP का भुगतान किया है। मौदी ने विरोधी दलों से भी हाथ जोड़कर कहा कि वे किसानों के बीच झूठ और भ्रम न फैलाएं। उन्होने यहां तक कहा कि अगर विपक्षी दल नए कृषि सुधार लाने का श्रेय लेना चाहते हैं, तो वह भी उनको देने को तैयार हैं, उन्हें अपने लिए श्रेय नहीं चाहिए।

मोदी ने कहा, कैसे कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल खुद इन कानूनों को लाने की प्लानिंग कर रहे थे, लेकिन इन्हें लागू करने की उनमें हिम्मत नहीं थी। उन्होंने कहा कि कुछ पार्टियों (उनका इशारा कांग्रेस की तरफ था) ने अपने चुनाव घोषणापत्र में भी इन सुधारों को लागू करने का वादा किया था, लेकिन अब पूरी तरह यू-टर्न ले लिया।

मुझे याद है जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब कृषि विशेषज्ञों का एक ग्रुप बनाया गया था, जिसने 2001 में अपनी रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में खेती पर लगी तमाम कानूनी बंदिशों को हटाने की सिफारिशें की गई थी। 2002 में कई मंत्रालयों का एक टास्क फोर्स बना था और 2003 में कृषि सुधार कानून का ड्राफ्ट भी राज्य सरकारों को भेज दिया गया था। उसमें भी मोटे तौर पर कृषि क्षेत्र को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने की बात कही गई थी।

सन् 2004 में जब डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार बनी, तब 2003 के इस ड्राफ्ट बिल पर तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार ने राज्यों के साथ चर्चा की थी। यूपीए शासन के दौरान 2007 में मंडियों के एकाधिकार को खत्म करने की शुरूआत की गई और मॉडल APMC रूल्स प्रकाशित हुए। इसके बाद 2010 में शरद पवार ने बाकायदा राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर कृषि कानूनों में बदलाव लाने और कृषि क्षेत्र में प्राइवेट प्लेयर्स की भागीदारी की बात कही थी।

इन तथ्यों से ये बिलकुल साफ है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल ये कह कर किसानों को गुमराह कर रहे हैं कि तीनों नए कानूनों को जल्दबाजी में लाया गया और पास किया गया । इसीलिए प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को किसानों को ऐसे नेताओं और पार्टियों से सावधान रहने को कहा। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की सुनेगी, हर बात सुनेगी, लेकिन अब सियासी शोर मचाने वालों की कोई बात न सरकार सुनेगी, न किसानों को सुननी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि विपक्ष किसानों की वास्तविक समस्याओं का हल निकालने की बजाय राजनीतिक लाभ हासिल करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है। मोदी ने यह भी आरोप लगाया कि पिछली यूपीए सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को कूड़ेदान में फेंक दिया था, जबकि उनकी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के अपने संकल्प पर दृढ़ है और वह किसानों को खेती की वास्तविक लागत का डेढ़ गुना खरीद मूल्य दे रही है।

डॉक्टर एम. एस. स्वामीनाथन को 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। दो साल बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि किसानों को उनकी वास्तविक लागत का डेढ़ गुना MSP दिया जाना चाहिए। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। मोदी ने कहा कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट तो उन्होंने डस्टबिन से झाड़ पोंछकर निकाली और MSP को वास्तविक लागत का डेढ़ गुना कर दिया। मोदी ने एक बार फिर वादा किया कि उनकी सरकार MSP को बंद नहीं करेगी।

किसान नेताओं को यह पता होना चाहिए कि 2009 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह के शासन के दौरान किसानों से सिर्फ 645 करोड़ रुपए की दालें MSP पर खरीदी गई थी। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में, 2014 से 2019 तक, सरकार ने 49 हजार करोड़ रुपये की दालें किसानों से MSP पर खरीदीं। इस तरह देखा जाए तो ये आंकड़े किसानों के हक़ की बात करने वाले कांग्रेस नेताओं के दावों की पोल खोल देते हैं।

मोदी ने विपक्ष के इस आरोप का भी जवाब दिया कि प्राइवेट प्लेयर्स की एंट्री के साथ ही सरकार द्वारा गठित APMC मंडियां बंद हो जाएंगी। उन्होने कहा कि आने वाले सालों में इन मंडियों का आधुनिकीकरण किया जाएगा और इस के लिए 500 करोड़ रुपये का बजट भी रखा गया है।

मोदी ने विपक्ष के इस आरोप का भी खंडन किया कि यदि प्राइवेट प्लेयर्स कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करने लगेंगे तो किसान अपनी जमीन से हाथ धो बैठेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि नये कानून में बिलकुल साफ कहा गया है कि प्राइवेट कंपनियों द्वारा न तो किसानों की जमीन गिरवी रखी जा सकती है, न जमीन पर कोई सौदा हो सकता है और न कॉन्ट्रैक्ट करने वाली कंपनी इसे लीज पर दे सकती है। दूसरी ओर, यदि प्राइवेट पार्टियां कॉन्ट्रैक्ट तोड़ती हैं तो उन पर जुर्माना लगाया जाएगा और किसानों को ये आजादी दी गई है कि यदि उन्हें कभी भी ये लगे कि कॉन्ट्रैक्ट में उन्हें घाटा है, तो वह समझौता खत्म कर सकते हैं।

मोदी ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के बारे में पंजाब के जिस प्रोजेक्ट का जिक्र किया, वह ज्यादा पुरानी बात नहीं है। पिछले साल मार्च में वरुण ब्रुअरीज नाम की कंपनी ने पंजाब के पठानकोट में 800 करोड़ रुपये की लागत से एक प्लांट लगाया। इस प्लांट में जूस, डेयरी प्रोडक्ट, कार्बोनेटेड ब्रेवरीज और मिनरल वॉटर का प्रोडक्शन होता है। कई हजार लोगों को रोजगार देने वाले इस प्लांट का उद्घाटन खुद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किया था। इस प्लांट के लिए जमीन भी पंजाब स्मॉल इंडस्ट्रीज एंड एक्सपोर्ट कॉर्पोरेशन ने दी थी। वही कैप्टन अमरिंदर सिंह, जो इस प्लांट को किसानों के लिए वरदान बता रहे थे, आज कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को किसानों के लिए फांसी का फंदा बता रहे हैं। ये कैसे हो सकता है!

भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग लगभग 20 साल पहले शुरू हुई थी, जबकि नया कानून 6 महीने पहले ही लागू हुआ है। अभी तक किसी कॉर्पोरेट द्वारा किसी किसान की जमीन पर कब्जा करने का एक भी मामला सामने नहीं आया है।

यूपी के अलीगढ में धान पैदा करनेवाले करीब 1300 किसानों ने एक राइस कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया। आज वे पहले के मुकाबले 15 से 20 पर्सेंट ज्यादा पैसा कमा रहे हैं। उत्तरी गुजरात के 2,500 आलू किसानों ने हाइफन फूड्स (HyFun Foods) नाम की प्रोसेसिंग कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया और आज प्रति एकड़ 40 हजार रुपये ज्यादा कमा रहे हैं। इसी तरह पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 1,000 से ज्यादा किसानों ने आलू उगाने के लिए टेक्निको एग्री साइंस लिमिटेड नाम की कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट किया है और उन्हें पहले के मुकाबले अपनी फसल का 35 परसेंट ज्यादा दाम मिल रहा है। लेकिन विपक्षी दल किसानों को ये कहकर डरा रही हैं कि यदि कॉर्पोरेट्स ने पैसा देने से इनकार कर दिया, तब क्या होगा?

यह सवाल मैंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पूछा। अपने राज्य में खेती का चेहरा बदल देने वाले बीजेपी सीनियर नेता चौहान ने माना कि कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है कि कंपनियों ने किसानों को बकाया पैसा देने से मना कर दिया हो, लेकिन इसके लिए कानूनी प्रावधान भी हैं। उन्होंने पिपरिया में एक कंपनी का उदाहरण दिया, जिसने किसानों के साथ 3,000 रुपये प्रति क्विंटल के रेट पर धान खरीदने का कॉन्ट्रैक्ट किया था, लेकिन डील के बाद भी धान की खरीद नहीं की। चूंकि नया कानून लागू है, इसलिए किसान एसडीएम के पास गया, शिकायत की और कंपनी को 3000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान करना पड़ा। इसी तरह जबलपुर में एक व्यापारी ने बिना कॉन्ट्रैक्ट किए अनाज खरीदा तो उसे 25 हजार रुपये का जुर्माना भरना पड़ा।

मुझे लगता है कि जब सरकार खुद सवालों के जबाव दे रही है, और किसानों से कह रही है कि उन्हें उनके सारे सवालों के जवाब मिलेंगे, ऐसे में अड़ियल रुख अपनाने और कानूनों को निरस्त करने की मांग करने का कोई मतलब नहीं है। सरकार की नीयत पर शक करना ठीक नहीं है।

ज्यादातर किसान नेताओं ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री के बातचीत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और मांग की कि पहले तीनों नए कानूनों को वापस लिया जाए। इन नेताओं ने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री उन्हें नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के किसानों को संबोधित कर रहे थे। मैं इस बात को नहीं मानता। प्रधानमंत्री मोदी ने आज सिर्फ मध्य प्रदेश के किसानों से बात नहीं की, बल्कि उन्होंने देश के हर किसान से बात की और खास तौर पर उन किसान भाइयों से बात की जो दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठे हुए हैं।

मैंने पीएम मोदी द्वारा कही गई हर बात को क्रॉसचेक किया। मोदी ने सही कहा कि पिछली यूपीए सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू नहीं किया था। मोदी सरकार ने क्या किया? उनकी सरकार ने स्वामीनाथन रिपोर्ट पर कार्रवाई की, किसान क्रेडिट कार्ड वितरित किए, किसानों को मिलने वाला लोन सस्ता किया और यह सुनिश्चित किया कि खरीद सीधे किसानों के खेतों से की जाए। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक, मोदी सरकार ने कृषि इन्फ्रास्ट्रचर के विकास में प्राइवेट प्लेयर्स को भागीदार बनाया, किसान फसल बीमा दिया और दुर्घटना की स्थिति में तुरंत सहायता का रास्ता निकाल दिया। मोदी सरकार ने स्वामीनाथन रिपोर्ट में की गईं ज्यादातर सिफारिशों को लागू किया।

मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि ये सारे काम मोदी सरकार ने किसानों के हित में किए हैं। मैं अब विपक्ष और किसान नेताओं से एक सवाल करना चाहता हूं। वे सब ये तो मानते हैं कि डॉक्टर स्वामीनाथन एक ऐसी शख्सियत थे जो हमेशा किसानों की भलाई चाहते थे। उन्हीं डॉक्टर स्वामीनाथन ने 2007 में कहा था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के लिए जिस तरह की योजनाएं लागू की है, कृषि का जो मॉडल डिवेलप किया है, उसे दूसरे राज्यों को एक मॉडल के रूप में अपनाना चाहिए। डॉक्टर स्वामीनाथन ने कहा था कि यदि राज्य चाहते हैं कि उनके किसान खुशहाल हों तो उन्हें गुजरात मॉडल को फॉलो करना चाहिए।

ये वक्त का तकाज़ा है कि किसान नेता और राजनीतिक पार्टियों के नेता कम से कम डॉक्टर स्वामीनाथन की बातों को तो स्वीकार करें और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीयत पर संदेह जताना बंद करें । किसान नेताओं को अपनी जिद छोड़कर सरकार से बात करनी चाहिए, संवाद स्थापित करना चाहिए और इस पूरे मसले का शांतिपूर्ण हल निकालना चाहिए।

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