Rajat Sharma

मोदी ने राजस्थान में भजन लाल शर्मा को सीएम क्यों चुना?

AKB30 राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद पर भजनलाल शर्मा का चयन इसलिए हैरान करने वाला है क्योंकि वो पहली बार विधायक बने हैं. इससे पहले वह न मंत्री रहे, न मंत्री का दर्जा रहा. पहली बार चुनाव जीतकर आए और सीधे राजस्थान जैसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वैसे भजनलाल शर्मा के पास संगठन का काफी अनुभव है. वह बीस साल से संगठन में काम कर रहे थे, चार बार प्रदेश के महामंत्री रहे, लेकिन सिर्फ इस आधार पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, इसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी. राजस्थान में भी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह दो उपमुख्यमंत्री होंगे, दीया कुमारी और प्रेम चंद बैरवा, जबकि बासुदेव देवनानी विधानसभा के स्पीकर होंगे. सोमवार शाम तक मेरे पास यह जानकारी थी कि दिल्ली में बीजेपी की बैठकों में दीया कुमारी का नाम लगभग तय हो चुका था. इसके पीछे तर्क ये था कि महिला आरक्षण के बाद अगर किसी एक महिला को हटाना है तो किसी दूसरी महिला को बनाया जाए, ये बेहतर होगा. लेकिन मंगलवार सुबह जातिगत समीकरणों को साधने की बात आई, तो ये तय हुआ कि किसी ब्राह्मण को बनाया जाए ताकि कोई विवाद न पैदा हो और जातिगत समीकरण भी बने रहे. इसके बाद दीया कुमारी को राजपूत और प्रेम चंद बैरवा को दलित समाज के चेहरे के तौर पर उपमुख्यमंत्री बनाने का फैसला हुआ. जब ब्राह्मण नेता की खोज शुरू हुई तो इस बार चुन कर आए दस विधायकों में से भजन लाल शर्मा सबसे उपयुक्त दिखाई दिए. कहा गया कि वो संगठन के आदमी हैं, सबको साथ लेकर चलते हैं, कोई इनका विरोध नहीं करेगा, इसलिए मुख्यमंत्री के तौर पर भजन लाल शर्मा को मौका मिला. राजनाथ सिंह मोदी का संदेश लेकर जयपुर पहुंचे. उन्होंने सबसे पहले वसुन्धरा राजे और प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी से मुलाकात की, इसके बाद बीजेपी दफ्तर पहुंचे. वहां पार्टी के विधायकों से अलग अलग बात की, फिर विधायक दल की मीटिंग शुरू हुई. वसुन्धरा राजे के हाथ में राजनाथ सिंह ने एक पर्ची दी. वसुन्धरा ने पर्ची को खोलकर पढ़ा, फिर चश्मा लगाकर देखा, उसके बाद खामोशी से बैठ गईं. दो मिनट के बाद राजनाथ ने इशारा किया और वसुन्धरा ने भजनलाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव रखा जिसका वहां मौजूद सभी विधायकों ने समर्थन किया. उस वक्त तक भजनलाल शर्मा विधायकों के साथ सबसे पीछे बैठे थे. भजनलाल शर्मा इस मीटिंग में सबसे आखिर में पहुंचे थे क्योंकि इस मीटिंग के आयोजन और इसमें आने वाले विधायकों के स्वागत की जिम्मेदारी भजनलाल को ही दी गई थी. भजनलाल सबके स्वागत के बाद आखिर में मीटिंग में पहुंचे. उनके नाम का ऐलान हुआ तो फिर सभी नेताओं ने मंच पर भजनलाल का स्वागत किया. भजनलाल शर्मा के नाम के ऐलान से बीजेपी के कार्यकर्ता भी हैरान रह गए क्योंकि किसी को इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी कि पहली बार विधायक बने नेता को मोदी सीधे मुख्यमंत्री बना देंगे. हालांकि ये मोदी के साथ खुद भी हुआ था. मोदी जब मुख्यमंत्री बने थे तो उस वक्त वो विधायक भी नहीं थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन मोदी को संगठन का जबरदस्त अनुभव था. जब वो प्रधानमंत्री बने तो उससे पहले कभी सांसद नहीं बने थे, कभी संसद नहीं गए थे, पहली बार सांसद बने और सीधे प्रधानमंत्री बन कर संसद भवन पहुंचे. लेकिन उन्हें 13 साल मुख्यमंत्री रहने का अनुभव था. भजन लाल शर्मा के पास ऐसा कोई अनुभव नहीं है, लेकिन मोदी सबको अवसर देते हैं. वैसे भजनलाल शर्मा राजनीति में नए नहीं हैं, बीस साल से पार्टी में सक्रिय थे, चार प्रदेश अध्यक्षों के साथ चार बार राजस्थान बीजेपी के महामंत्री रह चुके हैं. पिछले एक साल में राजस्थान में मोदी और अमित शाह की सभी रैलियों के आयोजन की जिम्मेदारी भजनलाल शर्मा ने ही निभाई. जे. पी. नड्डा से उनका पुराना नाता है. उन्होंने पूरे राजस्थान का दौरा किया, राजस्थान के हर इलाके से वाकिफ हैं. भरतपुर के रहने वाले हैं, लेकिन पार्टी ने इस बार उन्हें सांगानेर से चुनाव लड़ाया और उन्होंने कांग्रेस के पुष्पेंद्र भारद्वाज को 48 हजार से ज्‍यादा वोटों से हराया.

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ये राहुल गांधी का असर है क्योंकि राहुल गांधी ने जब से जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया, तब से बीजेपी जातियों के समीकरणों पर ध्यान दे रही है. इसका सबूत राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में दिख रहा है और मोदी राहुल के रास्ते पर अब चल रहे हैं. कांग्रेस के नेता अगर बीजेपी की जीत को राहुल गांधी का असर बताना चाहते हैं, तो ये उनकी मर्जी है..बीजेपी के लोग तो कहते हैं राहुल गांधी बीजेपी की जीत की गारंटी हैं. भजनलाल शर्मा की पृष्ठभूमि काफी दिलचस्प है. वो भरतपुर के अरारी गांव के रहने वाले हैं, वहीं से इन्होंने राजनीति शुरू की. 2003 में इन्होंने भरतपुर की नदवई सीट से टिकट मांगा लेकिन बीजेपी ने उस वक्त जितेन्द्र सिंह को टिकट दिया. भजनलाल इस सीट पर बागी उम्मीदवार के तौर पर लड़े, उन्हें केवल 5,969 वोट मिले. यहां बीजेपी का उम्मीदवार राज परिवार की दीपा कुमारी से हार गया. शायद ये पहला मौका है जब बीजेपी ने पार्टी से बगावत करने वाले को मुख्यमंत्री बनाया है लेकिन इसके पीछे भजनलाल शर्मा की एक कार्यकर्ता के तौर पर कड़ी मेहनत है. 15 साल तक भजन लाल शर्मा ने दिन-रात संगठन का काम किया.फ्रंट में आकर काम करने वाले पदाधिकारी रहे. गहलोत सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने वाले, संघर्ष करने वाले, सड़क पर आकर जूझने वाले भजन लाल ने पार्टी के बड़े नेताओं के दिल में जगह बनाई. राज्य कर्माचारी महासंघ के आंदोलन में सामने आकर लड़े, प्रदर्शन के दौरान पुलिस की मार से इनकी तबियत बिगड़ी. जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘मन की बात’ का सौवां एपिसोड ब्रॉडकास्ट हुआ तो भजनलाल शर्मा ने राजस्थान में बीस हजार से ज्यादा जगहों पर इसके सामूहिक सुनने का आयोजन किया. चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी की हर सभा का संचालन भजन लाल शर्मा ही करते थे. भजनलाल इस बार भी भरतपुर से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पार्टी ने सांगानेर से अशोक लाहौटी की टिकट काट कर भजनलाल शर्मा को लड़ाया. पहली बार MLA बने और पहली बार में ही विधायक दल के नेता चुन लिए गए. एक साधारण कार्यकर्ता से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर पूरा करने के लिए भजनलाल शर्मा ने कड़ी मेहनत की है. वो सबको साथ लेकर चलते हैं, सब उनको पसंद करते हैं लेकिन उनकी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है. राजस्थान सीमावर्ती राज्य है. यहां कांग्रेस से सीधा मुकाबला है, इसलिए चुनौती बड़ी है. भजन लाल शर्मा के सामने पहला लक्ष्य होगा लोकसभा चुनाव में पार्टी की जीत सुनिश्चित करना. राजस्थान में पिछली बार लोकसभा की 25 में से 25 सीटें बीजेपी ने जीती थी. भजन लाल को ये परफॉर्मेंश रिपीट करनी होगी. इससे कम में काम नहीं चलेगा और ये काम आसान नहीं है.

शिवराज, वसुंधरा का भविष्य

जहां तक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का सवाल है, दोनों राज्यों में बुधवार को नये मुख्यमंत्रियों ने नरेंद्र मोदी और अन्य शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में शपथ ले ली. मंगलवार को शिवराज सिंह चौहान खुलकर बोले, खूब बोले. जो लोग ये कह रहे थे कि शिवराज नाराज़ हैं, शिवराज ने दिल्ली जाने से इंकार कर दिया है, शिवराज सिंह पार्टी नेतृत्व के फैसले से नाखुश हैं, उनको चौहान ने सीधा जबाव दिया. शिवराज ने कहा कि 18 साल तक बीजेपी ने उन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी दी, सांसद, विधायक, पार्टी में महामंत्री बनाया. बीजेपी ने उन्हें सबकुछ दिया, अब पार्टी को लौटाने का वक्त है. शिवराज सिंह ने कहा कि वो पार्टी से नाराज होना तो दूर, पार्टी से कुछ मांगने के लिए दिल्ली जाने से पहले मरना पसंद करेंगे. शिवराज ने कहा कि पार्टी हमेशा सोच समझकर सबको जिम्मेदारी देती है, अब उन्हें जो भी जिम्मेदारी दी जाएगी, वह पूरे मन से, पूरी शक्ति से उस जिम्मेदारी को निभाएंगे. शिवराज को मुख्यमंत्री न बनाए जाने से महिलाएं निराश हैं. मंगलवार को बड़ी संख्या में महिलाएं सुबह शिवराज के घर पहुंच गईं. कई महिलाएं जोर जोर से रोने लगीं. शिवराज खुद भी भावुक हो गए लेकिन महिलाओं को समझाया. कहा कि पहले भी पार्टी की सरकार थी, आज भी पार्टी की सरकार है, पहले भी वो बहनों का ख्याल रखते थे, आगे भी बहनों का ख्याल उसी तरह से रखेंगे.

ये कहना तो बेमानी होगा कि शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री न बनाए जाने से आहत नहीं हुए होंगे, लेकिन वो अपनी पार्टी को जानते हैं. यहां दिल पर चोट लगी हो तो भी दर्द दिखाने की परम्परा नहीं है. वो जानते हैं कि एक दिन पार्टी ने उनको भी एक साधारण कार्यकर्ता से उठाकर मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचाया था. 20 साल मध्यप्रदेश की राजनीति में उनका दबदबा रहा. और मैं कहूंगा कि आज भी उन्होंने बड़ी समझदारी से बात की. पार्टी का एहसान माना. मध्यप्रदेश के चुनाव में जीत के लिए मोदी के प्रभाव का जिक्र किया. शिवराज मोदी को भी जानते हैं. वह इस बात को समझते हैं कि मोदी से मांगने से कुछ हासिल नहीं होता. मोदी अपने हिसाब से सबकी भूमिका तय करते हैं. इसीलिए शिवराज सिंह का भविष्य में क्या रोल होगा, ये भी मोदी तय करेंगे. यही बात वसुंधरा राजे पर भी लागू होती है. वह भी अनुभवी नेता हैं. लंबे समय तक राजस्थान में बीजेपी की शिखर नेता रही हैं. वो भी शिवराज की ही तरह अपने राज्य में रहना चाहती हैं लेकिन ये तय करना वसुंधरा के हाथ में नहीं है. नॉर्मल तरीके से सोचें तो इन दोनों नेताओं को केंद्र में लाया जा सकता है. सरकार में इनके अनुभव का फायदा उठाया जा सकता है. मोदी अनुभवी नेताओं के महत्व को समझते हैं, उनके योगदान का सम्मान करते हैं. जब भोपाल में और जयपुर में मुख्यमंत्रियों के नाम का ऐलान हुआ तो पार्टी ने शिवराज और वसुन्धरा के सम्मान का पूरा ख्याल ऱखा. .दोनों नेताओं की सहमति ली गई और नए मुख्यमंत्री के नाम का प्रस्ताव शिवराज और वसुन्धरा से ही कराया गया. अब इन नेताओं को घर तो नहीं बैठाया जाएगा, लेकिन इन नेताओं की भूमिका क्या होगी, 2024 के चुनाव में इनकी क्षमता का कैसे इस्तेमाल होगा, इसके बारे में अटकलें लगाना बेकार है. जब ऐलान होगा, तभी पता चलेगा.

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