Rajat Sharma

मोदी की जीत, कांग्रेस की 2024 की योजना कैसे ध्वस्त हुई ?

akbचार राज्यों के चुनाव नतीजों ने पूरे देश को चौंका दिया. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गई. तीनों राज्यों में बीजेपी को जबरदस्त जीत मिली. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इस जीत की हैट्रिक से जनता ने 2024 में जीत की हैट्रिक की गारंटी दे दी है. मोदी ने कहा कि इन नतीजों में जनता ने भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण के प्रति जीरो टॉलरेंस दिखा दिया है. मोदी ने कहा कि ये चुनाव नतीजे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पर जनता की मुहर है. मोदी ने कहा कि जनता का दिल जीतने के लिए जनसेवा का जज्बा होना चाहिए जो घमंडिया (INDIA) गठबंधन में बिल्कुल नहीं है. गालीगलौज और नकारात्मकता से घमंडिया गठबंधन जनता दिल में जगह नहीं बना सकता. मोदी ने कहा कि ये नतीजे उन ताकतों को चेतावनी है जो विकास की योजनाओं के खिलाफ खड़ी रहती हैं. मोदी ने विपक्ष पर जबरदस्त हमले किए. चूंकि मौका भी था, माहौल भी था, दस्तूर भी था, इसीलिए मोदी ने कहा कि ये चुनाव नतीजे विरोधियों को सबक है कि सुधर जाइए, वरना जनता उन्हें खत्म कर देगी. तीन राज्यों में बीजेपी को एतिहासिक जीत मिली है. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने लगातार पांचवी बार बीजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाई, 230 में 163 सीटें बीजेपी को मिलीं. छत्तीसगढ़ के नतीजे तो कांग्रेस के होश उड़ाने वाले हैं क्योंकि छत्तीसगढ़ में तो ज्यादातर एक्जिट पोल भी कांग्रेस के पक्ष में थे लेकिन यहां भी बीजेपी ने 90 में 54 सीटें जीत लीं. राजस्थान में अंडर करंट तो था, ये अशोक गहलोत समझ गए थे, लेकिन अंडर करंट किसके पक्ष में है, इसका अंदाजा गहलोत नहीं लगा पाए. राजस्थान में बीजेपी ने 200 में से 115 सीटें जीतीं. तेलंगाना में जनता ने केसीआर को विदा कर दिया. कांग्रेस के लिए राहत की बात इतनी है कि तेलंगाना में कांग्रेस को बहुमत मिल गया. कांग्रेस ने तेलंगाना में 119 में से 64 सीटें जीत लीं, जो बहुमत के आंकड़े से चार ज्यादा है. चुनाव नतीजों के बाद एक बड़ा सवाल ये है कि देश की सियासत पर इसका क्या असर पड़ेगा, कांग्रेस हार का ठीकरा किसके सिर फोड़ेगी और अब इंडिया एलायन्स आगे बढ़ेगा या नहीं. अगर मोदी-विरोधी मोर्चा बनता है, तो उसमें कांग्रेस की स्थिति क्या होगी. मोदी ने भविष्य की राजनीति के संकेत दिए. कहा कि अब जातिवाद का जहर घोलने का वक्त खत्म हो गया. अब झूठे वादे करने वालों का वक्त खत्म हो गया. अब जो विकास की बात करेगा, जो जनता के काम करेगा, वही जनता के दिल पर राज करेगा. मोदी ने अपने भाषण में 2024 का एजेंडा सैट कर दिया. 2024 का चुनाव विकास के एजेंडे पर होगा, मोदी की गारंटी पर होगा, बीजेपी का कैंपेन सकारात्मक होगा, मोदी के नाम और काम पर होगा. मोदी ने विरोधियों से भी कह दिया कि वो भी गाली गलौज और मुफ्त के वादों की राह छोड़कर विकास की राह पर आएं, वरना खत्म हो जाएंगे. मोदी जानते हैं कि चुनाव नतीजों के बाद विरोधी दलों की एकजुटता और बढ़ेगी, माहौल को खराब करने की कोशिश होगी लेकिन मोदी ने कार्यकर्ताओं से कहा कि नकारात्मकता में फंसना नहीं हैं, उलझना नहीं हैं, सही रास्ते पर चलना है. मोदी ने नौजवानों, महिलाओं, किसानों की बात की. विरोधी दलों के साथ मुश्किल ये है कि वो मोदी जैसा प्रखर वक्ता, मोदी जैसा जादुई असर वाला नेता, मोदी जैसी बेदाग छवि वाला नेता, कहां से लाएंगे? इसीलिए मोदी ने कहा कि आज की हैट्रिक 2024 की हैट्रिक की गारंटी है.

मध्य प्रदेश

सबसे हैरान करने वाले नतीजे मध्य प्रदेश में आए. मध्य प्रदेश में बीस साल से बीजेपी की सरकार है. 18 साल से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं. कांग्रेस को एंटी इन्कम्बैंसी से बहुत उम्मीदें थी लेकिन बीजेपी ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. बीजेपी को 230 में 167 सीटें मिलीं. पिछले चुनाव के मुकाबले बीजेपी की सीटों की संख्या में 63 का इजाफा हुआ जबकि कांग्रेस की सीटें 114 से घटकर 61 रह गईं. कांग्रेस को 53 सीटों का नुकसान हुआ. मध्य प्रदेश में ऐसे नतीजों के उम्मीद न बीजेपी के नेताओं को थी, न कांग्रेस के नेताओं को. मध्य प्रदेश की जनता ने सबको चौंका दिया. इस जीत के बाद शिवराज सिंह चौहान का कद पार्टी में और प्रदेश में बढ़ेगा. जिस शिवराज सिंह चौहान के बारे में कहा जा रहा था कि उनके चेहरे से लोग ऊब गए हैं, फटिग आ गय़ा है लेकिन उन्ही शिवराज सिंह को जनता ने मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा मार्जिन से जिताया. शिवराज बुधनी से 1,04,974 वोटों के रिकॉर्ड मार्जिन से जीते हैं. मध्य प्रदेश में जीत का श्रेय शिवराज सिंह की दिनरात की गई मेहनत को और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को जाता है. इस जीत में एक और नेता की मेहनत छुपी है. अश्विनी वैष्णव लगातार तीन महीने तक पर्दे के पीछ रहकर पार्टी की रणनीति को अमली जामा पहनाने में लगे रहे. मध्य प्रदेश चुनाव नतीजों का आफ्टर इफैक्ट ये होगा कि ज्यातिरादित्य सिंधिया अब पूरी तरह बीजेपी में सैट हो जाएंगे. उनको आगे बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी लेकिन कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का राजनीतिक भविष्य करीब-करीब खत्म है. दिग्विजिय सिंह के लिए ये शर्मनाक बात है कि राघोगढ़ सीट से उनका बेटा जयवर्धन सिंह चुनाव तो जीता है लेकिन सिर्फ 4,505 वोट से. जबकि दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह अपनी सीट नहीं बचा पाए. बीजेपी की प्रियंका पेंची से 61,570 वोट से हार गए. कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के प्रति जनता के प्यार ने सबको चौंका दिया. अब मुख्यमंत्री की कुर्सी के सबसे प्रबल और स्वाभाविक दावेदार शिवराज सिंह चौहान है लेकिन वो बनेंगे या नहीं ये कोई नहीं कह सकता क्योंकि फैसला नरेन्द्र मोदी को करना है.

राजस्थान

राजस्थान में भी कांग्रेस को करंट लगा. अशोक गहलोत ने कहा था कि राजस्थान में अंडरकरंट है. उनकी बात सही निकली. कांग्रेस को राजस्थान की जनता ने तगड़ा झटका दिया. ज्यादातर एक्जिट पोल गलत साबित हुए. राजस्थान में बीजेपी को बहुमत से ज्यादा सीटें मिलीं. 199 सीटों में से बीजेपी 115 सीटें जीतीं… और कांग्रेस केवल 69 सीटों पर सिमट गई. गौर करने वाली बात ये है कि राजस्थान में इस बार बागी उम्मीदवारों और निर्दलीय उम्मीदवारों की भी अच्छी कामयाबी मिली. 15 सीटों पर निर्दलीय और छोटी पार्टियों के उम्मीदवार जीते हैं. हैरानी की बात ये है कि अशोक गहलोत को मिलाकर 25 मंत्रियों ने चुनाव लड़ा था. इनमें से 17 मंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाए. प्रताप सिंह खाचरियावास, गोविंद राम मेघवाल, भंवर सिंह भाटी, शकुंतला रावत, विश्वेंन्द्र सिंह, रमेश चंद्र मीणा, शाले मुहम्मद, उदयलाल आंजना सबके सब चुनाव हार गए. इसके अलावा गहलोत सरकार में मंत्री रहे बीडी कल्ला, ज़ाहिदा ख़ान, भंवर लाल जाटव, ममता भूपेश, परसादी लाल मीणा, सुखराम विश्नोई, रामलाल जाट और प्रमोद जैन भाया को भी जनता ने घर बैठा दिया. सबसे बड़ी बात अशोक गहलोत ने अपने छह सलाहकारों को टिकट दिया था. इनमें से पांच, संयम लोढ़ा, राजकुमार शर्मा, बाबूलाल नागर, दानिश अबरार और पूर्व मुख्य सचिव निरंजन आर्य भी चुनाव हार गए. इसमें कोई शक नहीं कि पिछले तीन साल से राजस्थान में कांग्रेस पायलट बनाम गहलोत के झगड़े से जूझती रही. नतीजों से साफ़ है कि जनता इस अंदरूनी लड़ाई से उकता गई थी. सचिन पायलट ने 2018 के चुनाव में ख़ूब मेहनत की थी. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने पूरे राजस्थान की यात्रा की, 240 से ज़्यादा रैलियां की थीं, कांग्रेस की सत्ता में वापसी में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा लेकिन 2020 में जब सचिन पायलट ने बग़ावत की तो गहलोत ने उन्हें डिप्टी सीएम पद से हटा दिया, प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बनने दिया. गहलोत ने पायलट समर्थकों के टिकट भी काट दिए. और सचिन पायलट ने चुनाव प्रचार में भी उतना दम नहीं लगाया, जितना उन्होंने पिछली बार लगाया था. इस बार सचिन पायलट ने केवल 24 चुनावी रैलियां कीं. पायलट ख़ुद टोंक से 29,475 वोटों के अंतर से जीत गए. उनके अलावा कांग्रेस से सिर्फ़ एक और गुर्जर नेता अशोक चांदना ही चुनाव जीत पाए. वहीं, बीजेपी के आधा दर्जन से गुर्जर उम्मीदवार चुनाव जीत गए. राजस्थान की जनता का संदेश साफ है. लालच देकर और झूठे वादे करके जनता को बरगलाया नहीं जा सकता. कांग्रेस ने राजस्थान में हर तरह का प्रयोग किया, पचास लाख का स्वास्थ्य बीमा, महिलाओं, बुजुर्गों, किसानों, बेरोजगारों, सबको हर महीने पैसा देने, जैसे तमाम वादे किए लेकिन सारे फॉर्मूलों को जनता ने अनसुना कर दिया. इसका मतलब है कि मजबूत, बेदाग, असरदार और निर्णायक नेतृत्व को जनता पसंद करती है. बीजेपी ने बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ा, सिर्फ मोदी के नाम और काम पर. जनता ने मोदी की गारंटी पर यकीन किया. चुनाव नतीजों से अशोक गहलोत के राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठेंगे. सचिन पायलट अपना रास्ता तलाशेंगे क्योंकि अब पांच साल तक खाली बैठना उन जैसे नौजवान नेता के लिए आत्मघाती होगा. इसलिए इन चुनाव नतीजों के आफ्टर इफैक्ट राजस्थान में अभी अगले कुछ महीनों में दिखाई देंगे लेकिन फिलहाल राजस्थान में ये बड़ा सवाल है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा.

छत्तीसगढ़

सबसे ज्यादा चौंकाने वाले नतीजे छत्तीसगढ़ में आए. सारे एक्जिट पोल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार रिपीट होने का दावा कर रहे थे लेकिन सारे पोल पंडित गलत साबित हुए. छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी ने जबरदस्त जीत दर्ज की. कांग्रेस को जीत का इतना यकीन था कि कांग्रेस की तरफ से पचहत्तर तरह की सौ किलो मिठाई कांग्रेस के ऑफिस में रखवा दी गई थी क्योंकि कांग्रेस को लगता था कि पार्टी 90 में से 75 सीटें जीतेगी लेकिन दो घंटे की काउंटिंग के बाद कांग्रेस के दफ्तर में न लड्डू बांटने वाले दिखे, न लड्डू खाने वाले. कांग्रेस के बड़े बड़े नेता चुनाव हार गए. भूपेश बघेल सरकार में गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष दीपक बैज भी चुनाव हार गए. भूपेश बघेल पाटन सीट से 19,723 वोट के अंतर से अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे. छत्तीसगढ़ में बीजेपी की जीत विशुद्ध रूप से सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी की गारंटी की जीत है. छत्तीसगढ में न बीजेपी का संगठन था, न नेतृत्व था, न तैयारी थी. ऐसा लगता था कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी चुनाव से पहले ही हथियार डाल चुकी थी लेकिन चुनाव से दो हफ्ते पहले मोदी ने छत्तीसगढ़ में हवा का रूख बदल दिया. कांग्रेस ने धान खरीद से लेकर गोबर खरीद तक के वादे किए. केजी से लेकर पीजी तक मुफ्त शिक्षा का वादा किया. किसानों नौजवानों को हर किसी को कुछ न कुछ देने का वादा किया लेकिन मोदी ने सिर्फ इस बात की गारंटी दी कि बीजेपी की सरकार सबका साथ लेगी, सबका विकास करेगी. हर किसी की जिंदगी को बेहतर बनाएगी. लोगों ने मोदी की गारंटी पर यकीन किया और नतीजा सबके सामने हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुई हार कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका है. उसकी वजह समझिए. मोदी को हराने की कांग्रेस की सारी उम्मीद चार राज्यों के चुनाव पर टिकी हुई थी. विरोधी दलों के गठबंधन का नेतृत्व करने का कांग्रेस का सपना इसी पर आधारित था. कांग्रेस का केन्द्र की सत्ता में वापस आने का रास्ता इन्हीं राज्यों से होकर गुजरता था. राहुल गांधी ये चुनाव किसी कीमत पर हारना नहीं चाहते थे. इसीलिए अपनी फितरत के विपरीत अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और कमलनाथ की हर एक बात मानी. राहुल और प्रियंका ने पूरी ताकत लगाई, मुफ्त का माल बांटने के वादे किए और तनाव कितना ज्यादा था इसका अंदाजा आपको इस बात से लगेगा कि काउंटिंग के दिन अपने चुनाव जीतने वाले विधायकों के लिए होटल बुक कराए जा चुके थे, हैलीकॉप्टर और प्लेन भी तैयार खड़े थे. दो चार विधायकों की कमी पड़ने पर उन्हें तोड़ने का इंतजाम भी कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार कर चुके थे. लेकिन हार इतनी करारी हुई कि कुछ भी काम नहीं आया. हार इतना दर्द देने वाली हुई कि कांग्रेस का कोई बड़ा नेता रविवार को मीडिया के सामने नजर ही नहीं आया. मेरी कांग्रेस के एक बड़े नेता से बात हुई. उन्होंने कहा कि अब क्या कहें? राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा मध्य प्रदेश और राजस्थान से गुजरी थी, उसका कोई असर नहीं हुआ, राहुल ने ओबीसी और कास्ट सेंसस के नाम पर मोदी को घेरने की कोशिश की थी, वो भी बेकार हो गई, राहुल गांधी अडा़नी, अड़ानी करते रहे और तीन राज्यों में जमीन खिसक गई, मंदिरों में घूमे, हनुमान चालीसा का पाठ किया, किसान बने, ट्रक ड्राइवर के साथ घूमे, कुली बनकर बोझ उठाया लेकिन कुछ काम नहीं आया. मोदी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया. मोदी को पनौती कहकर मजाक उडाया लेकिन कांग्रेस वाले कह रहे हैं कि ये तो खुद पनौती साबित हुए. मोटी सी बात ये है कि राहुल की कांग्रेस ने हर तीर चलाया, लेकिन कोई निशाने पर नहीं लगा. तीन राज्यों की हार ने सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया. राहुल को फिर से लॉंच करने की ये कोशिश भी बेकार साबित हुई. अब राहुल को नए सलाहकार रखने पड़ेंगे या सलाहकारों को नई स्क्रिप्ट लिखनी पड़ेगी. वरना सलाहकारो कों नई नौकरी खोजनी पड़ेगी.

तेलंगाना

कांग्रेस के लिए कुछ राहत की खबर तेलंगाना से आई. तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बनेगी, रेवंत रेड्डी मुख्यमंत्री बनने वाले हैं. तेलंगाना के लोगों ने दस साल से राज कर रहे केसीआर को वनवास पर भेज दिया. तेलंगाना में कांग्रेस को बहुमत मिला है. 119 में से कांग्रेस को 64 सीटें मिली हैं, BRS को सिर्फ 39 सीटें मिली हैं. ओवैसी की पार्टी को पिछली बार भी सात सीटें मिली थी, इस बार भी सात सीटें मिली हैं. लेकिन बड़ी बात ये है कि तेलंगाना में बीजेपी ओवैसी की पार्टी से बड़ी पार्टी हो गई है. बीजेपी को तेलंगाना में 8 सीटों पर जीत मिली हैं जबकि पिछले चुनाव में बीजेपी सिर्फ एक सीट जीती थी. सिर्फ तेलंगाना ऐसा राज्य है जिसमें एक्जिट पोल पूरी तरह सही साबित हुए. तेलंगाना में हार के बाद तो केसीआर सामने ही नहीं आए. उन्होंने घर से ही राज्यपाल को इस्तीफा भेज दिया. दिलचस्प बात ये है कि तेलंगाना में रेवंत रेड्डी और केसीआर दोनों दो-दो सीटों से चुनाव लड़े थे, दोनों एक एक सीट से जीत गए, लेकिन कामारेड्डी सीट पर केसीआर और रेवंत रेड्डी आमने सामने थे और दोनों हार गए. कामारेड्डी में बीजेपी के उम्मीदवार वैंकेट रामन्ना रेड्डी ने रेवंत रेड्डी और केसीआर दोनों को हरा दिया. कामारेड्डी में बीजेपी उम्मीदवार ने केसीआर को 6,741 वोट से हरा दिया. रेवंत रेड्डी तीसरे नंबर पर रहे. तेलंगाना में भले ही कांग्रेस की सरकार बन गई है लेकिन बीजेपी ने जिस तरह से तेलंगाना में अपना जनाधार बढ़ाया है, सीटों की संख्या बढ़ी है, उससे कांग्रेस, केसीआर और ओवैसी तीनों की परेशानी बढ़ेगी. चुनाव नतीजे केसीआर की पार्टी के लिए खतरे की घंटी है. केसीआर ने अपनी पार्टी का नाम सिर्फ इसलिए बदला था क्योंकि वो अब राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहते थे. केसीआर तेलंगाना में जीत के प्रति आश्वस्त थे. वो चाहते थे कि चुनाव के बाद वो तेलंगाना की सत्ता बेटे के. टी. रामाराव को सौंप कर खुद राष्ट्रीय राजनीति करेंगे लेकिन जनता ने उनका प्लान चौपट कर दिया. अब हालात ऐसी है कि हो सकता है केसीआर को पार्टी का नाम BRS से बदलकर फिर से TRS करना पड़े. इस बार तेलंगाना में कांग्रेस का पूरा जोर मुस्लिम वोट बैंक पर कब्जा करने पर था. उसमें कांग्रेस कामयाब हुई लेकिन अब बीजेपी इसका फायदा उठाएगी और हिन्दू मतदाताओं को एकजुट करेगी. इसका असर लोकसभा चुनाव में दिखेगा. इसीलिए रविवार को मोदी ने कहा कि तेलंगाना के लोगों ने बीजेपी के लिए दरवाजे खोले हैं, अब वो दिन दूर नहीं जब तेलंगाना की जनता बीजेपी के लिए दिल के दरवाजे भी खोलेगी.

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