अमेरिका से बड़ी खबर आई. चीन की बड़ी साजिश का खुलासा हुआ. इस बात के सबूत सामने आ गए कि चीन बड़े पैमाने पर पैसा खर्च करके दुनिया के कई देशों में वहां की सरकारों के खिलाफ दुष्प्रचार करवा रहा है. अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राजील, साउथ अफ्रीका और कई दूसरे अफ्रीकी मुल्कों के साथ साथ भारत में भी चीन अपना जाल फैला चुका है. कुछ मीडिया संस्थानों, अर्बन नक्सल्स, कुछ स्वघोषित बुद्धिजीवियों और कुछ पत्रकारों को करोड़ों रुपए देकर चीन की सरकार अपनी तारीफ करवाती है और भारत सरकार के खिलाफ खबरें प्लांट करवाती है. हमारे देश में एक कंपनी को 8 करोड़ रूपए दिए गए. अब पता लगा कि ये पैसा नरेन्द्र मोदी की और मोदी सरकार की छवि को खराब करने के लिए दिए गए थे. हैरानी की बात ये है कि हमारी जांच एजेंसियों को तीन साल पहले इस कंपनी के कारोबार पर शक हुआ था. जैसे ही उस वक्त एक्शन हुआ, तो कांग्रेस, लैफ्ट और दूसरे राजनीतिक दलों ने सरकार पर मीडिया की आवाज को दबाने का इल्जाम लगाया था. इस कंपनी के पक्ष में खड़े हो गए थे. लेकिन आज अमेरिका के बड़े अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने खुलासा किया कि न्यूजक्लिक नाम की मीडिया कंपनी में चीन ने एक अमेरिकी अरबपति के ज़रिये बड़े पैमाने पर पैसा पंप किया. उसे 38 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम पहुंचाई और इसके बदले में इस कंपनी ने चीन के भारत-विरोधी प्रोपेगंडा को आगे बढ़ाया. चीन ने एक बड़े अमेरिकी अरबपति नेविल रॉय सिंघम की कंपनियों के ज़रिए भारत और दूसरे देशों में अपने प्रचार करवाने के लिए पैसे पहुंचाए. पूरा मामला गंभीर है. इसके दो कारण हैं – पहली बात ये कि ये ख़बर अमेरिका के ऐसे अख़बार में छपी है, जिसे मोदी-विरोधी माना जाता है. न्यूयॉर्क टाइम्स पिछले नौ साल से लगातार मोदी और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ ख़बरे छापने के लिए मशहूर है. इसलिए वहां ये ख़बर छपना कि चीन, भारत में पैसा पंप करके, मोदी विरोधी प्रोपेगैंडा चला रहा है, चौंकाने वाला है. चीन भारत में यू-ट्यूब चैनल्स, वेबसाइट्स और पत्रकारों को फंड करके भारत की राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है, ये चिंता में डालने वाला है. दूसरी बात ये कि इन मामलों की जांच हमारे देश की एजेंसीज़ पहले से कर रही हैं, लेकिन उनकी जांच को ये कहकर पक्षपातपूर्ण करार दे दिया गया कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बोलने वालों की आवाज़ को दबाया जा रहा है. लेकिन एजेंसीज़ की जो जांच हैं, उसमें भी कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं, और इसकी सिर्फ़ एक मिसाल मैं आपको देता हू. CPI-M के एक बड़े नेता ने नेविल रॉय सिंघम को अपने ई-मेल में लिखा कि जब से सा पर विवाद गहराया, तब से भारत में चीन के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है और इसका ज़बरदस्त असर हुआ है. उन्होंने आगे लिखा कि भारत सरकार चीन से आने वाली पूंजी और वस्तुओं पर पाबंदियां लगा रही है, इससे हमारे देश का बहुत नुक़सान होगा. आप सोचिए कि ऐसी सोच रखने वाले देश का कितना नुक़सान कर सकते हैं. कुछ लोग ये भी पूछ सकते हैं कि कुछ वेबसाइट्स को, कुछ यू ट्यूब चैनल्स को, कुछ पत्रकारों को खरीद कर चीन भारत का क्या बिगाड़ लेगा? मेरा कहना ये है, ये मुद्दा छोटा नहीं है, ये बड़ी साजिश का छोटा सा हिस्सा है. ये टिप ऑफ द आइसबर्ग है. टेक्नोलॉजी के जमाने में युद्ध अब सिर्फ हथियारों से नहीं लड़े जाते. सिर्फ सैनिकों के जरिए सरहद पर नहीं लड़े जाते. आज की दुनिया में इनफॉर्मेशन वॉर लड़ी जाती है. अपने विरोधी को कमजोर करने के लिए डिजिटल प्रोपैगेंडा को हथियार बनाया जाता है. मुझे एप्पल कंपनी के फाउंडर स्टीव जॉब्स की बात याद है. स्टीव जॉब्स ने कहा था कि अब दुनिया में युद्ध, इनफॉर्मेशन का होगा, सूचना का होगा. वही हो रहा है. चीन की ये हरकत उसी का सबूत है. आजकल कई लोग ये भारत-विरोधी नेरटिव सैट करते हैं कि मोदी चीन से डरते हैं, चीनी सैनिकों ने हमारे सैनिकों की पिटाई कर दी, कि चीन बहुत ताक़तवर है, उसने सड़कें बना लीं, हमारी सरहद पर कॉलोनियां बसा लीं, हम कुछ नहीं कर सकते. ये नकारात्मक नैरेटिव इसी प्रोपेगैंडा वॉर का हिस्सा है. यही लोग कहते हैं कि चीन में कितनी अच्छी सरकार है. लेकिन यही लोग ये बताना भूल जाते हैं कि चीन में बोलने की आज़ादी नहीं है. वहां तो बड़े बड़े मंत्री, जैसे विदेश मंत्री छिन कांग, जिन्हें पिछलें दिनों बरखास्त किया गया, रातों-रात ग़ायब हो जाते हैं. उद्योगपतियों का पता ही नहीं चलता.सबसे अमीर चीनी उद्योगपति जैक मा तीन साल तक गायब रहे. इसलिए चीन और भारत में मीडिया की तुलना करना बेमानी है. लेकिन चीन इनफॉर्मेशन वॉर सिर्फ भारत से लड़ रहा है, ऐसा नहीं हैं. चीन पूरी दुनिया में यही कर रहा है. जो छोटे देश हैं, उनको कर्ज देकर उन देशों को अपना गुलाम बनाता है और जिन पर चीन की दादागीरी नहीं चलती, उनमें इस तरह की हरकतें करके वहां की सरकारों को बदनाम करता है और चीन का वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करता है. ये चीन की फ़ितरत है. अपने लोगों से मै कहना चाहता हूँ विदेशी प्रभाव में काम करनेवाले यूट्यूबर्स पर, ऐसी वेबसाइट्स पर नजर रखने की जरूरत है, paid news पर भरोसा नहीं करना चाहिए, ये वही लोग हैं जो असली मीडिया को बदनाम करते हैं, और खुद पैसे बनाते हैं. इसलिए इसे ध्यान से समझने की ज़रूरत है. हर भारतीय को संभलने की ज़रूरत है.