Rajat Sharma

पटना बैठक : क्या एक मजबूत विपक्ष बन पाएगा ?

AKBशुक्रवार को पटना में 15 बड़े विपक्षी दलों की बैठक में यह सहमति हुई कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और बीजेपी को हराने के लिए सभी पार्टियां मिलकर लड़ेंगी. लेकिन आम आदम पार्टी के नेता साझा प्रेस कॉंफ्रेंस से पहले उठ कर चले गये. बाद में आम आदमी पार्टी ने अपने बयान में कहा कि वो इस गठबंधन का तब तक हिस्सा नहीं बनेगी जब तक कांग्रेस दिल्ली अध्यादेश का सार्वजनिक रूप से विरोध नहीं करती. सूत्रों के मुताबिक, मीटिंग शुरू होते ही केजरीवाल ने केंद्र के अध्यादेश का मुद्दा उठाया और कांग्रेस से इसका विरोध करने को कहा. ये सुनते ही उमर अब्दुल्ला बीच में बोल पड़े. उमर अब्दुल्ला ने अरविंद केजरीवाल से आर्टिकल 370 पर अपनी पार्टी का रुख साफ करने को कहा. उमर अब्दुल्ला ने केजरीवाल से पूछा कि आर्टिकल 370 के मुद्दे पर उन्होंने विपक्ष का साथ क्यों नहीं दिया. कहा जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी अपने साथ अखबारों की कुछ कतरनें लेकर गए थे. खरगे ने केजरीवाल से पूछा कि मीटिंग से ठीक एक दिन पहले उनकी पार्टी की तरफ से इस तरह के आपत्तिजनक बयान क्य़ों दिए गए. मीटिंग में मौजूद कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल ने कहा कि ये तो बिल्कुल ऐसा ही है जैसे कनपटी पर पिस्टल रखकर फैसला करने को कहा जाए. राहुल गांधी ने कुछ नहीं कहा. एक बात समझने की है कि केजरीवाल के लिए इस ऑडिनेंस को संसद में हराना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर ये बिल पास हो जाता है तो दिल्ली में अफसरों की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार के पास होगा और केजरीवाल कुछ नहीं कर पाएंगे. लेकिन कांग्रेस की परेशानी ये है कि दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के स्थानीय नेता किसी कीमत पर आम आदमी पार्टी के साथ नहीं जाना चाहते. उन्हें लगता है कि अगर पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस को पुनर्जीवित करना है तो आम आदमी पार्टी से लड़ना होगा और वो कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते जिससे केजरीवाल और मजबूत हों. ये समस्या सिर्फ केजरीवाल और राहुल गांधी के बीच में नहीं है. इस तरह की स्थानीय समस्या हर नेता और हर पार्टी के साथ है. पटना में जो नेता इकट्ठे हुए उनका तर्क है कि मोदी तानाशाह हैं, मोदी ने लोकतंत्र को खत्म कर दिया है, देश को बचाना है, संविधान को बचाना है, इसलिए विरोधी दलों को साथ आना है., मिलकर मोदी को हराना है. अगर बीजेपी की बात सुनें , तो लगेगा पटना में जितने नेता इकट्ठा हुए शरद पवार और बेटी सुप्रीया सुले, लालू और बेटे तेजस्वी, उद्धव और बेटे आदित्य – ये सब अपनी विरासत को बचाने के लिए खड़े हैं. बीजेपी का कहना है कि इन नेताओं को देश के संविधान से कुछ लेना देना नहीं है. चाहे राहुल गांधी हों, स्टालिन हों, महबूबा हों, अखिलेश हों, हेमंत सोरेन हों या उमर अब्दुल्ला – ये सब अपने अपने पिता श्री की पार्टियां संभाल रहे हैं. बीजेपी कहती है ये देश बचाने के लिए नहीं, अपने परिवारों को बचाने के लिए निकले हैं लेकिन मुझे लगता है कि इन सब नेताओं को जोड़ने वाला फैविकॉल कुछ और है. एक चीज कॉमन है जिसने इन नेताओं को सारे मतभेद भुलाकर इकट्ठे होने पर मजबूर कर दिया, वो है ईडी, सीबीआई और आईटी के केस. ये सारे नेता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी केस में फंसे हैं, कुछ ज़मानत पर हैं, कुछ के साथी जेल में हैं और बाकी सब जांच के दायरे में हैं. ईडी और सीबीआई के केसे ने इन नेताओं के आत्म सम्मान पर गहरी चोट पहुंचाई है. मोदी सरकार आने से पहले भी केस होते थे पर उनका़ी संख्या कम थी. कोई न कोई किसी न किसी नेता को बचा लेता था, जांच होती थी, कोर्ट में पेशी होती थी, पर जेल जाने का डर नहीं होता था.आज 15 पार्टियों के जो 30 नेता पटना में साथ साथ दिखाई दिए, उनमें से हर किसी के दो चार करीबी अभी भी जेल में हैं. सब जानते हैं कि जब तक मोदी सरकार में हैं, बचना मुश्किल है. जो बीजेपी में शामिल हो सकते थे, वो चले गए. जो जा नहीं पाए, वो विरोधी दलों की मुहिम में लगे हैं. ये चोट खाए हुए घायल सेनापतियों का गठबंधन है. अगर ये गठबंधन बना रहा, इसका असर तो जरूर होगा. आज की तारीख में लगता है कि ये लोग सरकार तो नहीं बना पाएंगे, लेकिन कम से कम एक मजबूत विपक्ष जरूर बन पाएगा.

ममता की समस्या

मीटिंग में जब ममता बनर्जी कांग्रेस अध्यक्ष खर्गे और राहुल गांधी के साथ बैठ कर विपक्षी एकता पर बात कर रही थी, उस समय कोलकाता में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ममता सरकार के खिलाफ धरने पर बैठे थे. अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ममता के साथ चलना नामुमकिन है, बंगाल में कांग्रेस ममता से लड़ती रहेगी क्योंकि ममता की कोशिश बंगाल में कांग्रेस को खत्म करने की है और वो ये होने नहीं देंगे. चौधरी ने आरोप लगाया कि तृणमूल के समर्थकों ने कांग्रेस उम्मीदवारों को पंचायत चुनाव में नामांकन भरने नहीं दिया, बम फेंके और खूनखराबा किया.
सीपीएम से ममता बनर्जी की नाराज़गी भी जगजाहिर है. बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने कहा कि अगर ममता बनर्जी सब कुछ भूलकर भी इस गठबंधन का हिस्सा बनती हैं तो इसका मतलब साफ है कि उन्हें स्वाभिमान से ज्यादा स्वार्थ की चिंता है. लेकिन हकीकत ये है कि ममता बनर्जी की समस्या कांग्रेस और सीपीएम नहीं, सीबीआई और ईडी हैं. ममता बनर्जी की समस्या पश्चिम बंगाल के गर्वनर हैं. ममता बनर्जी जानती हैं कि बीजेपी से वो अकेले लड़ सकती हैं, पश्चिम बंगाल में उनका जलवा है लेकिन वो ईडी, सीबीआई और गर्वनर से अकेले नहीं लड़ सकतीं. जैसे केजरीवाल को ऑडिनेंस खारिज करवाने के लिए कांग्रेस की जरूरत है, ममता को केंद्र में बाकी दलों के समर्थन की जरूरत है.

महबूबा और उमर की समस्या

कश्मीर में महबूबा मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार के बीच सियासी तकरार है, लड़ाई है. सवाल इस बात का है कि एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाली ये पार्टियां एक साथ कैसे आएंगी. दरअसल जो चीज इन्हें करीब ला रही है वो हैं प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी की ताकत.. पटना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सारे नेताओं ने अपने अपने एजेंडे पर ही बात की. महबूबा मुफ्ती ने कहा कि देश में धर्मनिरपेक्षता खत्म हो रही है, मुसलमानों के साथ ज्यादती हो रही है. इस सबकी शुरुआत कश्मीर से हुई है, अब कश्मीर और देश की धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए सबको साथ आना पड़ेगा. महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला दोनों के सामने यही मुश्किल है कि कश्मीर में चुनाव नहीं हुए तो उनका क्या होगा. उमर अब्दुल्ला ने कहा कि कश्मीर का राज्य का दर्ज़ा बीजेपी ने छीन लिया. वहां चुनाव नहीं करवाए जा रहे हैं, कश्मीर की इस लड़ाई को सबको साथ मिलकर लड़ना होगा. महबूबा मुफ्ती आज आइडिया ऑफ इंडिया की बात कर रही हैं, गांधी और नेहरु की बात कर रही हैं. लेकिन यही महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि अगर कश्मीर से धारा 370 हटाया गया तो कश्मीर में तिरंगा उठाने वाला कोई हाथ नहीं होगा, लेकिन आज कश्मीर काफी आगे बढ़ चुका है. उमर अब्दुल्ला कश्मीर को बदनसीब इलाका बता रहे हैं लेकिन कोई उनसे पूछे कि कश्मीर में तब बदनसीबी नहीं थी जब उनकी सरकार थी ? तब बदनसीबी नहीं थी जब वहां आतंकवाद था, अलगाववादी थे, हुर्रियत थी, पत्थरबाज थे? अब जब कश्मीर में अमन है, विकास है, तरक्की के रास्ते खुल रहे हैं , ये उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती दोनों के लिए चैलेंज है. मजे की बात ये कि उमर भी बीजेपी की सरकार में रह चुके हैं और महबूबा मुफ्ती भी बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला चुकीं हैं. यही हाल उद्धव ठाकरे का है.

उद्धव ठाकरे की समस्या

उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक ही बात कही. कहा, इस मीटिंग में आई पार्टियों की विचारधाराएं अलग-अलग है, तालमेल बिठाना मुश्किल हो सकता है लेकिन बीजेपी को अगर हराना है तो सबको साथ आना ही होगा. उद्धव ठाकरे प्रेस कॉन्फ्रेंस में महबूबा मुफ्ती के ठीक बगल में बैठे थे. इसी को लेकर देवेंद्र फडणवीस ने ठाकरे की चुटकी ली. फडणवीस ने कहा कि कल तक उद्धव ठाकरे महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाने को लेकर बीजेपी से सवाल पूछते थे और आज उन्हीं के बगल में बैठकर साथ चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. फडणवीस ने कहा कि ये मोदी को हटाने के लिए नहीं बल्कि अपना परिवार बचाने के लिए साथ आ रहे हैं. उद्धव ठाकरे की मुश्किल ये है कि विचारधारा से वो बीजेपी के नज़दीक हैं लेकिन कुर्सी के लिए उन्हें शरद पवार और राहुल गांधी का साथ चाहिए. जब उद्धव ठाकरे ने महाआघाड़ी के साथ मिलकर सरकार बनाई, मुख्यमंत्री बने, तो उन पर सबसे बड़ा इल्जाम यही लगा कि उन्होंने विचारों से समझौता कर लिया. इसलिए आज उन्होंने अलग अलग विचारधारा की बात की लेकिन अब उद्धव ठाकरे के पास न पार्टी बची, न सिंबल बचा और न ही पार्टी का नाम बचा. इसलिए अपने अस्तित्व के लिए उद्धव ठाकरे का इस गठबंधन में शामिल होना उनकी मजबूरी है.

लालू हैं सूत्रधार

लालू यादव बहुत दिन बाद पूरे रंग में दिखाई दिए. उन्होंने जता दिया कि विरोधी दलों की एकता के प्रयास के सूत्रधार वही हैं. लालू और नीतीश दोनों ने सबसे ज्यादा भाव राहुल गांधी को दिया. लालू यादव बहुत दिनों के बाद अपने पुराने अंदाज में नजर आए. मीटिंग में उन्होंने क्या कहा ये तो मुझे नहीं मालूम, लेकिन मीडिया के सामने लालू ने पहले राहुल गांधी की दाढ़ी का जिक्र किया. राहुल को सलाह दी कि उनको अपनी दाढ़ी और नहीं बढ़ानी चाहिए. और इसके बाद लालू ने राहुल गांधी से कहा कि अब उन्हें शादी कर लेनी चाहिए. राहुल इस कमेंट को सुनकर थोड़े परेशान थे. कुछ कहना चाहते थे लेकिन लालू तो लालू हैं, उन्होंने राहुल से कहा कि अभी भी टाइम है शादी कर लेनी चाहिए, अब देर नहीं करनी चाहिए. लालू यादव ने पिछले कई साल में कई तरह की चुनौतियों का सामना किया है. लंबे समय तक जेल में रहे, उसके बाद बहुत बीमार रहे, किडनी ट्रांसप्लांट करवाया लेकिन आज ये देखकर अच्छा लगा कि वो अब काफी रिकवर कर गए हैं. उनके चेहरे पर वो शरारत वाली हंसी लौट आई है. लालू के विरोधी भी मानते हैं कि लालू हाजिर जवाबी में और कमेंट करने में कमाल करते हैं. मेरा लालू से अलग तरह का रिश्ता रहा है. 30 साल पहले ‘आपकी अदालत’ का पहला शो लालू की इसी हाज़िरजवाबी के कारण हिट हुआ था. लालू आज भी जब मिलते हैं, तो रॉयल्टी मांगते हैं. आज उन्हें पुराने रंग, पुराने अंदाज में देखकर अच्छा लगा.

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