Rajat Sharma

गुजरात : मोदी का रोड शो गेमचेंजर साबित हो सकता है

AKB30 गुजरात की नब्ज़ माने जानेवाले अहमदाबाद की सड़कों पर गुरुवार को एक अद्भुत नज़ारा देखने को मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो के दौरान पूरे रास्ते में सड़क के दोनों तरफ लोगों की जबरदस्त भीड़ दिखी। वाहनों के काफिले के साथ पीएम मोदी ने 50 किमी की दूरी तय की। इस दौरान समर्थकों ने उनपर फूल बरसाए। पीएम मोदी का काफिला 13 प्रमुख विधानसभा सीटों – नरोडा, ठक्करबापा नगर, निकोल, बापूनगर, अमराईवाडी, मणिनगर, दाणीलिमडा, जमालपुर खाडिया, एलिसब्रिज, वेजलपुर, घाटलोडिया, नारणपुरा और साबरमती से होकर गुजरा।

मोदी का रोड शो नरोडा से शुरू हुआ और चांदखेड़ा में जाकर खत्म हुआ। इस दौरान नौजवान, बुजुर्ग, छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लिए महिलाएं, सभी सड़क के किनारे खड़े होकर मोदी की एक झलक पाने के लिए बेसब्री से इंतजार करते नजर आए। सड़कों पर बजते ढोल-नगाड़े और आसमान में चमकती आतिशबाजी से ऐसा लग रहा था कि जैसे यह चुनाव प्रचार नहीं बल्कि कोई विजय जुलूस हो। सब जानते हैं कि गुजरात में मोदी कितने लोकप्रिय हैं, यहां लोग मोदी के दीवाने हैं और मोदी के नाम पर वोट देते हैं। पिछले दो दशक से ज्यादा समय से गुजरात की जनता उन्हें और उनकी पार्टी को वोट दे रही है।

लोग ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगा रहे थे। कई जगह तो ‘देखो-देखो कौन आया..शेर आया.. शेर आया’ जैसे नारे लगे। बीजेपी नेताओं ने दावा किया कि यह किसी भी भारतीय राजनेता का अब तक का सबसे लंबा रोड शो है। रोड शो के दौरान इतना जोश नजर आया कि मुझे लगता है कि इन इलाकों में जो बीजेपी के उम्मीदवार हैं उन्हें ये लग रहा होगा कि उनकी जीत तो पक्की हो गई। वहीं दूसरी पार्टियों के उम्मीदवारों के दिल बैठ रहे होंगे। रोड शो के दौरान गुजरात की जनता का उमड़ा प्यार और स्नेह नरेंद्र मोदी की एक नेता के तौर पर लोकप्रियता और उनकी स्वीकार्यता का नज़ारा है। किसी और पार्टी के पास गुजरात में मोदी जैसा नेता नहीं है, किसी के पास मोदी जैसा चुनाव प्रचारक नहीं है। मोदी का यह रोड शो इस मायने में खास रहा क्योंकि गुजरात की सियासत में ये माना जाता है कि जिसने अहमदाबाद की अधिकांश सीटें जीत ली, सरकार उसी की बनती है।

अहमदाबाद में विधानसभा की कुल 21 सीटें है और 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 15 सीटें जीती थी। बीजेपी का स्ट्राइक रेट करीब 70 प्रतिशत था। 2017 के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला था। बीजेपी ने 99 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी जबकि कांग्रेस 77 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही थी।

2017 में गुजरात के कुल 33 जिलों में से 15 जिलों में कांग्रेस ने बीजेपी से ज्यादा सीटें जीती थी। बीजेपी केवल 13 जिलों में कांग्रेस से आगे थी। तीन जिलों में दोनों पार्टियों ने बराबर सीटें जीती लेकिन वह अहमदाबाद था जिसने बीजेपी को कांग्रेस पर निर्णायक बढ़त दिलाई थी। अहमदाबाद में पाटीदार समाज के लोगों की संख्या अच्छी खासी है। पिछली बार पाटीदार आरक्षण आंदोलन अपने चरम पर था। इसके बावजूद बीजेपी 21 में से 15 सीटें जीतने में सफल रही।

इस बार बीजेपी अपना प्रदर्शन और बेहतर करते हुए अहमदाबाद में क्लीन स्वीप करना चाहती है । यही वजह है कि नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद की सड़कों पर 50 किमी की दूरी तय कर 4 घंटे बिताए। मोदी का रोड शो जिन विधानसभा सीटों से गुजरा उनमें मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की सीट घाटलोडिया भी शामिल है। इस सीट पर कांग्रेस की राज्यसभा सांसद अमी याग्निक भूपेंद्र पटेल को टक्कर दे रही हैं।

कई लोगों ने मुझसे पूछा है कि नरेंद्र मोदी गुजरात के चुनाव में आखिर इतनी मेहनत क्यों कर रहे हैं ? दिनभर रैलियों को संबोधित करने के बाद 50 किलोमीटर लंबा रोड शो करने की क्या जरूरत थी ? जब सारे ओपिनियन पोल कह रहे हैं कि बीजेपी की जीत हो रही है तो मोदी को इस तरह मैदान में उतरने की क्या जरूरत थी? अगर आप कांग्रेस या केजरीवाल की पार्टी के लोगों की बात सुनेंगे तो वे कहेंगे कि मोदी को इतनी मेहनत इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि बीजेपी की हालत खराब है। वे कहेंगे कि बीजेपी ने अगर 27 साल में काम किए होते तो मोदी को इतना जोर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।

लेकिन अगर आप मोदी को जानते हैं और गुजरात को समझते हैं तो ये बातें बचकानी लगेंगी। क्या राहुल गांधी गुजरात में इसलिए प्रचार नहीं कर रहे क्योंकि यहां कांग्रेस की भारी जीत होने जा रही है ? क्या केजरीवाल कई महीने से गुजरात की सड़कों की खाक छान रहे हैं क्योंकि उनकी पार्टी जीतने वाली है? ऐसी बातों में कोई तर्क नहीं है। अगर मोदी गुजरात में कम प्रचार करते तो यही लोग कहते कि गुजरात में बीजेपी हार रही है इसलिए इस बार मोदी मैदान छोड़कर भाग गए।

बता दें कि चुनाव प्रचार में मशक्कत करना, पूरी जान लगा देना नरेंद्र मोदी के चरित्र का मूल गुण है। अगर 2017 के चुनाव प्रचार से तुलना करें तो इस बार गुजरात में मोदी ने कम रैलियां की हैं। 5 साल पहले जब विधानसभा के चुनाव हुए थे तो मोदी ने 34 जनसभाओं को संबोधित किया था। इस बार उनका प्लान 27 रैलियों को संबोधित करने का है। लेकिन ये सही है कि बाकी नेताओं के मुकाबले मोदी की मेहनत को देखकर विरोधियों को आश्चर्य होता है।

आखिरकार मोदी प्रधानमंत्री हैं और उनकी अपनी जिम्मेदारियां और चिंताएं हैं। उन्हें शासकीय मामलों के लिए भी समय चाहिए। प्रधानमंत्री पहले भी हुए हैं लेकिन किसी ने इस अंदाज़ में और इतना सक्रिय होकर चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लिया। मुझे लगता है कि बाकी नेताओं और विरोधियों में फर्क ये है कि मोदी चुनाव प्रचार और चुनाव लड़ने को इन्जॉय करते हैं। उन्हें चुनाव प्रचार में लोगों के बीच जाकर आनंद की अनुभूति होती है, इसीलिए थकान नहीं होती।

दूसरी बात ये है कि मोदी हर चुनाव को पूरी तैयारी और मजबूत रणनीति के साथ लड़ते हैं, ये उनकी फितरत है। इसीलिए वो एक के बाद एक चुनाव जीतते जाते हैं। अगर कांग्रेस के सबसे बड़े चुनाव प्रचारक राहुल गांधी से उनकी तुलना करें तो फर्क साफ नजर आएगा। राहुल गांधी गुजरात में एक दिन मुंह दिखाकर लौट आए। उन्होंने दो रैलियों को संबोधित किया और चले गए। ऐसे में कांग्रेस कैसे जीतेगी? उनकी भारत जोड़ो यात्रा अपने आप में अच्छा प्रयास हो सकती है, लेकिन गुजरात और दिल्ली में कांग्रेस का सबसे बड़ा चुनाव प्रचारक नहीं दिखेगा तो कार्यकर्ताओं में उत्साह कहां से दिखाई देगा ?

मुझे लगता है विरोधी दलों के नेता मोदी को अभी पूरी तरह समझ नहीं पाए। वे यह तय नहीं कर पाते कि जो मोदी करते हैं, उसे फॉलो करें या जो मोदी करते हैं उसका उल्टा करें। इसीलिए मोदी इन सबसे आगे हैं और लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब होते हैं। यही वजह है कि मोदी का अहमदाबाद रोड शो इतना सफल दिखाई दिया।

मोदी को एक और फायदा है। चुनाव प्रचार के दौरान उनके विरोधी जाने-अनजाने उनकी खूब मदद करते हैं, बैठे-बिठाए उन्हें ऐसा मुद्दा थमा देते हैं जिससे वे मतदाताओं को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब हो जाते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी की तुलना रावण से कर दी और उन्हें ‘100 सिर वाला रावण’ बता दिया। मोदी ने खड़गे के इस बयान को गुजरात के सम्मान के साथ जोड़ दिया। वे अब अपनी रैलियों में मतदाताओं से कह रहे हैं कि ‘गुजरात का अपमान करने के लिए कांग्रेस को सबक सिखाएं।’

पता नहीं कांग्रेस कब समझेगी कि मोदी को रावण कहने से गुजरात की जनता भड़कती है। यह हमेशा उल्टा पड़ता है। अगर आप गुजरात में मोदी को ‘रावण’ कहेंगे तो जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहने का नतीजा कांग्रेस ने देखा है। मोदी को ‘नीच’ कहने का असर क्या होता है ये भी कांग्रेस को मालूम है।

मोदी अपमान करने वाले शब्दों की बाजी को पलटना जानते हैं। खासतौर पर गुजरात में जहां लोगों की भावनाएं मोदी से जुड़ी हैं वहां रावण शब्द का इस्तेमाल भारी पड़ सकता है। कांग्रेस के पास अच्छा खासा जनाधार है, एक विचारधारा है। अगर कांग्रेस मोदी के लिए अपशब्द कहने की बजाए उनकी आलोचना करती और अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरकर उन्हें काम पर लगाती तो पार्टी को फायदा हो सकता था।

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Comments are closed.