Rajat Sharma

क्या उद्धव सेना शिंदे सेना के सामने समर्पण करेगी ?

rajat-sir महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट का यह दूसरा हफ्ता है। राजनीतिक गहमागहमी ज़ोरों पर है। मंगलवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने गुवाहाटी में बैठे बाग़ी शिवसेना विधायकों के नाम खुली अपील जारी की।

अपनी अपील में उद्धव ठाकरे ने बागी विधायकों से कहा, “आप पिछले कुछ दिनों से गुवाहाटी में फंसे हुए हैं। आपके बारे में रोज नई जानकारी सामने आ रही है, आप में से कई लोग संपर्क में भी हैं । आप अभी भी दिल से शिवसेना में हैं । आप में से कुछ विधायकों के परिवार के सदस्यों ने भी मुझसे संपर्क किया है और मुझे अपनी भावनाओं से अवगत कराया है। शिवसेना के परिवार के मुखिया के रूप में मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं। भ्रम से छुटकारा पाएं, इसका एक निश्चित रास्ता होगा, हम बैठेंगे एक साथ और इससे बाहर निकलने का रास्ता खोजें”

अपनी अपील में उद्धव ने आगे लिखा, “ किसी के गलत झांसे में न आएं, शिवसेना द्वारा दिया गया सम्मान कहीं नहीं मिल सकता, आगे आकर बोलेंगे तो मार्ग प्रशस्त होगा। शिवसेना पार्टी प्रमुख और परिवार के मुखिया के रूप में, मुझे अभी भी आपकी चिंता है”

उद्धव ठाकरे की अपील का बागी विधायकों पर कितना असर पड़ेगा, कहना मुश्किल है। पर ये सच्चाई है कि बागी खेमा विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने और बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार बनाने की संभावनाओं को लेकर पूरा जोर लगा रहा है। उद्धव ठाकरे एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं।

इस बीच, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मंगलवार को दिल्ली पहुंचे जहां वे गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी जेपी नड्डा के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। फडणवीस ऐसे समय दिल्ली पहुंचे हैं जब इस बात की चर्चा है कि राज्यपाल महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को इस सप्ताह के अंत तक विधानसभा में बहुमत साबित करने का निर्देश दे सकते हैं।

इससे पहले सोमवार को एमवीए सरकार को उस समय करारा झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में शिवसेना के सभी बागी विधायकों को 11 जुलाई शाम 5.30 बजे तक अयोग्य ठहराने पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने एमवीए सरकार को निर्देश दिया कि वह महाराष्ट्र में बागी विधायकों और उनके परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारडीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने शिवसेना के उस आग्रह को ठुकरा दिया, जिसमें बागी विधायकों को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट की मांग करने से रोकने का अनुरोध किया गया था। एमवीए गठबंधन और डिप्टी स्पीकर के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ को शिवसेना के 15 बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही में दखल नहीं देने के लिए अपनी दलीलों के जरिए मनाने की पूरी कोशिश की। इन वकीलों ने यह भी तर्क सामने रखा कि सुप्रीम कोर्ट को विधानसभा स्पीकर की कार्रवाई में दख़ल देने का अधिकार नहीं है।

साफ है, सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे गुट की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उद्धव ठाकरे की सरकार चाहती थी कि अदालत से शिंदे गुट को कोई राहत न मिले। लेकिन अदालत से बागियों को और मोहलत मिल गई। साथ ही बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की कोशिशों पर भी ब्रेक लग गया है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल बीजेपी और शिवसेना का बागी खेमा अब जल्द फ्लोर टेस्ट का दबाव बनाने की तैयारियों में जुट गया है।

उधर, एक अन्य घटनाक्रम में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सभी 9 बागी मंत्रियों को कैबिनेट से हटाने के बजाए उनके विभाग छीन लिए। अब सवाल ये है कि जब एकनाथ शिंदे के साथ उद्धव ठाकरे के नौ मंत्री खुली वगावत कर रहे हैं और सरकार से समर्थन वापस लेने की बात कह रहे हैं तो फिर उद्धव ने इन मंत्रियों को हटाया क्यों नहीं ? उनके विभाग क्यों बदले ? क्या उद्धव को अब भी उम्मीद है कि विधायक वापस आ जाएंगे या कोई रास्ता निकल आएगा ? अब सभी की निगाहें राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर टिकी हैं, जिन्होंने मुख्य सचिव से 22 से 24 जून के बीच एमवीए सरकार द्वारा पारित सभी सरकारी प्रस्तावों का ब्यौरा मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बागी खेमे का मनोबल ऊंचा हो गया है। बागी विधायकों की अगुवाई कर रहे शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने ट्वीट कर कहा कि यह हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे और धर्मवीर आनंद दिघे (एकनाथ के राजनीतिक गुरु) की जीत है। वहीं दूसरी ओर, शिवसेना के वरिष्ठ नेता अनिल देसाई ने दावा किया कि गुवाहाटी में मौजूद 39 बागी विधायकों में से 20 ने फ्लोर टेस्ट के दौरान उद्धव ठाकरे का समर्थन करने का वादा किया है।

अनिल देसाई, संजय राउत, आदित्य ठाकरे और शिवसेना के दूसरे नेता भी जानते हैं कि ये सपने खोखले हैं। अगर उन्हें इन बागी विधायकों ने समर्थन का वादा किया होता तो ठाकरे खेमा बहुमत साबित करने के लिए विधानसभा सत्र बुलाने में देरी नहीं करता। बागवत के इस तूफान का मुकाबला करने और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए ठाकरे खेमा जिला स्तर पर और कस्बों में जनसभाएं कर रहा है।

बागी विधायकों की सबसे ज्यादा नाराजगी संजय राउत से है। संजय राउत पर आरोप है कि उन्होंने विधायकों और स्थानीय नेताओं को कभी उद्धव ठाकरे से मिलने नहीं दिया। बागी विधायकों का यह भी आरोप है कि संजय राउत सुलह की सभी कोशिशों को रोक रहे हैं। बागी विधायक दीपक केसरकर ने कहा कि संजय राउत बागियों के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे, जिसका इस्तेमाल कांग्रेस या एनसीपी जैसे नेताओं ने भी पहले कभी नहीं किया।

उधर, बीजेपी भी इस पूरे मामले पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और अभी अपने पत्ते नहीं खोल रही है। सोमवार को महाराष्ट्र बीजेपी कोर कमेटी की बैठक हुई और फैसला किया गया कि वह ‘वेट एंड वॉच’ की नीति अपनाएगी। पार्टी नेतृत्व ने एमवीए सरकार को नहीं गिराने का फैसला किया है। बीजेपी का मानना है कि महाविकास आघाड़ी गठबंधन अपने ही अंतर्विरोधों के भार से गिर जाएगी।

अब ऐसे में दो बातें स्पष्ट हैं। पहला ये कि उद्धव ठाकरे अब हर रिस्क लेने को तैयार हैं, लेकिन बीजेपी कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। उद्धव ठाकरे इस्तीफा भी दे सकते हैं, नाराज विधायकों के नेता एकनाथ शिन्दे को मुख्यमंत्री बनाने का ऑफऱ भी दे सकते हैं या फिर एनसीपी और कांग्रेस का साथ भी छोड़ सकते हैं। लेकिन ऐसे माहौल में फ्लोर टेस्ट करने को तैयार नहीं हो सकते।

आमतौर पर होता ये है कि इस्तीफे की मांग करने वाले फ्लोर टेस्ट से भागते हैं और सरकार सदन में बहुमत का फैसला करने की चुनौती देती है। लेकिन महाराष्ट्र में उल्टा हो रहा है। एकनाथ शिंदे फ्लोर टेस्ट की मांग कर रहे हैं और सरकार फ्लोर टेस्ट से बच रही है।

बीजेपी जानती है कि उद्धव ठाकरे में वो राजनीतिक कौशल नहीं है कि सरकार बचा लें। लेकिन एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की पावर और उनकी राजनीतिक चतुराई का लोहा बीजेपी के नेता भी मानते हैं। पवार क्या कर सकते हैं, ये फडणवीस और दूसरे बीजेपी नेता अजीत पवार के साथ सरकार बनाकर देख चुके हैं। इसीलिए बीजेपी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।

बीजेपी चाहती है कि या तो एकनाथ शिन्दे यह मांग करें कि सरकार विधानसभा में बहुमत साबित करे या फिर राज्यपाल खुद हालात को ध्यान में रखते हुए सरकार को बहुमत साबित करने का निर्देश दें। बीजेपी सरकार तो बनाना चाहती है लेकिन जल्दबाजी नहीं करना चाहती।

बीजेपी के नेता जानते हैं कि रायता इतना फैल चुका है कि उसे समेटना उद्धव के बस की बात नहीं है। इसीलिए अब सबकी नजर शरद पवार की ओर है। लेकिन शरद पवार कोई संकेत नहीं दे रहे हैं। वे चतुर राजनेता हैं और अपने अगले कदम के बारे में पहले से कोई संकेत नहीं देते। सोमवार को वे दिल्ली में थे और विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार यशवन्त सिन्हा का नामांकन दाखिल करने के लिए अन्य विपक्षी नेताओं के साथ व्यस्त थे।

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