Rajat Sharma

कोविड वैक्सीन में सूअर की चर्बी होने की अफवाह न फैलाएं

दवाओं में इस्तेमाल होने वाला जिलेटिन एक कोलेजन प्रोटीन है जिसे त्वचा, नस, लिगामेंट्स और/या हड्डियों को पानी में उबालकर प्राप्त किया जाता है। जिलेटिन को आमतौर पर जानवरों से हासिल किया जाता है जिनमें सूअर भी शामिल हैं। जिलेटिन का इस्तेमाल खासतौर पर ट्रासपोर्टेशन और डिलीवरी के दौरान वैक्सीन वायरस को बहुत ज्यादा ठंड या गर्मी जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाने के लिए किया जाता है। जेली प्रॉडक्ट्स, जेली कैंडीज, दही और बबल गम में भी जिलेटिन का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि कई फार्मा कंपनियां ऐसी भी हैं जो वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन के लिए जिलेटिन का इस्तेमाल नहीं करती हैं।

AKB4 एक तरफ दुनिया के तमाम देश यात्रा प्रतिबंधों को लागू कर कोरोना वायरस के नए घातक रूप से जूझ रहे हैं, तो दूसरी तरफ कुछ मौलानाओं की सरपरस्ती में भारतीय मुसलमानों का एक धड़ा कोरोना वायरस की वैक्सीन के ‘इस्लाम विरोधी’ होने की बात कह रहा है क्योंकि उसमें कथित तौर पर सूअर की चर्बी का इस्तेमाल हुआ है।

बुधवार को ऑल इंडिया जमीयतुल उलेमा, जमात उलेमा अहले सुन्नत, अंजुमन बरकते रज़ा, ऑल इंडिया मस्जिद काउंसिल, दारुल उलूम हनफिया रजविया और रज़ा अकादमी समेत कुल 9 मुस्लिम संगठनों के मौलानाओं ने मुंबई में बैठक की। बैठक में मौलानाओं ने फैसला किया कि वे इस बारे में एक्सपर्ट्स की राय लेंगे कि कोरोना की वैक्सीन ’हलाल’ है या ‘हराम’, क्योंकि ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि इस वैक्सीन को बनाने में सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। मौलानाओं ने कहा कि इसके बाद वे तय करेंगे कि भारत के मुसलमानों को कोरोना की वैक्सीन लगवाने के लिए कहना है या नहीं।

मौलानाओं ने कहा कि इस्लाम मुसलमानों को सूअर के किसी भी हिस्से से बनी वैक्सीन का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देता है। उलेमाओं ने कहा कि सूअर की चर्बी से बनी किसी भी वैक्सीन को मुसलमान नहीं लगवा सकते। उलेमा चीन की कोरोना वैक्सीन सिनोवैक को बनाने में सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किए जाने की खबरों पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे। उन्होंने कहा कि इस तरह की वैक्सीन मुसलमानों के लिए जायज नहीं है। रजा अकादमी के सेक्रेट्री जनरल सईद नूरी ने कहा कि ऐसी खबरें सामने आई हैं जिनमें कहा गया है कि चीन की कोविड वैक्सीन में सूअर के शरीर के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने कहा, ‘चूंकि सूअर मुस्लिमों के लिए हराम है, इसलिए उसकी चर्बी से बने टीके के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जा सकती।’

नूरी ने मुंबई के काजी हजरत मुफ्ती महमूद अख्तर के एक फतवे को पढ़ा, जिसमें कहा गया था, ‘अगर किसी सूअर का बाल भी किसी कुएं में गिर जाए तो उस कुएं का पानी मुसलमानों के लिए हराम हो जाता है। इसलिए इस्लामिक लॉ के मुताबिक, एक ऐसी वैक्सीन जिसमें सूअर की चर्बी है, किसी बीमारी के इलाज के रूप में इस्तेमाल नहीं की जा सकती।’ एक वीडियो स्टेटमेंट में सईद नूरी ने भारत सरकार से चीन की कोविड वैक्सीन सिनोवैक का आयात नहीं करने की अपील की। उन्होंने कहा, ‘यदि कोई वैक्सीन भारत में मंगाई जाती है या बनाई जाती है, तो सरकार को वैक्सीन बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले सामान की एक लिस्ट देनी चाहिए, ताकि वे उस वैक्सीन के इस्तेमाल के बारे में लोगों को बता सकें।’

भारतीय उलेमाओं का फतवा संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के फतवा काउंसिल के सबसे नए ‘फतवे’ के ठीक उलट है जिसमें कहा गया है कि मुसलमान कोरोना की वैक्सीन लगवा सकते हैं। यूएई फतवा काउंसिल के चेयरमैन शेख अब्दुल्ला बिन बियाह ने कहा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन को सूअर को लेकर इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है क्योंकि पहली प्राथमिकता ‘मनुष्य का जीवन बचाना है।’ काउंसिल ने कहा कि इस मामले में पोर्क-जिलेटिन को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाना है न कि भोजन के तौर पर, और ये वैक्सीन बेहद ही संक्रामक एक ऐसे वायरस के खिलाफ असरदार पाई गई हैं ‘जो पूरे समाज के लिए बहुत ही बड़ा खतरा है।’

वहीं दूसरी तरफ बुधवार को मुंबई की बैठक में हिस्सा लेने वाले अधिकांश उलेमाओं के विचार ठीक इसके उलट थे। इनमें रजा अकादमी के मुफ्ती मंजर हसन अशरफी, मौलाना ऐजाज अहमद कश्मीरी, मौलाना इमरान अत्तारी, मौलाना गुलजार अहमद कादरी और मौलाना शेख नाजिम शामिल थे। इन मौलानाओं ने कहा कि पोर्क जिलेटिन से तैयार की गई वैक्सीन गैर-इस्लामी हैं और मुसलमान इनका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।

दवाओं में इस्तेमाल होने वाला जिलेटिन एक कोलेजन प्रोटीन है जिसे त्वचा, नस, लिगामेंट्स और/या हड्डियों को पानी में उबालकर प्राप्त किया जाता है। जिलेटिन को आमतौर पर जानवरों से हासिल किया जाता है जिनमें सूअर भी शामिल हैं। जिलेटिन का इस्तेमाल खासतौर पर ट्रासपोर्टेशन और डिलीवरी के दौरान वैक्सीन वायरस को बहुत ज्यादा ठंड या गर्मी जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाने के लिए किया जाता है। जेली प्रॉडक्ट्स, जेली कैंडीज, दही और बबल गम में भी जिलेटिन का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि कई फार्मा कंपनियां ऐसी भी हैं जो वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन के लिए जिलेटिन का इस्तेमाल नहीं करती हैं।

फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका जैसी वैक्सीन बनाने वाली बड़ी कंपनियों ने इस बारे में सफाई जारी की है। इन तीनों कंपनियों ने साफ कहा है कि उन्होंने अपनी वैक्सीन में जिलेटिन का इस्तेमाल नहीं किया है, लेकिन मौलानाओं को फिलहाल यकीन नहीं है। वे कह रहे हैं कि जब तक वैक्सीन को बनाने में इस्तेमाल की गई चीजों के बारे में ठीक से जांच नहीं हो जाती, तब तक वे किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। उनका इशारा दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक मुल्क इंडोनेशिया की तरफ है, जिसने चीन की सिनोवैक वैक्सीन को जल्दबाजी में इंपोर्ट तो कर लिया, लेकिन उसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है क्योंकि उसमें ‘गैर-इस्लामिक’ पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि एक बात मैं साफ कर दूं कि भारत ने चीन की कोरोना वैक्सीन को न तो इंपोर्ट किया है और न ही उसे इंपोर्ट करने का कोई इरादा है।

आधारहीन अफवाह फैला रहे लोगों को मैं बताना चाहता हूं कि दुबई में अधिकारियों ने कोरोना वायरस के खिलाफ बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन शुरू कर दिया है। फाइजर की वैक्सीन अमेरिका से ब्रसेल्स होते हुए यूएई ट्रांसपोर्ट कर दी गई है। यूएई की सरकार ने अपने सभी नागरिकों को कोरोना वायरस की वैक्सीन लगाने का फैसला किया है, और वह भी फ्री में। इस काम को अंजाम देने के लिए पूरी दुबई में जगह-जगह वैक्सीनेशन सेंटर्स खोल दिए गए हैं।

सोशल मीडिया पहले ही कोरोना की वैक्सीन के असर को लेकर सवाल उठाने वाले फर्जी वीडियो से भर गया है। रजा अकादमी के मौलाना नूरी ऐसे ही 2 वीडियो के बारे में बात कर रहे थे। इन दोनों वीडियो को हमने इंडिया टीवी पर क्रॉस चेक करने की कोशिश की। मौलाना ने कहा, इंग्लैंड में एक नर्स फाइजर वैक्सीन लगाए जाने के बाद बेहोश हो गई। हमने क्रॉस-चेक किया और पाया कि नर्स इंग्लैंड की थी ही नहीं। वह अमेरिका के टेनेसी प्रांत की थी। इस नर्स ने 17 दिसंबर को कोविड वैक्सीन ली और जब वह प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के लिए गई, तो उसे चक्कर आया और वह नीचे गिर गई। टिफेनी डोवर नाम की यह नर्स उन 6 लोगों में से एक थी, जिन्हें उस दिन वैक्सीन की डोज दी गई थी।

कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर यह अफवाह फैला दी कि वैक्सीन लगने के बाद नर्स की मौत हो गई। लेकिन हकीकत यह है कि जिस अस्पताल में टिफेनी काम करती हैं, उसने मंगलवार को एक वीडियो जारी किया जिसमें उन्हें बिल्कुल फिट और काम करते हुए दिखाया गया है। टिफेनी ने कहा कि उन्हें कभी-कभार पैनिक अटैक आते हैं। उनकी मेडिकल हिस्ट्री रही है कि वह किसी भी चुभने वाली चीज को देखकर डर जाती है, कई बार बेहोश हो जाती हैं। इसलिए 17 दिसंबर को जो हुआ, वह उनके लिए बड़ी बात नहीं है। उस घटना का वैक्सीनेशन से कोई लेना-देना नहीं है।

सोशल मीडिया पर एक दूसरे वीडियो में यह दावा किया गया कि फाइजर की कोरोना वैक्सीन दिए जाने के बाद अमेरिका में 4 वॉलंटियर्स के चेहरे को लकवा मार गया। हकीकत यह है कि वीडियो बोस्टन में एक सर्जरी सेंटर की वेबसाइट से चुराया गया था। सर्जरी सेंटर ने ट्विटर पर साफ किया कि इस वीडियो का कोरोना वायरस की वैक्सीन से कोई लेना-देना नहीं है। ये फेशियल पैरालिसिस से पीड़ित मरीजों के पुराने वीडियो थे। यूएस फूड ऐंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन ने भी साफ किया कि इस वीडियो का कोरोना वायरस की वैक्सीन के ट्रायल से कोई लेना-देना नहीं है।

मैं सभी से अपील करना चाहता हूं कि सोशल मीडिया पर सर्कुलेट होने वाले उन वीडियो पर कतई भरोसा न करें जिनमें बेतुके आरोप लगाए गए हों। धार्मिक भावनाओं को भड़काकर झूठी दहशत पैदा करने के लिए पहले से ही भारतीय मुसलमानों के बीच अफवाहें फैलाई जा रही है।

भारत के मुसलमानों को पता होना चाहिए कि यूएई फतवा काउंसिल ने वैक्सीन को दवा कहा है न कि भोजन, और लाखों लोगों की जिंदगी दांव पर है। दुबई के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम, दुबई के उपप्रधानमंत्री शेख सैफ बिन जायद अल नाहयान, मिस्र की स्वास्थ्य मंत्री हाला जाएद, इन सभी ने कोरोना वायरस की वैक्सीन लगवाई है। बहरीन की स्वास्थ्य मंत्री फायका बिन सईद अल सालेह ने भी वैक्सीन लगवाई है।

ये सभी इस्लामी दुनिया की जानी-मानी शख्सियत हैं और वे कभी भी कोई गैर-इस्लामिक काम नहीं करेंगे। वैक्सीन बनाने वाली तीनों प्रमुख फार्मा कंपनियों ने पोर्क जिलेटिन के इस्तेमाल से इनकार किया है। मुसलमानों को उनकी बातों पर भरोसा करना चाहिए और आधारहीन अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

सोशल मीडिया पर चक्कर काटने वाले फर्जी वीडियो के बारे में मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि ये वायरल वीडियो असली वायरस से भी ज्यादा खतरनाक हैं। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप और अन्य प्लेटफॉर्म पर दिखने वाले वीडियो पर आंख मूंदकर भरोसा न करें। तथ्यों की जांच करें और वैज्ञानिकों, डॉक्टरों एवं मेडिकल एक्सपर्ट्स की सलाह को ही मानें। एक बार वैक्सीन बड़े पैमाने पर लगनी शुरू हो गई तो यकीन मानिए, कोरोना वायरस के खिलाफ इस जंग में किसी भी कीमत पर हमारी ही जीत होगी।

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