Rajat Sharma

केजरीवाल बताएं, दिल्ली का दम क्यों घुट रहा है?

AKb (1)बुधवार (2 नवंबर) की सुबह दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 360 (बहुत खराब) से 481 (अति गंभीर) के बीच था और लगभग पूरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र धुंध की चादर से ढंका हुआ था। पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं (13,873) में 33.5 प्रतिशत की खतरनाक बढ़ोत्तरी की खबरों के बीच NCR सुबह के वक्त एक ‘गैस चैंबर’ जैसा नज़र आ रहा था।

हवा की गुणवत्ता में गिरावट आने के साथ ही दिल्ली सरकार ने अगले आदेश तक राजधानी में सभी निर्माण और ध्वस्तीकरण कार्यों को बंद करने का निर्देश दिया है। इससे पहले GRAP (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) स्टेज 3 (गंभीर वायु गुणवत्ता) को अमल में लाया जा चुका है। गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद और NCR के अन्य शहर में लोग ज़हरीली हवा में सांस ले रहे हैं। दिल्ली NCR में बड़ी संख्या में लोग सर्दी, खांसी और सांस की तकलीफ से पीड़ित हैं, इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। डॉक्टरों ने लोगों को आगाह किया है कि वे सुबह की धुंध में मॉर्निंग वॉक न करें । धुंध के कारण सुबह लोग हेडलाइड ऑन करके गाड़ी चला रहे हैं।

लेकिन 20 दिन पहले ऐसा नहीं था। 10 अक्टूबर को दिल्ली में हवा बिल्कुल साफ थी और AQI 44 पर था। सिर्फ इन 3 हफ्तों में ऐसा क्या हो गया कि दिल्ली के लोगों का दम घुटने लगा? दिल्ली में अधिकारी और मंत्री तो ये दावा कर रहे थे कि राजधानी को प्रदूषण से बचाने के लिए युद्ध स्तर पर काम हो रहा है। दावा ये किया जा रहा था कि दिल्ली सरकार ने एक ऐसा रसायन तैयार किया है जो पराली को जमीन में ही गला देगा और उसे जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

केंद्र ने अपनी फसल पराली प्रबंधन योजना (Crop Residue Management Scheme) के जरिए चालू वर्ष सहित पिछले 5 सालों में पंजाब सरकार को 1347 करोड़ रुपये दिए थे। इस योजना के तहत पंजाब में धान की पराली के निपटान के लिए कृषि मशीनरी उपलब्ध कराई जानी थी। पंजाब में 1.2 लाख से ज्यादा मशीनें उपलब्ध कराई गईं, फिर भी पराली जलाने के मामलों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली। पंजाब में पराली के निपटान के लिए कृषि मशीनरी पहुंचाने हेतु 13,900 से ज्यादा कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए गए, लेकिन इन मशीनों की क्वॉलिटी काफी खराब थी और ढेर सारी मशीनें यूं ही पड़ी रह गईं।

पश्चिमी यूपी और दिल्ली में धान की पराली से निजात पाने के लिए बायो-डीकंपोजर का इस्तेमाल काफी सफल रहा, लेकिन केंद्र सरकार के मुताबिक, धान की पराली के निपटान के लिए इस असरदार तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए पंजाब सरकार ने कोशिश ही नहीं की। अन्य कामों में पराली के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए और पंजाब से चारे की कमी वाले इलाकों में इसकी सप्लाई के लिए भी कोई कोशिश नहीं की गई।

केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार को फरवरी 2022 में ही परानी के बारे में आगाह कर दिया था। धान की बुआई के सीजन से पहले भी पंजाब सरकार से कहा गया था कि पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम के लिए पूरी ताकत लगाई जाए, लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई। केंद्रीय कृषि और पर्यावरण मंत्रियों ने पंजाब सरकार के मंत्रियों के साथ बैठकें की , लेकिन कार्रवाई में कोई तेजी नहीं आई।

केंद्र ने पंजाब सरकार द्वारा पराली जलाने के खिलाफ बने नियमों को लागू करने में गंभीर खामियां पाई हैं और इस नाकामी के लिए राज्य सरकार को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया है। पंजाब सरकार की निष्क्रियता के कारण ऐसे हालात पैदा हो गए हैं कि NCR में रहने वाले लोगों को ज़हरीली हवा में सांस लेना पड़ रहा है, और इससे उनकी स्वास्थ्य को खतरा पहुंच रहा है।

सवाल यह है कि पैसे भी दिये गये, मशीनें भी खरीदी गईं, तो ये मशीनें कहां चली गईं? ये मशीनें किसानों तक क्यों नहीं पहुंचीं? पंजाब में रोजाना बड़े पैमाने पर पराली जलाने का सिलसिला जारी है।

मैंने इंडिया टीवी के संवाददाताओं से पंजाब के अलग-अलग जिलों में जाकर ग्राउंड रिपोर्ट भेजने को कहा। अफसोस के समय मुझे कहना पड़ रहा है कि पंजाब सरकार की निष्क्रियता के कारण अने वाले हफ्तों में भी दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता में किसी तरह के सुधार की कोई संभावना नहीं दिख रही है। NCR के लोगों को आने वाले हफ्तों में जहरीली हवा में सांस लेना होगा।

आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं । पिछले साल की तुलना में इस साल अक्टूबर में पंजाब में लगभग 33.5 फीसदी ज्यादा पराली जलाई गई है। 15 सितंबर से लेकर 28 अक्टूबर के बीच के आंकड़े मेरे पास है। इस दौरान पंजाब में पराली जलाने की 10,214 घटनाएं दर्ज की गईं। वहीं पिछले साल इसी दौरान पंजाब में पराली जलाने के 7,648 मामले रिकॉर्ड किए गए थे।

पंजाब के 7 जिलों, मोहाली, मोगा, गुरदासपुर, बठिंडा, फिरोजपुर, जालंधर और तरनतारन में पराली जलाने की घटनाएं सबसे ज्यादा हो रही हैं। पराली जलाने के 71 फीसदी मामले इन्हीं जिलों से सामने आए हैं। ये ऐसे ‘हॉट स्पॉट’ हैं जहां हर साल धान की पराली जलाई जाती है। पिछले 7 दिनों में खेतों में लगाई गई आग (7,100) में लगभग 69 प्रतिशत की बड़ी बढ़ोत्तरी देखी गई। इससे पूरे NCR में धुंध छा गई। यह हाल तब है जब पंजाब में अभी सिर्फ 45 से 50 फीसदी फसल की कटाई हुई है।

वहीं, पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में करीब 24.5 फीसदी की कमी आई है। 15 सितंबर से 28 अक्टूबर तक हरियाणा में पराली जलाने की 1,702 घटनाएं दर्ज हुईं, जबकि पिछले साल इनकी तादाद 2,252 थी। पश्चिमी यूपी में पराली जलाने के मामलों की संख्या पिछले साल के 43 से घटकर इस साल 30 पर पहुंच गई है। केंद्र ने पंजाब, हरियाणा और यूपी में आग जलाने की घटनाओं के नक्शे तैयार किए हैं। नक्शों में साफ नजर आता है कि पंजाब के खेतों में बड़े पैमाने पर आग लगाई गई है, जिससे NCR धुंध की चादर में लिपट गया है।

पंजाब सरकार ने केंद्र द्वारा भेजी गई 1,20,000 पराली प्रबंधन मशीनरी का इस्तेमाल क्यों नहीं किया? केंद्र ने जब इस बारे में पंजाब सरकार से पूछा तो उसने आनन-फानन में इन मशीनों को किसानों को भेजना शुरू कर दिया।

जब पंजाब के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण मंत्री गुरमीत सिंह मीत हायर से पराली जलाने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया: ‘यह एक पुरानी समस्या है। इसे हल करने में समय लगेगा। AAP सरकार पूरी कोशिश कर रही है। पराली को डिकंपोज होने में समय लगेगा। पराली जलाने के मामलों में कमी आई है।’

एक तरफ तो पंजाब में AAP के मंत्री ये बात कह रहे हैं, लेकिन अरविन्द केजरीवाल तो डिकंपोजर को पराली का सबसे बड़ा दुश्मन और किसानों का सबसे बड़ा दोस्त बता रहे थे। वह इसे पराली की समस्या का रामबाण इलाज बता रहे थे।

हमारे संवाददाता जब दिल्ली के किसानों के पास पहुंचे तो एक अलग तरह का समस्या सामने आई। पता लगा कि दिल्ली के किसानों ने डिकंपोजर का इंतजार किया, सरकारी अफसरों के चक्कर लगाये लेकिन उन्हें यह वक्त पर नहीं मिला । एक किसान ने कहा, ‘पिछले साल अधिकारी आए थे, एक एकड़ में केमिकल डाला और कागजों पर दिखा दिया कि 10 एकड़ पर डाल दिया है।’ एक दूसरे किसान ने कहा कि एक खेत की फसल कटने के बाद जब वह दोबारा अधिकारियों के पास गए तो अफसरों ने कह दिया कि दवा डालने का टाइम अब खत्म हो गया।

दिल्ली में बीजेपी के विधायक ओ. पी. शर्मा ने आरोप लगाया कि केजरीवाल सरकार ने डिकंपोजर के प्रचार और विज्ञापनों पर 7.5 करोड़ रुपये खर्च कर दिए, जबकि इसे खरीदने में सिर्फ 3.5 लाख रुपये खर्च किये।

राहत की बात सिर्फ इतनी सी है कि पराली जलाने की घटनाएं हरियाणा में कम हुई हैं । पिछले साल के मुकाबले हरियाणा में इस साल पराली जलाने की घटनाओं में करीब 25 फीसदी की कमी आई है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बताया कि उन्होंने पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद नीति अपनायी । उनके अधिकारियों ने पराली का निपटारा करने में किसानों को मदद भी की और खेत में पराली जलाने वालों पर जुर्माना भी लगाया।

सारी बातें सुनने के बाद यह तो साफ है कि पंजाब में पराली को जलने से रोकने के लिए पंजाब की AAP सरकार ने कोई ठोस प्रयास नहीं किए । न मशीनें किसानों तक पहुंचाने की कोशिश की गई और न ही पराली गलाने का रसायन काम आया । यह भी साफ है कि पंजाब में पराली जलाये जाने से आने वाले दिनों में NCR की हवा और भी ज़हरीली होगी और दिल्ली के लोगों को खतरनाक हवा में सांस लेना होगा।

अगर पंजाब में कांग्रेस या बीजेपी की सरकार होती तो केजरीवाल फौरन कह देते कि ये दोनों पार्टियां दिल्ली के लोगों से नफरत करती हैं। वह कहते कि ये पार्टियां दिल्ली के लोगों को जान से मार डालना चाहती हैं क्योंकि वे आम आदमी पार्टी को वोट देते हैं। लेकिन अब केजरीवाल की मुसीबत यह है कि दिल्ली और पंजाब दोनों जगह उनकी सरकार है। पराली जलाने के लिए दोष दें तो किसको दें।

मंगलवार को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एक नया शग़ूफा छोड़ा । सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली में सारा प्रदूषण कूड़े की वजह से होता है, और कूड़ा साफ करने की जिम्मेदारी दिल्ली नगर निगम की है, जिस पर बीजेपी का कब्ज़ा है। दूसरे शब्दों में कहें, तो उनके मुताबिक दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए बीजेपी जिम्मेदार है।

सच तो यह है कि केजरीवाल ने दिल्ली में अपने पिछले 8 साल के शासनकाल में प्रदूषण को रोकने की सिर्फ बातें ही की हैं, दूसरों पर दोषारोपण किया है, परन्तु कोई ठोस काम नहीं किया । कभी उन्होनें गाड़ियों के लिए ऑड-ईवन रूल की बात की, कभी स्मॉग टावर लगाए, दिवाली पर पटाखों पर बैन लगाया, फैक्टरियों और ईंट के भट्टों को जलने से रोका, पर सब कुछ दिखावा साबित हुआ ।

दिल्ली में रहने वाले भी इंसान हैं। वे भी टैक्स देते हैं। उनको भी जीने का हक़ है। उन्होंने क्या कसूर किया कि वे ज़हरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं? उन्होंने क्या गुनाह किया कि दिल्ली में रहने वालों की उम्र 10 साल कम हो गई है? इसका जवाब केजरीवाल को देना होगा ।

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