Rajat Sharma

किसानों को ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ का नारा लगाने वालों से दूर रहना चाहिए

गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर धरना दे रहे किसानों की मौजूदगी में ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ जैसे आपत्तिजनक नारे लगाए गए। इन नारों पर किसानों या उनके नेताओं में से किसी ने भी आपत्ति नहीं की। नारे लगाने के ये वीडियो इंडिया टीवी के कैमरे पर शूट हुए हैं, और हमारी संवाददाता दीक्षा पांडे ने इन्हें खुद सुना है। ये देखकर एएमयू, जेएनयू, शाहीन बाग और दिल्ली दंगों के वक्त जफराबाद में राष्ट्र-विरोधी तत्वों द्वारा लगाए गए भड़काऊ नारों की यादें ताजा हो गईं। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के इन शरारती तत्वों ने प्रधानमंत्री के खिलाफ भड़काऊ नारे लगाए, और किसानों में से किसी ने भी इस पर आपत्ति नहीं जताई।

akb2711 केंद्र और किसान नेताओं के बीच गुरुवार को बातचीत के एक और मैराथन दौर के बाद सरकार की कोशिशें कुछ रंग लाती दिख रही हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संकेत दिया कि सरकार नए कृषि कानूनों के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए तैयार है। सरकार ने कृषि उत्पाद बाजार समितियों (APMC), जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में ‘मंडी’ कहा जाता है, को मजबूत करने और उनका आधुनिकीकरण करने का प्रस्ताव रखा। इसके अलावा किसान नेताओं के सुझाव पर सरकार उन सभी प्राइवेट ट्रेडर्स के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन पर भी सहमत हुई, जो कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर किसानों से उनकी फसल खरीदेंगे। सरकार किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग विवाद की स्थिति में विवाद निपटान के लिए ऊंची अदालतों में जाने की स्वतंत्रता दिए जाने के लिए कानूनी प्रावधान में संशोधन के लिए भी तैयार हो गई।

केंद्र सरकार APMC मंडियों और प्राइवेट मार्केट के लिए समान टैक्स के लिए भी सहमत हुई। इसके साथ ही केंद्र ने कॉर्पोरेट्स को किसानों से जुड़ी जमीन लेने से रोकने के लिए कड़े प्रावधान बनाने की भी पेशकश की। सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली को जारी रखने के अपने वादे को लिखित रूप में देने की भी बात कही। हालांकि गुरुवार की बैठक के बाद किसान नेताओं का मूड बहुत सकारात्मक नहीं दिखाई दिया, लेकिन फिर भी दोनों पक्ष शनिवार को फिर से मिलने के लिए सहमत हुए हैं। केंद्र ने किसान संगठनों के नेताओं से साफ-साफ कहा कि तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करना संभव नहीं है, जबकि किसान लगातार इन कानूनों को खत्म करने की मांग कर रहे हैं।

गुरुवार की बैठक में किसान नेताओं ने सरकार को 12 पन्नों में अपनी आपत्तियां दीं, और लगभग सभी बिंदुओं पर चर्चा की गई। बैठक शुरू होने से पहले केंद्रीय मंत्रियों ने 40 किसान नेताओं का हाथ जोड़कर स्वागत किया, लेकिन किसानों की तरफ से जवाब उतनी गर्मजोशी से नहीं मिला। इसके बाद सरकार ने किसान नेताओं से लंच करने की रिक्वेस्ट की, लेकिन उन्होंने सरकार की इस रिक्वेस्ट को भी ठुकरा दिया। किसान नेता अपने साथ लंगर का खाना लेकर आए थे। उन्होंने जमीन पर बैठकर खाना खाया और सरकार की चाय भी नहीं पी। सरकार आंतरिक चर्चा में विचार करेगी, यद देखेगी कि कानून में कहां बदलाव हो सकता है, और फिर शनिवार को किसान नेताओं के साथ होने वाली बैठक में अपना प्रस्ताव रखेगी।

सरकार और किसानों के बीच गुरुवार को बातचीत शुरू होने से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और उनसे जल्द से जल्द गतिरोध को हल करने की अपील की। अमरिंदर सिंह ने कहा कि किसानों के आंदोलन से पंजाब की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है और साथ ही देश की राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा हो सकता है। कैप्टन ने जो चिंता जाहिर की, उसका सबूत आज ही मिल गया। उनका इशारा खालिस्तान का राग गाने वालों की तरफ था जो भारत के साथ-साथ कनाडा और न्यूयॉर्क जैसी जगहों पर भी हरकत में आ गए हैं। उन्होंने फिर से अपनी भारत विरोधी चालें चलनी शुरू कर दी है।

गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर धरना दे रहे किसानों की मौजूदगी में ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ जैसे आपत्तिजनक नारे लगाए गए। इन नारों पर किसानों या उनके नेताओं में से किसी ने भी आपत्ति नहीं की। नारे लगाने के ये वीडियो इंडिया टीवी के कैमरे पर शूट हुए हैं, और हमारी संवाददाता दीक्षा पांडे ने इन्हें खुद सुना है। ये देखकर एएमयू, जेएनयू, शाहीन बाग और दिल्ली दंगों के वक्त जफराबाद में राष्ट्र-विरोधी तत्वों द्वारा लगाए गए भड़काऊ नारों की यादें ताजा हो गईं। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के इन शरारती तत्वों ने प्रधानमंत्री के खिलाफ भड़काऊ नारे लगाए, और किसानों में से किसी ने भी इस पर आपत्ति नहीं जताई।

किसानों को अपनी नाराजगी दिखाने का लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन उन्हें किसी भी कीमत पर राष्ट्रविरोधी तत्वों को अपने मंच का इस्तेमाल करने और अशांति फैलाने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। यदि किसान नेता इस तरह की हरकतों पर चुप्पी साध लेते हैं, तो खालिस्तान का नारा लगाने वाले और बीते कई दशकों से खामोश रहे राष्ट्र-विरोधी तत्वों की हिम्मत बढ़ जाएगी। किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने देना चाहिए। हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान इस आंदोलन से फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है और भारत की जनता इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेगी। हम अपने देश को सीमा पार से रची जा रही साजिशों का शिकार नहीं होने दे सकते।

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