Rajat Sharma

कांग्रेस से भगदड़ के लिए कौन ज़िम्मेवार ?

AKB30 कांग्रेस में नेताओं की जो भगदड़ मच रही है, वो वाकई में हैरान करने वाली है. कांग्रेस के पूर्व सासंद संजय निरूपम, कांग्रेस के प्रवक्ता गौरव वल्लभ, और बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा – इन सबने कांग्रेस छोड़ दी. बुधवार शाम को ओलंपिक मेडल विजेता बॉक्सर विजेन्दर सिंह कांग्रेस छोडकर बीजेपी में शामिल हो गए थे. राजस्थान में कांग्रेस के कई पूर्व मंत्रियों समेत 113 नेताओं ने पार्टी छोड़ दी, बीजेपी के साथ चले गए. मध्य प्रदेश में तो पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस के 25 हजार से ज्यादा नेता और कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इतनी बड़ी संख्या में कार्यकर्ता पार्टी छोड़ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस हाईकमान में किसी को इसकी फिक्र नहीं हैं. कांग्रेस के नेताओं का एक ही जवाब है, चुनाव के वक्त ऐसा होता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन क्या सिर्फ चुनाव में टिकट न मिलना पार्टी छोड़ने की वजह है या फिर कारण कुछ और है? महाराष्ट्र में संजय निरूपम ने पिछले हफ्ते ही ये साफ कर दिया था कि अगर मुंबई नॉर्थ वेस्ट लोकसभा सीट उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के लिए नहीं छोड़ी, अगर कांग्रेस ने इस सीट पर अपनी दावेदारी छोड़ी, तो वो अपना रास्ता अलग करेंगे. उन्होंने कांग्रेस हाईकमान को एक हफ्ते का वक्त दिया था. न उद्धव ने सीट छोड़ी, न कांग्रेस अड़ी और गुरुवार को एक हफ्ता पूरा हो गया. इसलिए संजय निरूपम ने कांग्रेस छोड़ने का एलान कर दिया. हालांकि संजय निरूपम ने अपने इरादे बुधवार को ही जाहिर कर दिए थे, इसलिए कांग्रेस ने आनन फानन में उन्हें पार्टी से निकालने का फरमान भी जारी कर दिया. संजय निरूपम ने कहा कि अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि कांग्रेस हाईकमान के पास अब पार्टी के बारे में फैसले लेने की हिम्मत ही नहीं हैं, कांग्रेस को दूसरी छोटी छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के रहम-ओ-करम पर छोड़ दिया गया है, कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं हैं. संजय निरूपम ने कहा कि वो चुनाव भी लड़ेंगे लेकिन किस पार्टी के निशान पर लड़ेंगे, ये वक्त आने पर बताएंगे. निरूपम ने कहा कि महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी का भी कोई भविष्य नहीं है क्योंकि ये तीनों पार्टियां टूट फूट चुकी है और आघाड़ी खत्म होने के कगार पर है. निरूपम ने कहा कि कांग्रेस वो कंपनी है, जिसमें पांच पावर सेंटर हैं, सबकी अपनी मंडली है, कार्यकर्ता किसकी सुनें, कहां जाकर अपनी बात कहें, किसी को कुछ समझ नहीं आता. संजय निरूपम ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व जमीन से कट चुका है, उसे ज़मीनी हकीक़त का अंदाजा ही नहीं हैं. संजय निरूपम ने कहा कि कांग्रेस हाईकमान धर्मनिरपेक्षता की बात करते करते हिन्दुत्व के विरोध पर उतर आई है. राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे वामपंथी विचारधारा वाले नेताओं से घिर गए हैं, इसीलिए रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह का बॉयकॉट किया गया, ऐसे हालात में कांग्रेस का खत्म होना तय है. जवाब में पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि संजय निरूपम को पार्टी से निकाला गया है और जब किसी को निकाला जाता है तो वो ऐसे ही आरोप लगाता है. चव्हाण ने कहा कि कांग्रेस राम विरोधी नहीं है, और कांग्रेस ने राममंदिर का विरोध नहीं किया. गुरुवार को गौरव बल्लभ और अनिल शर्मा ने भी बीजेपी के मुख्यालय में जाकर बीजेपी की सदस्यता ले ली और इन दोनों नेताओं ने भी वही बातें कहीं, जो संजय निरूपम ने कहा. गौरव वल्लभ ने कहा कि कांग्रेस में उनका दम घुट रहा था, इसलिए बीजेपी में आ गए और अब वो मोदी के विकसित भारत के सपने को पूरा करने में उनका साथ देंगे. अनिल शर्मा ने सोनिया और खरगे पर बड़ा आरोप लगाया. अनिल शर्मा कांग्रेस में चालीस साल से थे. उन्होने कहा कि धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाला कांग्रेस का नेतृत्व साम्प्रदायिक और हिन्दू विरोधी है. अनिल शर्मा ने कहा सोनिया राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का न्योता ठुकरा देती हैं लेकिन इटली में मदर टेरेसा के सेंटहुड प्रोग्राम के लिए कांग्रेस के प्रतिनिधि को रोम भेजती हैं. आज मैं ये देखकर हैरान हूं कि संजय निरुपम और गौरव वल्लभ, जो पिछले 10 साल से हर रोज़ टीवी चैनलों की डिबेट में कांग्रेस का बचाव करते थे, गुरुवार को अपनी पार्टी की धुलाई कर रहे थे. कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व और पार्टी में घुटन की बात कर रहे थे. इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को इस बात की कोई परवाह नहीं है कि नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं. राहुल गांधी को इस बात की भी परवाह नहीं है कि निराश होकर पार्टी के हजारों कार्यकर्ता कांग्रेस छोड़कर जा रहे हैं. इतनी बड़ी पार्टी में कोई ऐसा नहीं है जिसने जाने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को रोकने की जरा भी कोशिश की हो. पिछले एक महीने से कम वक्त में 100 से ज्यादा बड़े नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं – अशोक चव्हाण, नवीन जिंदल, मिलिंद देवड़ा, बाबा सिद्दीकी, अर्जुन मोढ़वाडिय़ा, लालचंद कटारिया, राजेन्द्र यादव, प्रमोद कृष्णम, रोहन गुप्ता, ऐसे तमाम नाम हैं जिनकी चर्चा हुई लेकिन कांग्रेस के ऐसे सैकड़ों नेता हैं, जो चुपचाप पार्टी छोड़ गए. राजस्थान में 10 मार्च को पूर्व मंत्रियों, सांसदों, विधायकों समेत 23 नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी. और बुधवार को ही राजस्थान में 113 कांग्रेसजनों ने बीजेपी ज्वाइन कर ली. मध्य प्रदेश में तो हालात ये है कि बीजेपी में शामिल होने वाले कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को सदस्यता देने के लिए कैंप लगाने पड़े रहे हैं, पंडालों का इंतजाम करना पड़ रहा है. 1 जनवरी से अब तक 25 हजार से ज्यादा कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता बीजेपी की सदस्यता ले चुके हैं. ये सब टिकट के चक्कर में तो पार्टी नहीं छोड़ सकते, न बीजेपी सबको टिकट दे सकती है. असल में जो भी राजनीति में सक्रिय होता है, वो आगे बढ़ना चाहता है, नेतृत्व को परखता है, हवा का रुख देखता है और इन दोनों पैमानों पर कांग्रेस फिलहाल कमजोर दिखाई दे रही हैं. संजय निरूपम हों, गौरव वल्लभ हों, प्रमोद कृष्णम हों या अर्जुन मोढवाडिया, इन लोगों ने जो बातें कहीं, उसका मतलब यही है कि इन्हें काँग्रेस में कोई भविष्य नज़र नहीं आता. ये मानते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व में दमखम नहीं हैं, राहुल गांधी के पास कोई विज़न नहीं हैं, राहुल का एजेंडा सिर्फ मोदी विरोध है और मोदी में कांग्रेस के नेता अपना भविष्य देख रहे हैं. इसी चक्कर में कांग्रेस में भगदड़ जैसी स्थिति है.

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