Rajat Sharma

आंदोलन कर रहे किसान ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग से सावधान रहें

किसान नेताओं के साथ बातचीत शुरू करके मोदी सरकार ने एक सकारात्मक संकेत दिया है। पहले यह बातचीत 3 दिसंबर को होने वाली थी, लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर जारी वर्तमान गतिरोध को देखते हुए बातचीत को बगैर किसी शर्त के तय समय से पहले ही हो गई। ऐसा करके सरकार ने संदेश दिया है कि न तो वह अपनी बात को लेकर अड़ी है, और न ही उसका इरादा संदिग्ध है। किसानों ने बगैर किसी पूर्व शर्त के बातचीत में शामिल होकर एक सकारात्मक संदेश दिया है।

akb2711 सरकार और 35 किसान संगठनों के नेताओं के बीच मंगलवार को हुई बातचीत का भले ही कोई नतीजा नहीं निकलता, लेकिन कम से कम दोनों पक्षों में एक-दूसरे को समझने की शुरुआत हो गई है। पहली बार बातचीत का रास्ता खुला और जो डेडलॉक था, वह खत्म हुआ। यह एक अच्छी शुरुआत है क्योंकि दोनों पक्षों ने लगभग चार घंटे तक कृषि कानूनों पर चर्चा की। बातचीत के दौरान सरकार द्वारा नए कानूनों को लेकर एक प्रेजेंटेशन भी दिया गया ताकि गलतफहमियों को दूर किया जा सके।

सरकार ने किसान नेताओं से नए कानूनों को लेकर उनकी आपत्तियों को बिंदुवार तरीके से सामने लाने को कहा है ताकि गुरुवार को होने वाली दूसरे दौर की बैठक में सरकार द्वारा एक-एक क्लॉज पर विचार किया जा सके। सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों पीयूष गोयल और नरेंद्र सिंह तोमर ने बुधवार को गृह मंत्री अमित शाह को पहले दौर की बातचीत में सामने आई चीजों के बारे में जानकारी दी। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे राकेश टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन के नेताओं के साथ मंगलवार की शाम को एक और बैठक हुई।

अब हम सबके सामने सवाल यह है कि आगे का रास्ता क्या है? इस मुद्दे का हल क्या हो सकता है? पहले दौर की बातचीत में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने नए कानूनों का अध्ययन करने के लिए एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन किसान नेताओं ने इसे खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार को नए कानून बनाने से पहले ऐसा करना चाहिए था। किसान नेताओं ने सरकार से दो टूक कहा कि वे अपने आंदोलन तब तक जारी रखेंगे जब तक कि नए कानून वापस नहीं ले लिए जाते।

एक तरफ 35 संगठनों के किसान सरकार के साथ बातचीत की टेबल पर बैठे थे, तो दूसरी तरफ हजारों किसान सिंघू बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, बुराड़ी मैदान, चिल्ला बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर धरने पर बैठे थे। किसानों के इन धरनों के चलते भारी ट्रैफिक जाम के साथ-साथ गाड़ियों की आवाजाही बंद हो गई। दिल्ली की सीमाओं पर किसानों द्वारा की गई घेराबंदी को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को बगैर किसी दिक्कत के गाड़ियों की आवाजाही के लिए रूट्स की एक लिस्ट जारी की। हरियाणा सरकार में बीजेपी की सहयोगी जननायक जनता पार्टी ने मांग की कि नए कृषि कानूनों में MSP स्कीम को जारी रखने का प्रावधान शामिल किया जाना चाहिए।

किसान नेताओं के साथ बातचीत शुरू करके मोदी सरकार ने एक सकारात्मक संकेत दिया है। पहले यह बातचीत 3 दिसंबर को होने वाली थी, लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर जारी वर्तमान गतिरोध को देखते हुए बातचीत को बगैर किसी शर्त के तय समय से पहले ही हो गई। ऐसा करके सरकार ने संदेश दिया है कि न तो वह अपनी बात को लेकर अड़ी है, और न ही उसका इरादा संदिग्ध है। किसानों ने बगैर किसी पूर्व शर्त के बातचीत में शामिल होकर एक सकारात्मक संदेश दिया है।

किसानों को एहसास है कि लोकतंत्र में, सभी बड़ी समस्याओं को बातचीत के माध्यम से ही शांति से हल किया जा सकता है। आंदोलन का सहारा लेकर उन्होंने साफ तौर पर संकेत दिया है कि वे नए कानूनों से खुश नहीं हैं। बैठक के बाद नरेंद्र तोमर की बात सुनकर साफ था कि सरकार खुले मन से किसानों से बात कर रही है, और वह किसानों के साथ किसी भी तरह की सियासत नहीं कर रही है। अगर दोनों पक्षों को एक दूसरे पर यकीन है तो फिर रास्ता जरूर निकल सकता है। लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं जिनका किसान आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन वे किसानों के हमदर्द बनकर उनके बीच पहुंच रहे हैं और उन्हें सरकार के खिलाफ भड़का रहे हैं।

छोटे-छोटे राजनीतिक संगठनों के नेता जैसे कि भीम आर्मी के चंद्रशेखर और बिहार के पप्पू यादव मंगलवार को किसानों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करने के लिए उनके बीच गए। एक बार को मान भी लें कि ये नेता किसानों को लेकर चिंतित हैं, लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रहा कि शाहीन बाग की दादी और कनाडा के प्राइम मिनिस्टर जस्टिन ट्रूडो क्यों बीच में कूद रहे हैं। उन्हें तो भारतीय किसानों की समस्याओं और शिकायतों से कोई लेना-देना नहीं है।

दरअसल, जस्टिन ट्रूडो इस मुद्दे पर इसलिए बोले हैं क्योंकि उनके देश में भारतीय मूल के सिख वोटर्स बड़ी मात्रा में रहते हैं। ये सिख पंजाब से ताल्लुक रखते हैं और कनाडा में चुनावों के दौरान इनका समर्थन ट्रूडो और उनकी पार्टी के लिए बहुत मायने रखता है। ट्रूडो ने कहा है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन (किसानों के द्वारा) के अधिकार की रक्षा के लिए कनाडा हमेशा खड़ा रहेगा और यह उनके लिए चिंता की बात है। ट्रूडो के बयान के जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि ‘हमने कनाडाई नेताओं द्वारा भारत में किसानों से संबंधित कुछ ऐसी टिप्पणियों को देखा है जो भ्रामक सूचनाओं पर आधारित है। इस तरह की टिप्पणियां अनुचित हैं, खासकर जब वे एक लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों से संबंधित हों।’

ब्रिटिश नेताओं जॉन मैकडोनेल और टैन डेसी ने भी भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन से निपटने के तरीकों की आलोचना की है। ये ब्रिटिश नेता मोदी विरोधियों के रूप में जाने जाते हैं और भारत को इन लोगों को ये साफ-साफ समझाने की जरूरत है कि यह हमारे देश का आंतरिक मामला है। किसान हमारे हैं, हम उनके साथ खड़े हैं, और बाहर के लोग ऐसी बयानबाजी करने से बाज आएं, हमारे देश के आंतरिक मामलों में दखल ना दें। इस मसले को किसान और सरकार आपस में मिलकर हल कर लेंगे।

किसानों को यह बात समझनी होगी कि बाहरी ताकतें उनके आंदोलन का फायदा उठाने की कोशिशों में जुटी हैं। कुछ प्रदर्शनकारियों ने धरनास्थल पर खालिस्तान समर्थक पोस्टर भी लगाए, जो साफतौर पर एक देश-विरोधी काम है। यहां इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि अधिकांश किसानों ने इन लोगों को अपने आंदोलन से दूर रहने के लिए कहा और उन्हें किनारे लगा दिया। किसानों को पता होना चाहिए कि आंदोलन बहुत बड़ा है, और इसकी कोई एक लीडरशिप भी नहीं है, इसलिए टुकड़े-टुकड़े गैंग और खालिस्तान समर्थक तत्व उनके विरोध का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसे में किसानों को बेहद सावधान रहने की जरूरत है।

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