सीबीआई की एक दस सदस्यीय टीम ने मंगलवार को ओडिशा के बाहानगा में उस स्थल का मुआयना किया जहां तीन ट्रेन आपस में एक दूसरे से टकरा गये थे. सीबीआई ने एक केस दर्ज़ किया है. अभी मृतकों की संख्या 288 तक पहुंच गयी है, तीन घायलों की मंगलवार को मौत हो गई. विरोधी दल अब रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, लेकिन अश्विनी वैष्णव तीन दिन से लगातार दुर्घटना स्थल पर जमे हैं, और चौबीसों घंटे काम में लगे हैं. दुर्घटना स्थल पर ट्रेनों का आवागमन फिर से शुरु हो गया है. पटरिय़ों को ठीक कर लिया गया है. हादसे के 51 घंटे बाद रेलगाडियां फिर से चलने लगी हैं. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर इतना बड़ा हादसा हुआ कैसे. किसकी गलती से हादसा हुआ. जानकारों का कहना है कि ये टेक्निकल फॉल्ट नहीं हो सकता, इस हादसे के पीछे साजिश से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि हमारे रेलवे में सिग्नल सिस्टम पूरी तरह बदल चुका है. पूरी दुनिया में ट्रेनें इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल और इंटरलॉकिंग सिस्टम से चलती हैं. यही सिस्टम हमारे देश में भी है. पहले सिंग्नल सिस्टम मैन्युल था, अब सब कुछ टैक्निकल है. एक बार सिग्नल लॉक हो जाए तो अपने आप ट्रैक चेंज हो ही नहीं सकता. .इसलिए अब इस सवाल का जवाब मिलना जरूरी है कि आखिर दो ट्रेन एक साथ लूप लाइन पर कैसे पहुंच गईं. स्टेशन मास्टर का कहना है कि सिग्नल ठीक से काम कर रहे थे, रूट क्लीयर था. उन्हें खुद समझ नहीं आया कि कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन पर कैसे चली गई. वहीं, हादसे की शिकार हुई ट्रेन के ड्राइवर ने बताया था कि उसे तो लूप लाइन में जाने का ग्रीन सिग्नल मिला था, इसीलिए ये सवाल उठ रहा है कि कहीं किसी ने साजिश के तहत सिंग्नल सिस्टम में गड़बड़ी तो नहीं की. अब इसी बात की जांच हो रही है. विरोधी दल भी सवाल उठा रहे हैं. उनका विरोध जायज़ है, इतना बड़ा रेल हादसा हुआ है, इसलिए इसकी जिम्मेदारी तो तय होनी चाहिए लेकिन रेल मंत्री का इस्तीफा मांगने से तो हादसे बंद नहीं होंगे. अश्विनी वैष्णव अगर राजनीतिक नेता होते .तो शायद वो भी पुराने रेल मंत्रियों की तरह इस्तीफा दे देते, लेकिन वह IAS अफसर रहे हैं, वह समस्याओं से भागने वालों में नहीं हैं. पहली बार मैंने देखा कि हादसे के बाद कोई रेलमंत्री बिना देर किए दुर्घटना स्थल पर पहुंचा हो, बचाव के काम से लेकर पटरियों को ठीक करवाने, मृत लोगों की शिनाख्त कराने, शवों को उनके परिवारों तक पहुंचाने के सारे इंतजाम खुद देख रहा हो. इतना बड़ा हादसा होने के बाद 51 घंटों में ट्रैक पर फिर से ऑपरेशन शुरू हो गया, ये भी पहली बार हुआ है. आम तौर पर इस तरह के हादसों के बाद सरकार मुआवजे का एलान कर देती है और फिर हादसे के शिकार लोगों के परिजन सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं. पुराने रेल हादसों के शिकार सभी परिवारों को आज तक मुआवजा नहीं मिला है, लेकिन मैंने पहली बार देखा कि बालेश्वर में रेलवे स्टेशन पर रेलवे के बड़े बड़े अफसर बैठे हैं, जिन शवों की पहचान हुई है, उनमें से जिनके परिवार वाले वहां पहुंच रहे हैं, उनका आइडेंटिटी प्रूफ देखकर उसी वक्त उन्हें पचास हजार रूपए नगद और साढ़े नौ लाख रूपए का चैक दिया जा रहा है. ये बड़ी बात है, इससे उन लोगों को फौरी मदद मिलेगी, जिन्होंने इस हादसे में अपनों को खोया है.. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब तक ये पता नहीं लगेगा कि इतना बड़ा हादसा कैसे हुआ, किसकी गलती से हुआ, ये इंसानी गलती था या किसी साजिश का नतीजा, तब तक इस तरह के हादसों को नहीं रोका जा सकता. इसलिए मुझे लगता है कि इस दिल दहलाने वाले हादसे पर सियासत करने की बजाए फोकस हादसे की वजह का पता लगाने पर होना चाहिए.
बृजभूषण बनाम पहलवान : अभी दंगल जारी है
बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन कर रहे पहलवानों के साथ अमित शाह की जो बातचीत हुई उसका असर दिखाई दिया. साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया ने अपनी अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली, लेकिन जैसे ही तीनों पहलवानों ने नौकरी फिर से ज्वाइन की, तो बृजभूषण शरण सिंह के लोगों ने ये खबर फैलाई कि पहलवानों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया है. तीनों चैंपियन पहलवानों ने तुरंत इस बात का खंडन किया. साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया – तीनों ने साफ साफ लफ्जों में कहा कि ये खबर बिल्कुल गलत है. उनके शब्दों में कहूं तो, ‘हम न पीछे हटे हैं, न हमने आंदोलन वापस लिया है’. न ही महिला पहलवानों ने एफआईआर वापस ली है. उन्होंने कहा कि इस तरह की अफवाह फैलाना बेबुनियाद है. ये तीनों चैंपियन पहलवान रेलवे में नौकरी करते हैं. इनके ड्यूटी ज्वाइन करने का मतलब ये निकाला गया कि वो अब प्रोटेस्ट नहीं करना चाहते, तो इन पहलवानों ने कहा, इंसाफ मिलने तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी. विनेश फोगाट ने कहा कि नौकरी इंसाफ के रास्ते में बाधा बनती है तो इसे त्यागने में हम 10 सेकेंड का वक्त भी नहीं लगाएंगे. बजरंग पुनिया ने भी इसी बात को दोहराया. पहलवानों का कहना है कि वो भले ही इस वक्त धरने पर नहीं हैं लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि उनकी मांगें खत्म हो गई हैं या उनके इल्जाम गलत थे. साक्षी मलिक ने कहा कि आंदोलन ख़त्म नहीं हुआ है, वो सत्याग्रह के साथ रेलवे में अपनी नौकरी भी कर रही हैं और ये लड़ाई इंसाफ मिलने तक जारी रहेगी. शनिवार रात को दिल्ली में इन पहलवानों की गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई थी. अमित शाह ने अच्छा किया, पहलवानों की बात सुनी, उन्हें इस बात पर आश्वस्त किया कि उनकी शिकायत की ईमानदारी से जांच हो रही है, उसमें पक्षपात नहीं होगा. असल में बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन कर रहे पहलवानों का सबसे बड़ा डर यही था. उन्हें लगता था कि पुलिस बृज भूषण शरण सिंह को बचाने की कोशिश कर रही है. उन्हें लगता था कि उन्होंने देश का नाम रौशन किया पर सरकार उन्हें गलत साबित करने की कोशिश कर रही है. इसी डर औऱ शक ने उनके आंदोलन को राजनीतिक रंग दे दिया, तमाम विरोधी दलों के नेताओं ने इसका फायदा उठाया, पहलवानों के धरने में जब सियासत घुस गई, प्रियंका गांधी, ममता बनर्जी से लेकर केजरीवाल तक सब ने पहलवानों का साथ दिया, फिर किसान संगठनों ने रेसलर्स के धरने को हाईजैक कर लिया. इसके बाद पहलवानों का धरना सरकार विरोधी मंच बन गया. लेकिन मुझे लगता है कि सबसे ज्यादा असर तब हुआ जब लोगों ने टीवी पर पुलिस को पहलवानों को सड़क पर घसीटते हुए देखा, नेशनल चैंपियंस के साथ पुलिस को जोर जबरदर्स्ती करते देखा. फिर जब ये पहलवान अपने मैडल गंगा में बहाने पहुंच गए तो लोगों की भावनाएं और भी आहत हुईं. वो दृश्य वाकई दुखी करने वाला था. पहलवानों के तंबू उखड़ गए, धरना खत्म हो गया लेकिन आंदोलन और बड़ा हो गया. पुलिस की ज्यादती की तस्वीरों का असर दूर तक हुआ. इसलिए जेपी नड्डा ने बृज भूषण शरण सिंह पर लगाम लगाई उन्हें बयानबाजी और सीना जोरी करने से रोका. सरकार का रुख देखकर पहलवानों में भी विश्वास जगा. अमित शाह का जो रुतबा है, उनकी जो पॉजीशन है उसकी वजह से भी रास्ता निकलने की उम्मीद बनी. अब पहलवानों के रूख में नरमी आई है, अब वो धरने पर नहीं बैठे हैं, गंगा में मेडल उन्होंने नहीं बहाए और अब उन्होंने ड्यूटी भी ज्वाइन कर ली है, लेकिन उन्होंने न सरेंडर किया है, न बृज भूषण शरण सिंह को माफ किया है. बातचीत एक सकारात्मक दिशा में जाने की शुरुआत है, पर जख्म गहरे हैं, भरने में वक्त तो लगेगा.
भागलपुर में पुल क्यों गिरा ?
बिहार के भागलपुर में रविवार को गंगा पर 1700 करोड़ रुपये की लागत से बना पुल ताश के पत्तों की तरह ढह गया. बड़ी बात ये है कि इस पुल का शिलान्यास 2014 में नीतीश कुमार ने ही किया था, जब वह बीजेपी के साथ मिल कर सरकार चला रहे थे. छह बार इस पुल को पूरा करने की समयसीमा बढ़ाई जा चुकी थी. इस पुल के कुछ पिलर्स पिछले साल भी गिर गए थे.इसके बाद जांच के आदेश हुए, IIT के एक्सपर्टस की कमेटी बनाई गई, लेकिन उसकी रिपोर्ट आती, उससे पहले ही एक बार फिर पुल गिर गया. नीतीश कुमार इस पुल का उद्घाटन करने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन उससे पहले ही पुल का ज्यादातर हिस्सा गंगा की लहरों में समा गया. नीतीश कुमार ने कहा कि कुछ न कुछ गड़बड़ी है, तभी ये पुल बार-बार गिर रहा है, जांच शुरू हो चुकी है, जो भी दोषी होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा. बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अगर नीतीश को पुल की मजबूती पर शक था, तो एक्शन क्यों नहीं लिया, जब उन्हें लग रहा था कि भ्रष्टाचार हो रहा है, तो वो खामोशी से क्या पुल के गिरने का इंतजार कर रहे थे. भागलपुर में पुल के गिरने की तस्वीरें बिहार में भ्रष्टाचार का जीता जागता सबूत हैं. अब तेजस्वी यादव हों, या नीतीश कुमार, उनकी कोई भी सफाई गले नहीं उतरेगी. अगर एक बार पुल गिरता तो बात समझ में आती. एक बार हादसा होने के बाद दोबारा उसी कंपनी को काम दिया गया और फिर पुल गिर गया. इसे क्या कहा जाए. पता ये लगा है कि एस पी सिंगला कंस्ट्रक्शन कंपनी को ये पुल बनाने का ठेका मिला था. कंपनी नौ साल में पुल नहीं बना पाई. चौंकाने वाली बात ये है कि इसी कंपनी में बिहार में छह दूसरे पुल बनाने का ठेका भी नीतीश कुमार की सरकार ने दिया है. ये कंपनी तीन हजार करोड़ रु. की लागत से गंगा पर नया महात्मा गांधी सेतु बना रही है, तीन हजार करोड़ रु. में जेपी सेतु, मोकामा में 1200 करोड़ रु. में पुल और किशनगंज टाउन में फ्लाईओवर भी बना रही है. अब नीतीश कुमार की सरकार को ये बताना पड़ेगा कि जिस कंपनी का बनाया हुआ ब्रिज उद्घाटन से पहले धराशायी हो रहा हो. उसे इतने बड़े बड़े दूसरे पुल बनाने का ठेका क्यों दिया गया है. इस कंपनी पर नीतीश की सरकार इतनी मेहरबान क्यों है. नीतीश कुमार पुल गिरने से इस्तीफा तो नहीं देंगे लेकिन वो कम से कम इतना तो कर सकते हैं कि इस कंपनी की तरफ से बनाए जा रहे सभी पुलों का ऑडिट तो करवा लें.