राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के संस्थापक शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान करके सबको चौंका दिया है । पवार ने कुछ दिन पहले कहा था कि तवे पर रोटी पलटने का वक्त आ गया है लेकिन मंगलवार उन्होंने तवा ही उलट दिया। पवार के बयान के बाद महाराष्ट्र की सियासत में हलचल पैदा हो गई। पार्टी के सीनियर नेताओं और कार्यकर्ताओं ने रोते हुए उनसे इस्तीफा न देने की गुहार लगाई। सैकड़ों कार्यकर्ता धरने पर बैठ गए । बुधवार को एक बार फिर पार्टी के बड़े नेताओं ने शरद पवार से मुलाकात की और उनसे इस्तीफा वापस लेने की अपील की। शरद पवार ने अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए 2-3 दिन का समय मांगा है। शरद पवार इस वक्त देश के सबसे उम्रदराज सक्रिय नेता हैं। पवार 82 साल के हैं लेकिन इस उम्र में भी उनकी सक्रियता और राजनैतिक कौशल कमाल का है। उनके सियासी दांव-पेंचों का लोहा सब मानते हैं। शरद पवार 60 साल से सक्रिय राजनीति में हैं। सबसे कम उम्र में महाराष्ट्र की सियासत में उन्होंने ‘रोटी’ पलटी थी और 1978 में सिर्फ 37 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बन गए थे। मैं 1978 से ही शरद पवार की राजनीति को करीब से देख रहा हूं। पवार साहब की खासियत यह है कि वो दाएं हाथ से जो करते हैं उसकी खबर बाएं हाथ को नहीं लगने देते। और वो जब कोई बात कहते हैं तो उससे पहले आगे के चार कदम प्लान कर चुके होते हैं। इसलिए पवार ने मंगलवार जो कदम उठाया उससे इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि उनकी स्कीम में आगे क्या है। लेकिन आज की परिस्थितियों में तीन बातें साफ हैं। पहली बात, बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य के कारण पवार रोजमर्रा की दौड़भाग की जिंदगी से आराम चाहते हैं। दूसरी बात, पवार समझते हैं कि उनके भतीजे अजित पवार ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहते। अजित पवार अपने चाचा शरद पवार के रिटायरमेंट के लिए उतावले हैं। अजित पवार को लगता है कि वो पने चाचा के स्वाभाविक उत्तराधिकारी हैं और उनकी जगह गर कोई और आया भी, तो यह एक अस्थाई व्यवस्था होगी। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात, महाराष्ट्र की राजनीति में अजित पवार के समीकरण उन समीकरणों से बिल्कुल अलग हैं, जो शरद पवार ने बनाए हैं। अगर पार्टी की कमान अजित पवार के हाथ में आती है तो महाराष्ट्र की राजनीति की पूरी तस्वीर बदल जाएगी। इसलिए राजनीति पर नजर रखनेवालों को अभी कुछ दिन इंतजार करना होगा। तेल और तेल की धार दोनों देखनी होगी।
मोदी का बजरंगबली स्ट्रोक
कर्नाटक में आठ दिन के बाद विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होगी। चुनाव प्रचार पूरे शबाब पर है। कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी होने के कुछ ही मिनट बाद मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभियान का नैरेटिव बदल दिया। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ऐलान कर दिया कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो मुसलमानों का आरक्षण बहाल होगा, गोहत्या पर बना कानून वापस लिया जाएगा और नफरत फैलाने वाले संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। यहां तक तो ठीक था। लेकिन कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में नफरत फैलाने वालों संगठनों के नामों में पीएफआई के साथ-साथ बजरंग दल का भी नाम डाल दिया। बस इसी बात को मोदी ने पकड़ लिया और इसे ऐसा मोड़ दिया कि शाम होते-होते कांग्रेस के नेता हनुमान चालीसा लेकर घूमते दिखाई दिए। कांग्रेस के नेताओं को लोगों यह समझाने के लिए मजबूर होना पड़ा कि वे बजरंगबली के विरोधी नहीं हैं। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस को पहले प्रभु राम से दिक्कत थी और अब कांग्रेस को बजरंग बली का नाम लेने वालों से नफरत हो गई है, बजरंग बली की जय बोलने वालों पर पांबदी लगाने की बात कर रही है। इसके जवाब में कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने अपनी जेब से हनुमान चालीसा निकाला और कहा कि वो भी हनुमान भक्त हैं। उन्होंने कहा कि बजरंग दल जैसे संगठन को बजरंग बली से तुलना करके मोदी ने हनुमान भक्तों की आस्था का अपमान किया है। कांग्रेस के रक्षात्मक होने पर बीजेपी नेताओं ने दबाव बनाया और कांग्रेस को मुस्लिम समर्थक और हिंदू विरोधी करार दिया। बुधवार को मोदी ने अपनी रैलियों में ‘बजरंगबली की जय’ का नारा लगाया। वहीं कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने अपनी सभाओं में बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि उसे असली मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहिए। एक बात कहनी पड़ेगी कि राहुल गांधी से बेहतर वक्ता प्रियंका गांधी हैं। कम से कम प्रियंका मुद्दे तो उठाती हैं। उनके भाषणों में कुछ तो नया होता है। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है कि राहुल गांधी उसके सबसे बड़े प्रचारक हैं और उनका मुकाबला नरेन्द्र मोदी जैसे चतुर और वाकपटु नेता से है। दूसरी बात यह है कि बीजेपी की रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है लेकिन कांग्रेस असमंजस की स्थिति में है। कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओं को नाराज नहीं करना चाहती और खुद को हिन्दुओं की हितैषी भी दिखाना चाहती है। इसी चक्कर में उसने पीएफआई की तुलना बजरंग दल से कर दी। बजरंग दल पर पाबंदी की बात मोदी ने पकड़ ली और अब कांग्रेस के नेता अगले आठ दिन तक सफाई देते घूमेंगे।
बृजभूषण शरण के नखरे
पहलवानों के आरोपों से घिरे भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का असली चेहरा जनता के सामने आ गया। मंगलवार को वह इंडिया टीवी पर एक लाइव बहस के दौरान भड़क गए और बीच में इंटरव्यू छोड़कर चले गए। हमारे एंकर सौरव शर्मा ने बृजभूषण के सामने उस हलफनामे को रखा जिसमें एक नाबालिग महिला पहलवान ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था । इंटरव्यू के दौरान बृजभूषण शरण सिंह ने आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों के नाम भी ले लिए । इंडिया टीवी के पास महिला पहलवान के हलफनामे की कॉपी थी जिसमें बृजभूषण पर यौन उत्पीड़न के इल्जाम लगाए गए थे। जब सौरव शर्मा ने हलफनामे का हवाला दिया तो बृजभूषण उखड़ गए। सौरव शर्मा ने उन्हें बताया कि एक महिला पहलवान ने जांच कमेटी को बताया है कि कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ने उन्हें अपने दफ़्तर में बुलाकर ग़लत तरीक़े से उनके शरीर को छुआ, ज़बरदस्ती गले लगाने की कोशिश की। इसपर उनका रिएक्शन मांगा गया, तो वो नाराज़ हो गए। इंडिया टीवी पर बृजभूषण शरण सिंह का लाइव टेलीकास्ट जंतर मंतर पर धरने पर बैठे पहलवान भी देख रहे थे। उन्होंने बाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि बृजभूषण शरण सिंह की यही असलियत है। यही उनका असली चेहरा है। विनेश फोगाट ने कहा, ‘सोचिए जब बृजभूषण शरण सिंह नेशनल मीडिया के साथ ऐसा कर सकते हैं तो फिर बंद कमरे में खिलाड़ियों से कैसा सलूक करते होंगे’। मैंने बृजभूषण शरण सिंह से सौरव शर्मा की बातचीत देखी। सौरव एक अच्छे प्रोफेशनल एंकर की तरह सवाल पूछ रहे थे। उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही कि नेताजी को इंटरव्यू बीच में छोड़कर भागना पड़े। नेताजी अपनी सफाई में जांच रिपोर्ट का हवाला दे रहे थे। जब सौरव ने रिपोर्ट का वो हिस्सा पढ़कर सुनाया, जहां एक लड़की ने बृजभूषण शरण सिंह पर सीधे-सीधे यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था तो नेताजी बिफर गए और डरकर भाग गए। मैं कहना चाहता हूं कि जो लोग सार्वजनिक जीवन में होते हैं उन्हें बर्दाश्त करना पड़ता है। जो लोग चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं उन्हें जनता के प्रति उत्तरदायी होना पड़ता है। मीडिया के सवालों के जवाब देने पर जिस तरह का ड्रामा बृजभूषण शरण सिंह ने किया जिस तरह के नखरे उन्होंने दिखाए वो उनकी कमजोरी को दर्शाते हैं। माइक उतारना, देख लेने की धमकी देना, ऐसा तो वो लोग करते हैं जिन्हें एक्सपोज होने का डर होता है। हमलोग ऐसी धमकियों से ना कभी डरे हैं और ना डरेंगे। मैं तो बृजभूषण शरण सिंह को आमंत्रित करता हूं कि वो ‘आप की अदालत’ में आएं, देश के चैंपियन पहलवानों का सामना करें और सवालों के जवाब दें ताकि जनता के सामने दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए।
गंभीर बनाम कोहली
लखनऊ में आईपीएल मैच के बाद हार से बौखलाए गौतम गंभीर ने एक बार फिर विराट कोहली पर अपनी खीझ निकालने की कोशिश की। दोनों के बीच जमकर बहस हुई। मामला इतना बढ़ गया कि बीच-बचाव की नौबत आ गई। इस घटना ने सभी क्रिकेट प्रेमियों को झकझोर कर रख दिया है। गंभीर लखनऊ सुपर जायंट्स के मेंटर हैं और विराट कोहली रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के स्टार बल्लेबाज हैं। लखनऊ के इकाना स्टेडियम में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और लखनऊ सुपरजायंट्स के बीच मैच चल रहा था। रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने मैच 18 रन से जीत लिया। गौतम गंभीर लखनऊ सुपरजायंट्स के प्रदर्शन से निराश थे और इसका गुस्सा उन्होंने विराट कोहली पर उतारने की कोशिश की। एक बात तो साफ है कि गौतम गंभीर विराट कोहली की लोकप्रियता और उनकी सफलता से जलते हैं। दोनों दिल्ली के बड़े प्लेयर हैं। गौतम गंभीर इस बात को कभी पचा नहीं पाए कि विराट उनके मुकाबले बहुत बड़े प्लेयर बन गए। जब विराट कोहली आउट ऑफ फॉर्म चल रहे थे और उनके बल्ले से रन नहीं बन रहे थे तब गौतम गंभीर ने विराट कोहली को राइट ऑफ कर दिया था। गंभीर कोहली का मजाक उड़ाते थे। विराट कोहली ने अपने बल्ले से ऐसा करारा जवाब दिया कि गौतम गंभीर को मिर्ची लगने लगी। दिल्ली से चुनाव लड़कर और सांसद बनने के बाद गौतम गंभीर का अहंकार और भी बढ़ गया। विराट की लोकप्रियता गंभीर को कितना परेशान करती है यह मंगलवार को ग्राउंड में साफ-साफ नजर आया। विराट कोहली ऐसे प्लेयर हैं जो हमेशा एग्रेसिव रहते हैं। वो किसी तरह की नॉन-सेंस को बर्दाश्त नहीं करते इसीलिए उन्होंने गौतम गंभीर को बराबर का जवाब दिया। कोहली गंभीर को समझाने की कोशिश कर रहे थे कि हुआ क्या है, लेकिन गंभीर सुनने को तैयार नहीं थे। लेकिन कुल मिलाकर गौतम गंभीर ने जो किया वह खेल भावना के खिलाफ था। ऐसी घटनाओं से क्रिकेट का नुकसान होता है।