बिहार में बदलाव होगा, नीतीश कुमार पाला बदलेंगे, मुख्यमंत्री वही रहेंगे, लेकिन मंत्री बदल जाएंगे. चेहरा वही होगा, लेकिन चोला बदल जाएगा. अब लालटेन की बजाए LED लाइट जलेगी. क्योंकि नीतीश ने जेडीयू के तीर से लालू की लालटेन का कांच तोड़ने का फैसला कर लिया है. हालांकि अभी इसका औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है कि नीतीश, आरजेडी साथ छोड़कर फिर बीजेपी के पाले में जाएंगे लेकिन बिहार से लेकर दिल्ली तक जो हो रहा है, जो दिखाई दे रहा है, जो सुनाई दे रहा है, उससे बिल्कुल साफ है कि फैसला हो चुका है, डील हो चुकी है. अब सिर्फ ऐलान होना बाकी है. नीतीश कुमार ने साबित कर दिया है कि बिहार में नेताओं की कसमों का, उनके वादों का, उनके बयानों का कोई मतलब नहीं होता. बिहार की राजनीति में जो हो रहा है, इसका बिहार की जनता के कल्याण से भी कोई लेना देना नहीं है. ये सिर्फ सत्ता में बने रहने का खेल है, कुर्सी पर बैठे रहने के लिए जोड़-तोड़ है, मोलभाव है. डेढ़ साल पहले जब लालू यादव ने नीतीश कुमार को समर्थन दिया, उन्हें मुख्यमंत्री बनाया तो भी खेल सत्ता में हिस्सेदारी का ही था , डील साफ थी. लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश को दिल्ली भेजा जाएगा. INDI एलायन्स का संयोजक बनाया जाएगा, प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया जाएगा और जब नीतीश कुमार दिल्ली जाएंगे, तो उनकी कुर्सी पर लालू जी के सुपुत्र तेजस्वी को बैठाया जाएगा . नीतीश जानते थे कि “न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी”. न उन्हें कोई पीएम फेस बनाएगा और न गद्दी छोड़नी पड़ेगी लेकिन बेटे को जल्दी से CM बनाने की लालू की तड़प का कोई क्या कर सकता था? नीतीश पर दबाव बढने लगा -दिल्ली जाओ, कुर्सी छोड़ो, संयोजक बाद में बनवा देंगे. जब नीतीश नहीं माने, तो ललन सिंह के जरिए जेडीयू के MLAs को तोड़कर उन्हें पैदल करने की धमकी दी गई. ऐसे मामलों में नीतीश सबके बाप हैं. वो जानते थे कि लोकसभा चुनाव सामने है, बीजेपी को बिहार में स्वीप करना है तो नीतीश की ज़रूरत होगी, चालीस सीटें हैं. बीजेपी रिस्क नहीं लेना चाहती. नीतीश का ये खेल बीजेपी को भी सूट करता है, इसलिए डील हो गई . नोट करने की बात ये है कि खेल के तीनों बड़े खिलाड़ी अमित शाह, लालू यादव और नीतीश कुमार, न तो एक दूसरे को पसंद करते हैं, न एक दूसरे पर भरोसा करते है. तीनों जनता से कई बार कह चुके हैं कि मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन इनके उनके साथ नहीं जाएंगे. लेकिन राजनीति बड़ी निष्ठुर होती है. ज़रूरत के हिसाब से बदलने को विवश कर देती है. लेकिन बिहार में जो बदलाव होगा, उसकी गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ेगी. सबसे बडा कुठाराघात राहुल गांधी के सपनों पर होगा. INDI एलायन्स का अब कोई मतलब नहीं रह जाएगा. राहुल गांधी की उम्मीद इस बात पर टिकी थी कि सब मिलकर लड़ेंगे , उनकी calculation थी हमारे पास 60 परसेंट वोट हो जाएंगे, हम जीत जाएंगे .लोग भी पूछते थे कि सब इक्कठे हो गए तो क्या वाकई में मोदी को रोक पाएंगे? अब बाजी पलट गई. राहुल की यात्रा बंगाल पहुंची तो ममता ने साथ छोड़ दिया और बिहार पहुंचने से पहले ही नीतीश ने गच्चा दे दिया. केजरीवाल पहले ही उम्मीदों पर पानी फेर चुके हैं और इंडी एलायन्स के ताबूत में आखिरी कील नीतीश कुमार कल या परसों ठोंक देंगें. अब न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.