Rajat Sharma

मोदी के बारे में प्रणब दा के विचारों से क्या सीखा जा सकता है

मुझे प्रणब दा को काफी करीब से देखने का, जानने का मौका मिला। मैंने उनके साथ काफी वक्त बिताया। उनकी याददाश्त कमाल की थी, वह सुपर इंटेलिजेंट थे और उनकी ऑब्जर्वेशन बहुत गहरी होती थी। इसलिए नरेंद्र मोदी के बारे में उनका कहा बहुत अर्थपूर्ण है और इसे आज के वक्त में समझने कि बहुत जरूरत है।

AKB30 आज मैं आपको बतौर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल के वक्त की कई राज़ की बातें बताऊंगा। कई सालों तक एक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच रिश्तों पर कयास लगते रहते थे, क्योंकि दोनों का बैकग्राउंड अलग था और पार्टियां भी अलग थीं।

प्रणब दा ने अपने संस्मरण ‘द प्रेसिडेंशियल इयर्स 2012-2017’ में मोदी के बारे में विस्तार से लिखा है। यह किताब उन्होंने पिछले साल अपने निधन से पहले पूरी कर ली थी। अपनी किताब में मुखर्जी ने मोदी के साथ अपने संबंधों को बेहद गर्मजोशी भरा दिखाया है।

प्रणब मुखर्जी ने नरेंद्र मोदी के बारे में जो कुछ कहा है वह बेहद महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति की पोजीशन ऐसी होती है कि उनके पास सरकार की, प्रधानमंत्री की, एक-एक बात की खबर रहती है। यही वजह है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कई राज़ जानते थे, उनसे कुछ छुपा नहीं था।

आज मैं आपको बताऊंगा कि एक राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी नरेंद्र मोदी की नीतियों के बारे में क्या सोचते थे। क्या मोदी ने विदेश नीति ठीक से चलाई? क्या प्रणब मुखर्जी को लगता था कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां देश के लिए ठीक रहीं?

राष्ट्रपति बनने से पहले प्रणब मुखर्जी देश के वित्त मंत्री और विदेश मंत्री भी रह चुके थे, इसलिए वह इन मामलों की बारीकियों को समझते थे। 44 साल के राजनैतिक जीवन में प्रणब मुखर्जी ने राजनीति के हर रंग को देखा था। इसलिए मोदी पर लिखे गए उनके एक-एक शब्द का मतलब है।

मुझे प्रणब दा को काफी करीब से देखने का, जानने का मौका मिला। मैंने उनके साथ काफी वक्त बिताया। उनकी याददाश्त कमाल की थी, वह सुपर इंटेलिजेंट थे और उनकी ऑब्जर्वेशन बहुत गहरी होती थी। इसलिए नरेंद्र मोदी के बारे में उनका कहा बहुत अर्थपूर्ण है और इसे आज के वक्त में समझने कि बहुत जरूरत है।

2014 के लोकसभा चुनाव में जब नरेंद्र मोदी की पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला, तो वह राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने गए। प्रणब दा लिखते हैं: ‘मैंने मोदी को बधाई दी, तो उन्होंने मुझसे थोड़ी देर बात करने की गुजारिश की। मोदी ने मुझे मेरा एक पुराना भाषण याद दिलाया, एक अखबार कि कटिंग दिखाई जिसमें मैंने कहा था कि एक ऐसा जनादेश हो जिससे राजनीतिक स्थिरता कायम हो। इसके बाद उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह से पहले एक सप्ताह का वक्त मांगा। मैं उनके इस अनुरोध पर हैरान था। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह अपने गृह राज्य गुजरात में अपने उत्तराधिकारी का मुद्दा सुलझाने के लिए समय चाहते हैं।’

प्रणब दा ने लिखा कि उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि 2014 के चुनावों में बीजेपी को इतना बड़ा जनादेश मिलेगा लेकिन वह मोदी की अच्छे से की गई प्लानिंग और उनकी मेहनत को देखकर प्रभावित हुए थे। उन्होंने लिखा, ‘उस समय तक केवल पीयूष गोयल, जो तब बीजेपी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष थे और अब कैबिनेट मंत्री हैं, को पूरा भरोसा था कि बीजेपी किसी भी हाल में 265 से कम सीटें नहीं जीतेगी और यह संख्या 280 तक भी जा सकती है। न तो मुझे तब पता था, और न ही आज पता है कि उनके इस भरोसे के पीछे का कारण क्या था। लेकिन मैंने तब पीयूष गोयल को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया जब उन्होंने मुझे मोदी का पूरा चुनावी शेड्यूल दिया, जो न सिर्फ काफी व्यस्त था बल्कि उसमें मेहनत भी बहुत लगनी थी।’

प्रणब दा ने एक बार मुझसे कहा था कि वह कड़ी मेहनत को लेकर नरेंद्र मोदी के उत्साह से काफी प्रभावित थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में 16 से 18 घंटे काम करने का मापदंड इतना ऊंचा सेट कर दिया है कि अब देश में जो भी प्रधानमंत्री बनेगा उसे मोदी के इस परिश्रम से कंपेयर किया जाएगा, और ये किसी के लिए भी बहुत मुश्किल काम होगा।

अपने संस्मरण में प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि कैसे 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने से पहले मोदी ने राष्ट्रपति भवन में होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों और सरकारों को आमंत्रित करने के विचार को साझा किया था। मुखर्जी ने लिखा, ‘नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्हें विदेश मामलों का लगभग न के बराबर अनुभव था। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने कुछ देशों का दौरा किया था लेकिन वे दौरे उनके राज्य की भलाई से संबंधित थे। उनका घरेलू या वैश्विक विदेश नीति से बहुत कम लेना देना था। इसलिए विदेश नीति उनके लिए ऐसा क्षेत्र था जिससे वह परिचित नहीं थे। लेकिन उन्होंने कुछ ऐसा किया जिसकी पहले किसी अन्य प्रधानमंत्री ने कोशिश भी नहीं की थी। उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सहित सार्क देशों के प्रमुखों को 2014 के अपने पहले शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया।’

उन्होंने लिखा, ‘लीक से हटकर उठाए गए उनके इस कदम ने विदेश नीति के कई जानकारों तक को आश्चर्य में डाल दिया। भावी प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने जब मुझे अपने फैसले के बारे में बताया, तब तक 26 मई 2014 को शपथ ग्रहण समारोह की तारीख तय कर दी गई थी, मैंने उनके इस विचार की तारीफ की और उन्हें सलाह दी कि इस मौके पर वह यह भी सुनिश्चित कर लें कि देश में आने वाले हाई-प्रोफाइल विदेशी मेहमानों की सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद है। मुझे यह भी लगता है कि वह विदेश नीति की बारीकियों को जल्दी ही समझने लगे थे।’

मैं प्रणब दा की बातों से पूरी तरह सहमत हूं। 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान इंडिया टीवी के ‘सलाम इंडिया’ शो में प्रधानमंत्री मोदी के साथ मेरे इंटरव्यू में मोदी ने विस्तार से बताया था कि वह कैसे अन्य देशों के प्रमुखों के साथ बैठक के दौरान हमेशा लीक से हटकर सोचते हैं।

मोदी ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि वह दशकों से भारतीय प्रधानमंत्रियों को विदेशी नेताओं के साथ बेहद नर्मी से हाथ मिलाते हुए देखते रहे थे। उसी समय उन्होंने अपना मन बना लिया था कि अगर वह कभी प्रधानमंत्री बने और विदेशी नेताओं से मिले, तो ये सारी चीजें बदलकर रख देंगे और विदेशी नेताओं से आंख से आंख मिला कर बातें करेंगे। मोदी ने यह भी खुलासा किया कि कैसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उन्हें व्हाइट हाउस दिखाने के लिए अंदर ले गए थे और उनसे अमेरिकी इतिहास के बारे में विस्तार से बताया था। मोदी ने यह भी बताया कि कैसे देर रात मॉस्को पहुंचने के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ उनकी बातचीत आधी रात के बाद तक खिंच गई थी।

ऐसा क्या है जो मोदी को पहले के प्रधानमंत्रियों से अलग बनाता है, ये प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में बड़ी अच्छी तरह समझाया है। अपनी किताब में प्रणब मुखर्जी ने मोदी द्वारा शुरू की गई कुछ अच्छी परिपाटियों के बारे में लिखा है, जैसे कि हर विदेश दौरे से पहले राष्ट्रपति से बातचीत करना जिसमें द्विपक्षीय संबंधों के अहम बिंदुओं पर बातें होती थी। उन्होंने लिखा, ‘इस प्रथा को मोदी ने ही शुरू किया था।’

कांग्रेस में लगभग अपना पूरा करियर बिताने वाले प्रणब मुखर्जी जैसे राजनेता के मोदी के लिए ये सब तारीफ के शब्द हैं। इसलिए जब हम इनकी तुलना बगैर सोचे-समझे मोदी के विरोध से, जैसा कि हम कांग्रेस नेताओं को सोशल मीडिया पर लगभग रोज करते हुए देखते हैं, करते हैं तो इन शब्दों का महत्व तब काफी बढ़ जाता है।

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी और मनमोहन सिंह की तुलना करते हुए प्रणब मुखर्जी ने एक अनुभवी राजनेता के तौर पर एक बड़ी बात लिखी है।

मनमोहन सिंह के बारे में उन्होने लिखा कि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें एक अर्थशास्त्री के रूप में चुना था, जबकि मोदी के बारे में मुखर्जी ने लिखा, ‘मोदी 2014 में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत का नेतृत्व कर प्रधानमंत्री पद के लिए जनता की पसंद बने। वह मूल रूप से राजनीतिज्ञ हैं और उन्हें बीजेपी ने पार्टी के चुनाव अभियान में जाने पहले ही प्रधानमंत्री पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया। वह उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उनकी छवि जनता को भा गई। उन्होंने प्रधानमंत्री का पद अर्जित किया है।’

मैंने प्रणब दा को काफी करीब से देखा है। वह 10 साल लंबे यूपीए शासन के दौरान कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े संकटमोचक थे। इन सबसे अलग वह एक बेहतरीन इंसान थे। वह अपने से ज्यादा दूसरों का ख्याल रखते थे। मुझे याद है कि एक बार नरेंद्र मोदी यह बताते हुए काफी भावुक हो गए थे कि उन्होंने प्रणब दा से क्या-क्या सीखा है। मोदी उस समय दिल्ली में नए थे, और प्रणब मुखर्जी के रूप में उन्हें यहां एक पिता जैसी शख्सियत मिली जिन्होंने उनका बहुत ख्याल रखा।

नरेंद्र मोदी के बारे में जो बातें प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखी है, ये सब बातें और ज्यादा विस्तार से मैंने उनसे कई बार सुनी हैं। और आज जब राजनीति का रूप देखता हूं तो उनकी बातें बार-बार सुनने की और सुनाने की जरूरत महसूस होती है। आजकल तो सिर्फ विरोध के लिए विरोध होता है। कांग्रेस के कई ऐसे नेता हैं जिनका मानना है कि चूंकि वे विपक्ष में हैं, इसलिए उन्हें मोदी सरकार के द्वारा उठाए गए हर कदम का विरोध करना चाहिए।

पार्लियामेंट की नई बिल्डिंग बनाएंगे तो विरोध, स्वदेशी कोविड वैक्सीन लाएंगे तो विरोध, गणतंत्र दिवस पर परेड की परंपरा निभाएंगे तो विरोध, कुछ विपक्षी नेताओं को लगता है कि इस तरह के मुद्दों पर उन्हें सरकार का विरोध जरूर करना चाहिए। यहां तक कि वे फार्म पॉलिसी और जीएसटी जैसी नीतियों, जिन्हें कांग्रेस ने बनाया था, का सिर्फ इसलिए विरोध करेंगे क्योंकि उन्हें मोदी लागू कर रहे हैं।

प्रणब दा के संस्मरण से हम सभी को आपसी सद्भाव की कला सीखनी चाहिए और यह समझना चाहिए कि हमेशा राष्ट्रहित सर्वोपरि होता है। प्रणब दा और मोदी के बीच का संबंध भारत की उस प्राचीन परंपरा को रेखांकित करता है कि जिसमें कहा गया है कि जिसके पास ज्ञान है उसे मान कैसे देना है। यही वह सबक है जो राजनीति में लोगों को प्रणब बाबू से सीखना चाहिए।

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