Rajat Sharma

कोविड वैक्सीन के मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए

कंट्रोलर जनरल वी जी सोमानी ने कहा कि दोनों दवा कंपनियों ने अपने ट्रायल रन का डेटा जमा कर दिया है और दोनों को परमिशन दे दी गई है। उन्होंने कहा कि कोविशील्ड 70.42 प्रतिशत तक प्रभावी है, जबकि कोवैक्सीन ‘सुरक्षित है और यह एक मजबूत इम्यून रेस्पॉन्स देता है।’ उन्होंने कहा, ‘अगर सुरक्षा को लेकर जरा-सी भी शंका होती तो हम किसी भी टीके को कभी मंजूरी न देते।’ उन्होंने उन अफवाहों को ’कोरी बकवास’ बताया कि वैक्सीन लोगों को नपुंसक बना सकती है।

AKB30 भारत में कोरोना की पहली वैक्सीन दिए जाने से पहले ही राजनीतिक तूफान उठ खड़ा हुआ है। कई पार्टियों ने हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक की स्वदेशी Covaxin टीके को इमरजेंसी यूज के लिए दी गई मंजूरी पर सवाल उठाया है। इन दलों ने पूरे मसले का राजनीतिकरण शुरू कर दिया है। रविवार को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका एवं सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा तैयार ‘कोविशील्ड’ और भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सीन’ के ‘सीमित इस्तेमाल’ के लिए आपातकालीन मंजूरी देने का ऐलान किया।

कंट्रोलर जनरल वी जी सोमानी ने कहा कि दोनों दवा कंपनियों ने अपने ट्रायल रन का डेटा जमा कर दिया है और दोनों को परमिशन दे दी गई है। उन्होंने कहा कि कोविशील्ड 70.42 प्रतिशत तक प्रभावी है, जबकि कोवैक्सीन ‘सुरक्षित है और यह एक मजबूत इम्यून रेस्पॉन्स देता है।’ उन्होंने कहा, ‘अगर सुरक्षा को लेकर जरा-सी भी शंका होती तो हम किसी भी टीके को कभी मंजूरी न देते।’ उन्होंने उन अफवाहों को ’कोरी बकवास’ बताया कि वैक्सीन लोगों को नपुंसक बना सकती है।

इस बीच वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज की एक प्रोफेसर गगनदीप कंग ने कोवैक्सीन को दी गई मंजूरी को लेकर कुछ सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि उन्हें अभी तक कोई भी ऐसा प्रामाणिक डेटा नहीं मिला है जिससे यह पता चल सके कि कोवैक्सीन SARS-Cov-2 स्ट्रेन के खिलाफ प्रभावी है, यूके स्ट्रेन की तो बात ही छोड़ दीजिए। ऑल इंडिया ड्रग ऐक्शन नेटवर्क की मालिनी ऐसोला ने कहा कि रेग्युलेटर को चाहिए कि पारदर्शिता के लिए इमरजेंसी अप्रूवल देने के पीछे की वजहों को विस्तार से बताएं।

सोशल मीडिया पर कोवैक्सीन को मंजूरी दिए जाने को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म हो गया तो नेता भी मैदान में कूद पड़े। इसकी शुरुआत की समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने, जिन्होंने पहले तो इसे ‘बीजेपी की वैक्सीन’ बताया और बाद में अपने बयान से पलट गए। रविवार को अखिलेश यादव ने कहा था कि उन्हें कोरोना वायरस की वैक्सीन पर भरोसा नहीं है और वह इसे नहीं लगवाएंगे क्योंकी यह बीजेपी की वैक्सीन है। बाद में उन्होंने ट्वीट करके अपने बयान में थोड़ा सुधार करने की कोशिश की और कहा कि कोविड टीकाकरण एक संवेदनशील मुद्दा है और बीजेपी को इसे दिखावे का इवेंट नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह वैक्सीन पर काम करने वाले वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और स्वयंसेवकों के काम पर सवाल नहीं उठा रहे ।

कांग्रेस नेता शशि थरूर और जयराम रमेश भी मैदान में कूद गए। थरूर ने ट्वीट किया, ‘अगर कोवैक्सीन प्रभावी साबित नहीं हुई, तो इस तरह की बेवजह जल्दबाज़ी से टीकाकरण के क्षेत्र में भारत की अब तक की कायम अन्तरराष्ट्रीय साख पर बट्टा लगने का खतरा है। जो भी कोवैक्सीन का टीका लगाएंगे उन्हें पहले से ये समझ लेना चाहिए कि भारत सरकार ने इसे ‘क्लिनिकल ट्रायल के लिए ’ ‘इमरजेंसी’ इस्तेमाल की मंजूरी दी है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो जिन भारतीयों को ये टीका लगाया जाएगा वे बगैर अनिवार्य ‘सहमति’ के तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के लिए वॉलंटियर्स जैसे माने जाएंगे । एक तरह से यह बहुत ही असामान्य बात है और नैतिकता के लिहाज़ से संदिग्ध है ।’

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करते हुए कहा: ‘भारत बायोटेक प्रथम दर्जे की कंपनी है, लेकिन यह हैरान करने वाली बात है कि तीसरे चरण के ट्राल के लिए जो अंतरराष्ट्रीय मानक तय किये गए हैं उन्हें ‘कोवैक्सीन’ के मामले में संशोधित किया गया हैं। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को इस बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए।’

सोमवार को भारत बायोटेक के अध्यक्ष डॉक्टर कृष्णा एल्ला ने लोगों से इस मुद्दे का राजनीतिकरण न करने की अपील की। डॉक्टर एल्ला ने कहा, ‘हम 200 फीसदी ईमानदार क्लिनिकल ट्रायल करते हैं और उसके बाद हमें ऐसी प्रतिक्रिया सुनने को मिलती है। अगर मैं गलत हूं, तो मुझे बताएं। कुछ कंपनियां हमारी वैक्सीन की तुलना पानी से कर रहे हैं। मैं इसे बिल्कुल गलत मानता हूं । हम आखिरकार वैज्ञानिक हैं।’

रविवार को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मालिक अदार पूनावाला ने कहा था कि ‘फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्रा-जेनेका द्वारा बनाई गई केवल 3 वैक्सीन अब तक प्रभावकारी साबित हुई हैं और बाकी सिर्फ ‘पानी की तरह ही सुरक्षित हैं।’ जवाब में डॉक्टर एल्ला ने कहा कि ब्रिटेन ने एस्ट्रेजेनेका-ऑक्सफोर्ड वैक्सीन के जो परीक्षण डेटा दिए हैं, उन्हें अमेरिका और यूरोप ने मानने से इनकार कर दिया है क्योंकि ये डेटा ‘सही’ नहीं था, लेकिन भारत में कोई भी ऑक्सफोर्ड के डेटा पर सवाल नहीं उठा रहा है।

उन्होंने आरोप लगाया कि एस्ट्रेजेनेका-ऑक्सफोर्ड वैक्सीन के ट्रायल के दौरान स्वयंसेवकों को शॉट देने से पहले पेरासिटामोल की गोली दी गई थी। डॉक्टर एला ने कहा, ‘हमने स्वयंसेवकों को पेरासिटामोल नहीं दिया , इसलिए जो भी प्रतिकूल प्रतिक्रिया होती है, वह शत प्रतिशत होती है भले ही वह अच्छी हो या बुरी। यह डेटा वास्तविक समय में दर्ज किया गया है।’

उन्होंने कहा कि कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल एक अमेरिकी कंपनी IQVIA और IMS हेल्थ इंक द्वारा कराया जा रहा है। इस चरण के ट्रायल में वैक्सीन की डोज देने के बाद 12 महीने तक वॉलंटियर्स की निगरानी की जाएगी। डॉक्टर एल्ला ने कहा कि भारत बायोटेक एर भारतीय कंपनी है और वह वैक्सीन के मामले में एस्ट्राजेनेका या फाइजर जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों को टक्कर दे रही है। उन्होंने कहा, कोवैक्सीन टीका से होने वाले प्रतिकूल असर 15 फीसदी से भी कम पाये गये हैं। हम 24,000 से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगा चुके हैं।’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को दो स्वदेशी कोविड वैक्सीन को सफलतापूर्वक विकसित करने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों की सराहना की और कहा कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू होने जा रहा है।

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने सोमवार को आरोप लगाया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘अपने सहयोगियों जयराम रमेश और शशि थरूर के जरिए लोगों के बीच गलतफहमियां पैदा करने के लिए वैक्सीन के बारे में अफवाह फैला रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि जिस वैक्सीन पर कांग्रेस सवाल उठा रही है, उसे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने पहले ही मंजूरी दे दी है। पात्रा ने कहा, ‘ऐसी लोचनाओं से केवल उन विदेशी ताकतों को फायदा पहुंचेगा जो भारत को आत्मनिर्भर नहीं बनने देना चाहते ।’

पहली बात तो मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि अखिलेश यादव जैसे पूर्व मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि वह कोरोना टीका नहीं लगवाएंगे क्योंकि यह बीजेपी की वैक्सीन है। वह भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं जहां बड़े पैमाने पर पोलियो और चेचक उन्मूलन के कार्यक्रम चलाए गये थे। अपने प्रशासनिक अनुभव को देखते हुए उन्हें इतनी हल्की बात नहीं कहनी चाहिए थी।

कांग्रेस नेताओं के लिए मैं यह बताना चाहूंगा कि यदि ड्रग्स कंट्रोलर को फेज 1 और 2 का ट्रायल डेटा दिया जाता है तो उसके आधार पर आपातकालीन स्वीकृति देना एक सामान्य प्रोटोकॉल है। डॉक्टर कृष्णा एल्ला ने कहा कि फेज 1 और 2 के ट्रायल से जुड़ा सारा डेटा नामित संस्थानों के साथ शेयर किया गया है और तीसरे चरण में 26,000 वॉलंटियर्स पर ट्रायल हो रहा है। यह दुनिया का सबसे बड़ा क्लिनिकल ट्रायल है। इनमें से 24,000 वॉलंटियर्स पर ट्रायल पूरा हो चुका है और जहां तक सुरक्षा का सवाल है तो 10 प्रतिशत से कम वॉलंटियर्स में मामूली साइड इफेक्ट देखने को मिले हैं। उन्होंने कहा कि इस साल मार्च तक तीसरे फेज का पूरा ट्रायल डेटा मिल जाएगा।

डॉक्टर एल्ला ने कहा कि भारत बायोटेक की प्रतिष्ठा दुनिया भर में है और इसके पास 400 से भी ज्यादा पेटेंट हैं। उन्होंने कहा कि भारत में स्वदेशी रूप से विकसित कोवैक्सीन किसी भी मायने में फाइजर वैक्सीन से कम असरदार नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि हम एक भारतीय कंपनी हैं और हमारे वैज्ञानिक भारतीय हैं। एल्ला ने कहा कि इसीलिए हमारी छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है।

भले ही कुछ वैज्ञानिक कह रहे हों कि कोवैक्सीन टीका अभी पूरी तरह प्रामाणिक और परीक्षित नहीं है, और इसे अंतिम स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन यह भी तथ्य है कि फेज 3 के ट्रायल जारी रहते हुए भी DGCI को इसे आपातकालीन स्वीकृति देने का पूरा अधिकार है। दूसरी बात कि इसे बैकअप वैक्सीन के तौर पर मंजूरी दी गई है। यदि कोरोना वायरस से संक्रमण के ऐक्टिव मामलों की संख्या में अचानक उछाल आता है, तो कोवैक्सीन का इस्तेमाल क्लिनिकल ट्रायल मोड में किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने जो सवाल उठाए थे उनके जवाब तो मिल गए, लेकिन जहां तक नेताओं द्वारा इसे ‘बीजेपी की वैक्सीन’ कहे जाने वाले बयानों का सवाल है, तो इन्हें नजरअंदाज किया जाए तो बेहतर है। इस ऐतिहासिक टीकाकरण मुहिम से राजनीति को दूर रखना चाहिए।

अन्त में मैं एक भूल सुधार करना चाहता हूं। अपने एक ट्वीट में मैंने कहा था कि कोवैक्सिन की 2 अरब डोज़ को दुनिया भर के 190 देशों ने बुक किया है। तथ्य यह है कि COVAX विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक कार्यक्रम है, जिसके तहत कोरोना वायरस वैक्सीन की 2 अरब खुराकें 190 देशों के संघ GAVI द्वारा सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से बुक की गई हैं। नामों की समानता के चलते हुई इस गलती के लिए मुझे खेद है।

Comments are closed.