Rajat Sharma

कोरोना वायरस से डरें नहीं

akbदिल्ली-एनसीआर और भारत के कई अन्य महानगरों में आईसीयू बेड, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन बेड को लेकर एक भयावह स्थिति बनी हुई है। लगभग सभी मामलों में, कोविड रोगी को सांस लेने में दिक्कत की परेशानी है और उन्हें ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की सख्त जरूरत है। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे कई मामलों को रोका जा सकता था अगर रेमडेसिविर शीशियों की पर्याप्त आपूर्ति होती। आज ही देश में 3 लाख 23 हजार से ज्यादा नए केस सामने आए जबकि सिर्फ 2 लाख 19 हजार लोग रिकवर हुए हैं। यानि सवा लाख से ज्यादा नए एक्टिव केस जुड़ गए। फिलहाल देशभऱ में 28 लाख से ज्यादा एक्टिव केस हैं। ये आंकड़ा रोज बढ़ रहा है।

जिन लोगों ने वैक्सीन मैत्री पर सवाल उठाया था, जो ये बार बार कह रहे थे कि भारत ने वैक्सीन तो भेजी लेकिन ऐन वक्त पर कोई देश मदद के लिए आगे नहीं आया। तो उन्हें मालूम होना चाहिए कि अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, सिंगापुर, UAE, साउदी अरब जैसे मुल्क इस मुश्किल वक्त में भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। जिस अमेरिका ने कुछ दिन पहले कोरोना वैक्सीन के लिए कच्चा माल सप्लाई करने से इनकार कर दिया था आज वही अमेरिका भारत के लिए कच्चा माल भी भेज रहा है। उसके साथ साथ ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स अमेरिका से भारत आने लगे हैं। आज न्यूयॉर्क से नई दिल्ली की जो पैसेंजर फ्लाइट आई उसी के अंदर 328 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर्स भी मौजूद थे।

आमतौर पर तो ये होता है कि इन मेडिकल इक्विपमेंट्स के लिए अलग से स्पेशल प्लेन रवाना किया जाता। वो प्लेन 12-13 घंटे में अमेरिका पहुंचता और फिर ये सामान भारत आता लेकिन इस बार ये सारा झंझट बच गया। पैसेंजर प्लेन में ही इक्विपमेंट्स लोड कर दिए गए और फिर इन्हें दिल्ली एयरपोर्ट पर बाकी सामान के साथ अनलोड किया गया। अब केंद्र सरकार की तरफ से ये ऑक्सीजन कंसट्रेटर्स अस्पतालों को प्रायोरिटी बेसिस पर दिए जाएंगे।

सिर्फ अमेरिका नहीं, ब्रिटेन ने भी इंडिया को करीब 600 मेडिकल इक्विपमेंट्स भेजे हैं। इनमें 495 ऑक्सीजन कंसनट्रेटर्स है। इसके साथ साथ 120 नॉन इन्वेसिव और 20 मैनुअल वेंटिलेटर शामिल हैं। इतना ही नहीं ये तो मदद की पहले खेप है, इस तरह के नौ प्लेन इंडिया पहुंचेंगे और हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती देंगे।

इसी तरह चाहे जर्मनी हो, जापान है या फिर मिडिल ईस्ट कंट्रीज़ हों हर तरफ से भारत के लिए मदद आ रही है। दुबई से तो हमारे C-17 ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट में 7 क्रायोजेनिक ऑक्सीजन कंटेनर्स आए हैं। जापान से भी ऑक्सजीन जेनरेटर आने वाले हैं। सऊदी अरब ने भारत के लिए 80 मीट्रिक टन ऑक्सीजन भेजी है। सिंगापुर से भी हमें मेडिकल इक्विपमेंट्स मिले हैं। जर्मनी से हम 23 ऑक्सीजन जेनेरेटर मोबाइल प्लांट्स ले रहे हैं। रशिया ने भी हर हफ्ते भारत को चार लाख रेमडेसिविर इंजेक्शन देने का भरोसा दिलाया है।

सूत्रों ने अनुसार अमेरिकी सेना भारत में कोरोना पेशेन्ट्स के लिए आईसीयू बेड उपलब्ध कराने के लिए अपने मोबाइल अस्पताल भेजने जा रही है। भारत ने कोविड पेशेन्ट्स के लिए अमेरिका से ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स, 10-लीटर और 45-लीटर की क्षमता वाले ऑक्सीजन सिलेंडर, ऑक्सीजन जनरेटर और रेमडेसिविर, फेविप्रिविर और टोसीलिज़ुमाब जैसी महत्वपूर्ण दवाएं मांगी हैं।

विदेश से तो मदद आ ही रही है सरकार भी कोरोना पेशेन्ट्स को राहत पहुंचाने के लिए वॉर फुटिंग पर काम कर रही है। दिल्ली भी ऑक्सीजन क्राइसिस से जूझ रही है। केजरीवाल सरकार ऑक्सीजन के इंतजाम करने की बात तो कह रही है लेकिन अभी तक टैंकर्स ही नहीं मिल पाए हैं। इस बीच प्राइवेट सेक्टर मदद के लिए आगे आया है। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ से चार ऑक्सीजन टैंकर्स को रेलवे की मदद से दिल्ली लाया जा रहा है। आज रात तक इनके दिल्ली पहुंचने की उम्मीद है। इन ऑक्सीजन टैंकर्स को जिंदल स्टील की तरफ से लाया जा रहा है। भारतीय रेलवे ने बुधवार सुबह तक 450 टन मेडिकल ऑक्सीजन पहुंचाई है। 90 टन मेडिकल ऑक्सीजन ले जाने वाले छह लोडेड टैंकर बोकारो से जबलपुर और भोपाल की ओर निकल गए हैं, जबकि यूपी के अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन लाने के लिए तीन टैंकर बोकारो के रास्ते में हैं।

केंद्र ने 10 मीट्रिक टन और 20 मीट्रिक टन क्षमता के 20 क्रायोजेनिक ऑक्सीजन टैंकरों का आयात करने और उन्हें राज्यों को आपातकालीन उपयोग के लिए आवंटित करने का निर्णय लिया है। इस बीच, देश भर में टीके की कुल 14.5 करोड़ से अधिक डोज दी गई और पिछले 24 घंटों के दौरान कोविड से 2.5 लाख से अधिक लोग ठीक हुए हैं। वहीं Apple, Google और Microsoft ने भारत के लिए विशेष कोविड सहायता की घोषणा की है। आर्मी, पैरामिलिट्री फोर्सेज, पुलिस और रेलवे सब मुसीबत के वक्त में जिस तरह लोगों की मदद कर रहे हैं उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। 48 घंटे में 500 बैड का हॉस्पिटल तैयार करना आसान नहीं होता। आपको जानकर हैरानी होगी कि 24 अप्रैल तक हमारे देश में रोजाना करीब 7 हजार 200 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का प्रोडक्शन हो रहा था, आज 26 अप्रैल है और इस वक्त देश में ऑक्सीजन का प्रोडक्शन 9 हजार टन से ज्यादा हो गया है। 48 घंटे में अगर ऑक्सीजन का उत्पादन 2 हजार मीट्रिक टन बढ़ता है तो ये बड़ी अचीवमेंट है।

कोरोना को लेकर व्हाट्स एप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर लोग अपना दुख शेयर करते हैं लेकिन कुछ लोग इसका इस्तेमाल अफवाह फैलाने के लिए भी करते हैं। इसकी वजह से लोगों के मन में कोरोना को लेकर डर बैठ गया है, तो कोरोना को लेकर डरने की जरूरत नहीं। लोग कहते हैं कि मैं तो एक साल एकदम सावधान रहा। मैं किसी कोरोना पेशेंट के करीब नहीं गया फिर मुझे इंफेक्शन कैसे हुआ। एक्सपर्ट्स का कहना है कि हमारे देश में करीब 80 पर्सेंट कोरोना के शिकार लोग एसिम्टोमैटिक हैं। जिन लोगों में वायरस के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते वो वायरस के सबसे बड़े कैरियर हैं।

रिसर्च बताती है कि बंद कमरे में एक एसिम्टोमैटिक व्यक्ति अगर बात कर रहा है तो भी वो वायरस फैला सकता है और चूंकि पता ही नहीं चलता इसलिए बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हो जाते हैं। लोग पूछ रहे हैं कि परिवार के परिवार कैसे इंफेक्ट हो जाते हैं। पहले तो ऐसा नहीं होता था। डॉक्टर्स कहते हैं कि एक तो ये वायरस तेजी से फैलता है और दूसरा आजकल टेस्टिंग में वेटिंग है। जबतक सैंपल देने का नंबर आता है और जबतक ये पता चलता है कि कोई व्यक्ति पॉजिटिव है तब तक वो व्यक्ति एसिम्टोमैटिक मानकर लोगों से मिलता रहता है और वायरस फैला देता है।

एक बात ये भी है कि सेंकड वेव के ज्यादातर केसेज़ में सांस लेने में दिक्कत कॉमन है इसलिए इतनी ज्यादा तादाद में ऑक्सीजन की जरूरत पड़ने लगी है। अगर कोरोना के बढ़ते केसेज के रफ्तार को रोकना है तो डरने की जरुरत नहीं, हिम्मत से लड़ने की जरुरत है। आप का डर सब से बड़ा वाइरस है और सब से बड़ी वैक्सीन आप की हिम्मत है। कोरोना के प्रोटोकॉल का पालन करने की जरुरत है। ठीक से मास्क लगाना, दूरी बनाए रखना कोरोना की चेन को तोड़ने के सबसे कारगर उपाय हैं। ये आसान काम हैं। ये आप करिए और बडे बडे काम सरकारों पर छोड दीजिए। सरकार को चेताने का काम हम पर छोड़ दीजिए।

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